एक महत्वपूर्ण फैसले में, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने भर्ती एजेंसियों के लिए अपने स्वयं के विज्ञापनों में उल्लिखित नियमों और शर्तों का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। यह फैसला दीपक कुमार और अन्य द्वारा हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) द्वारा पुलिस कांस्टेबल पदों के लिए उम्मीदवारों की शॉर्टलिस्ट के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए आया।
पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति जगमोहन बंसल ने इस बात पर जोर दिया कि विज्ञापित भर्ती प्रोटोकॉल से विचलन अराजकता की ओर ले जाता है और कानून के शासन को कमजोर करता है। उन्होंने कहा, “यदि इसकी अनुमति दी जाती है, तो अराजकता और अनिश्चितता होगी। चयन भर्ती एजेंसी की मर्जी और इच्छा पर होगा, जिसे अनुमति नहीं दी जा सकती।”
यह विवाद तब पैदा हुआ जब HSSC ने मुख्य परीक्षा के लिए शॉर्टलिस्टिंग प्रक्रिया के दौरान विकलांग पूर्व सैनिकों और उनके परिवार के सदस्यों को अन्य पूर्व सैनिकों के उम्मीदवारों पर प्राथमिकता दी, जबकि प्रारंभिक कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (CET) में अन्य पूर्व सैनिकों के मेरिट स्कोर अधिक थे। याचिका के अनुसार, भर्ती विज्ञापन में निर्दिष्ट किया गया था कि विकलांग भूतपूर्व सैनिकों और उनके परिवार के सदस्यों को केवल तभी प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जब व्यापक भूतपूर्व सैनिक श्रेणी से उपयुक्त उम्मीदवार उपलब्ध न हों।
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अदालत ने पाया कि आयोग ने अंतिम चयन के बजाय मुख्य परीक्षा के चरण में इस प्राथमिकता को लागू करके अपनी सीमाओं को लांघ दिया है, जैसा कि विज्ञापन और मार्च 2022 में जारी सरकारी निर्देशों में निर्धारित किया गया था। न्यायमूर्ति बंसल ने टिप्पणी की, “लिखित परीक्षा के चरण में प्राथमिकता सूची तैयार करने में प्रतिवादी का इरादा न्यायसंगत और निष्पक्ष हो सकता है, हालांकि, इरादा विज्ञापन/निर्देशों के नियमों और शर्तों का स्थान नहीं ले सकता जो स्पष्ट और स्पष्ट हैं।”