केवल उच्च शिक्षित या कमाने में सक्षम होने के आधार पर पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता: केरल हाई कोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी पत्नी को केवल इस आधार पर भरण-पोषण (Maintenance) देने से मना नहीं किया जा सकता कि वह उच्च शिक्षित है और कमाने में सक्षम है। कोर्ट ने कहा कि कानून में “स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ” (unable to maintain herself) का अर्थ ‘वास्तविक असमर्थता’ है, न कि केवल ‘कमाने की संभावित क्षमता’।

जस्टिस कौसर एडप्पगथ की पीठ ने पति द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका (Revision Petition) को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया। इसके साथ ही, केरल हाईकोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के हालिया दृष्टिकोण से असहमति जताई है, जिसमें कहा गया था कि सक्षम और शिक्षित पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं हो सकती।

मामला क्या था?

यह मामला आरपीएफसी नंबर 310/2018 (RPFC No. 310 of 2018) से संबंधित है। नेदुमंगद स्थित फैमिली कोर्ट ने 10 मई 2018 को पति को निर्देश दिया था कि वह अपनी पत्नी को 6,000 रुपये और बच्चे को 4,500 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता दे। पति ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

मामले की पृष्ठभूमि के अनुसार, पत्नी और बच्चे ने दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 125(1) के तहत भरण-पोषण का दावा किया था। पत्नी का आरोप था कि पति द्वारा बनाए गए घर में पति के भाई और उनकी पत्नी के रहने के कारण उसे अलग रहने पर मजबूर होना पड़ा। फैमिली कोर्ट ने इसे अलग रहने का वैध कारण माना था।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने गृहणियों के घरेलू योगदान को वेतन वाले काम के बराबर बताया 

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता (पति) की ओर से अधिवक्ता श्री अजीत जी. अंजर्लेकर ने मुख्य रूप से दो तर्क रखे:

  1. पत्नी की योग्यता: पति का तर्क था कि पत्नी “एम.ए. (M.A.) और बी.एड. (B.Ed)” पास एक उच्च शिक्षित महिला है और पेशे से शिक्षिका है। उन्होंने दावा किया कि पत्नी नुरुल हुदा पब्लिक स्कूल में शिक्षिका के रूप में काम कर रही है और 20,000 रुपये कमा रही है, इसलिए वह अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है।
  2. दिल्ली हाईकोर्ट का हवाला: पति ने दिल्ली हाईकोर्ट के मेघा खेत्रपाल बनाम रजत कपूर (2025) के फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि एक शिक्षित महिला जो कमाने में सक्षम है, उसे खाली बैठकर पति से भरण-पोषण मांगने का अधिकार नहीं होना चाहिए।

दूसरी ओर, पत्नी (प्रतिवादी) के वकील श्री आर.बी. राजेश ने कहा कि पति एक स्टोर मैनेजर के रूप में काम करता है और उसकी मासिक आय 66,900 रुपये है, इसलिए उसके पास पर्याप्त साधन हैं।

READ ALSO  स्लीवलेस ब्लाउस और छोटी पैंट पहन्ना पेशे का अनादर है- बार एसोसिएशन ने जूनियर वकीलों को ड्रेस कोड का उल्लंघन करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई कि दी चेतावनी

कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन

केरल हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि पति यह साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं कर सका कि पत्नी वास्तव में नौकरी कर रही है और कमा रही है।

‘कमाने की क्षमता’ बनाम ‘वास्तविक कमाई’

जस्टिस एडप्पगथ ने धारा 125 Cr.P.C. (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) की व्याख्या करते हुए कहा:

“धारा 125 में ‘भरण-पोषण करने में असमर्थ’ अभिव्यक्ति का अर्थ वास्तविक असमर्थता से लगाया जाना चाहिए, न कि केवल संभावित कमाई की क्षमता से। इसका मतलब केवल कमाने की क्षमता या योग्यता नहीं है। इसलिए, एक उच्च योग्यता प्राप्त पत्नी, यदि वह काम नहीं कर रही है और कमा नहीं रही है, तो उसे केवल इस आधार पर भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता कि उसके पास कमाने की क्षमता है।”

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों (रजनेश बनाम नेहा, शैलजा बनाम खोब्बन्ना) का हवाला देते हुए दोहराया कि अगर पत्नी के पास नौकरी करने की योग्यता है, लेकिन वह वास्तव में बेरोजगार है, तो यह भरण-पोषण न देने का आधार नहीं हो सकता।

READ ALSO  Interpretation of a Tendering Authority Must Prevail Unless There is Any Malafides Alleged or Proved: Supreme Court

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से असहमति

केरल हाईकोर्ट ने पति द्वारा प्रस्तुत दिल्ली हाईकोर्ट के मेघा खेत्रपाल वाले निर्णय पर अपनी असहमति दर्ज कराई। जस्टिस एडप्पगथ ने कहा:

“इन कारणों से, मैं दिल्ली हाईकोर्ट के उस दृष्टिकोण से सहमत नहीं हो सकता कि एक अच्छी तरह से योग्य पत्नी, जिसके पास कमाने की क्षमता है लेकिन वह खाली बैठी है, अपने पति से भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती।”

निर्णय

हाईकोर्ट ने पाया कि पति की मासिक आय 66,900 रुपये है, जो भरण-पोषण देने के लिए पर्याप्त है। कोर्ट ने माना कि पत्नी एक उच्च शिक्षित महिला होने के बावजूद, जब तक वह खुद को सहारा देने के लिए पर्याप्त साधन नहीं जुटा लेती, तब तक वह भरण-पोषण की हकदार है।

परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा निर्धारित 6,000 रुपये (पत्नी) और 4,500 रुपये (बच्चा) की राशि को उचित ठहराते हुए पति की याचिका खारिज कर दी।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles