राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में राज्य सरकार से सिफारिश की है कि वे राजस्थान बोवाइन एनिमल (वध निषेध और अस्थायी प्रवास या निर्यात का विनियमन) अधिनियम, 1995 की धारा 6-ए के तहत पारित जब्ती आदेशों के खिलाफ अपील का उपाय प्रदान करें।
यह निर्णय न्यायमूर्ति सुदेश बंसल ने 1 जुलाई, 2024 को चार आपराधिक विविध याचिकाओं (क्रमांक 2097/2024, 1978/2024, 6030/2023 और 1941/2024) का निस्तारण करते हुए दिया, जिसमें जिला कलेक्टरों द्वारा अधिनियम की धारा 6-ए के तहत पारित जब्ती आदेशों को चुनौती दी गई थी।
पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ताओं ने जिला कलेक्टरों द्वारा पारित आदेशों को चुनौती दी थी, जिसमें उनके वाहनों को जब्त किया गया था, जो कथित रूप से अधिनियम का उल्लंघन करते हुए गोवंशीय जानवरों के परिवहन के लिए उपयोग किए गए थे। उन्होंने तर्क दिया कि ऐसे जब्ती आदेशों के खिलाफ अपील का कोई प्रावधान नहीं है, जबकि अधिनियम की धारा 7 के तहत पारित आदेशों के खिलाफ मंडलायुक्त के समक्ष अपील की जा सकती है।
मुख्य मुद्दे:
1. क्या धारा 6-ए के तहत जब्ती आदेशों के खिलाफ कोई वैधानिक अपील/पुनरीक्षण उपलब्ध है?
2. क्या उच्च न्यायालय ऐसे आदेशों में धारा 482 सीआरपीसी के तहत हस्तक्षेप कर सकता है?
अदालत की निष्कर्ष:
1. अधिनियम में धारा 6-ए के आदेशों के खिलाफ कोई वैधानिक अपील/पुनरीक्षण प्रदान नहीं की गई है। अदालत ने यह राय व्यक्त की कि यह एक अनजाने में हुई चूक हो सकती है।
2. धारा 6-ए के तहत जब्ती की कार्यवाही अर्ध-न्यायिक प्रकृति की होती है, न कि आपराधिक कार्यवाही। कलेक्टर एक आपराधिक न्यायालय के रूप में कार्य नहीं करता है।
3. उच्च न्यायालय को धारा 482 सीआरपीसी के तहत ऐसे आदेशों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। पीड़ित व्यक्ति आदेशों को चुनौती देने के लिए रिट याचिकाएं दायर कर सकते हैं।
4. अदालत ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि वे धारा 6-ए के आदेशों के खिलाफ अपील का उपाय प्रदान करें, जैसे कि धारा 7(3) के तहत उपलब्ध अपील के समान।
महत्वपूर्ण टिप्पणियां:
“यह अदालत अपनी राय दर्ज करती है कि राजस्थान बोवाइन एनिमल अधिनियम, 1995 की धारा 6-ए के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अपील या पुनरीक्षण का उपाय पीड़ित व्यक्ति को प्रदान किया जाना चाहिए।”
“राज्य विधानमंडल को इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए और धारा 6-ए के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अपील का उपाय खोलना चाहिए, जैसा कि धारा 7(1) या (2) के तहत पारित आदेश के खिलाफ धारा 7(3) में उपलब्ध है।”
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वकील:
याचिकाकर्ताओं के लिए: श्री दुष्यंत सिंह नरुका, श्री अनंत शर्मा, सुश्री सुनीता मीना, श्री अंकित खंडेलवाल, श्री जिया उर रहमान
अमाइकस क्यूरी: श्री अनुराग शर्मा, श्री एस.एस. होरा, श्री पंकज गुप्ता, श्री सुधीर जैन, श्री रजनीश गुप्ता
राज्य के लिए: श्री एस.एस. महला, पीपी