सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अभियोजन पक्ष (prosecution) चार्जशीट दाखिल करते समय अगर कोई दस्तावेज या सामग्री भूलवश छोड़ देता है, तो उन्हें बाद में भी कोर्ट की अनुमति से रिकॉर्ड पर लाया जा सकता है, भले ही वे दस्तावेज चार्जशीट दाखिल होने से पहले एकत्र किए गए हों। यह निर्णय समीर संधीर बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) [क्रिमिनल अपील संख्या 4718–4719/2024] में न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनाया।
मुख्य मुद्दा और निर्णय
मामला दो कॉम्पैक्ट डिस्क्स (CDs) से जुड़ा था जिन्हें CBI द्वारा जांच के दौरान जब्त किया गया था लेकिन चार्जशीट दाखिल करते समय रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया। ट्रायल के दौरान जब इन CDs को प्रस्तुत करने की कोशिश की गई तो आरोपी ने इसका विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की अपील खारिज करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष, अगर किसी दस्तावेज को पहले भूलवश पेश नहीं कर पाया हो, तो उसे बाद में भी कोर्ट की अनुमति से प्रस्तुत कर सकता है।
न्यायालय ने CBI बनाम आर.एस. पाई [(2002) 5 SCC 82] के फैसले को दोहराते हुए कहा:

“यदि रिपोर्ट या चार्जशीट प्रस्तुत करते समय अभियोजन द्वारा कोई दस्तावेज भूलवश पेश नहीं किया गया हो, तो वह अदालत की अनुमति से बाद में भी प्रस्तुत किया जा सकता है।”
न्यायालय ने आगे कहा:
“यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि यदि अभियोजन पक्ष किसी दस्तावेज को मजिस्ट्रेट के समक्ष चार्जशीट के साथ प्रस्तुत करने में चूक जाता है, तो भी उसे बाद में न्यायालय की अनुमति से प्रस्तुत किया जा सकता है, चाहे वह दस्तावेज जांच के पहले चरण में ही एकत्र किया गया हो।”
मामले की पृष्ठभूमि
समीर संधीर (आरोपी संख्या 7) अन्य व्यक्तियों के साथ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 और भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 120-बी के तहत दर्ज केस संख्या RC-217/2013/A0004 (CC संख्या 3/2013) में अभियुक्त हैं। इस मामले में गृह मंत्रालय द्वारा कई आरोपियों और एक मनोज गर्ग के टेलीफोन कॉल्स को 8 जनवरी से 1 मई 2013 तक इंटरसेप्ट करने की अनुमति दी गई थी।
दो CDs जिनमें क्रमशः 189 और 101 कॉल रिकॉर्डिंग्स थीं, 4 और 10 मई 2013 को जब्त की गई थीं और 27 मई 2013 को CFSL (Central Forensic Science Laboratory) को विश्लेषण हेतु भेजी गई थीं। चार्जशीट 2 जुलाई 2013 को दाखिल की गई थी, लेकिन उस समय तक CFSL की रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई थी। 25 अक्टूबर 2013 को CFSL रिपोर्ट प्राप्त हुई, जिसके बाद 30 अक्टूबर 2013 को एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की गई। हालांकि CDs को उस समय रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया।
कार्यवाही का इतिहास
सितंबर 2014 में ट्रायल के दौरान जब अभियोजन पक्ष ने CDs चलाने का प्रयास किया, तो बचाव पक्ष ने यह कहकर विरोध किया कि ये CDs न तो पहले दाखिल की गई थीं और न ही उनकी प्रतियां आरोपियों को दी गई थीं।
CBI ने CDs की प्रतियां बनाने के लिए आवेदन किया, जिसे विशेष न्यायाधीश ने 27 सितंबर 2014 को मंजूर कर लिया। चूंकि समीर संधीर को उस आदेश से पहले नहीं सुना गया था, उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 12 मई 2015 को हाईकोर्ट ने आदेश को रद्द करते हुए CBI को CDs प्रस्तुत करने हेतु विशेष अदालत में आवेदन देने की अनुमति दी।
विशेष न्यायालय ने 6 फरवरी 2016 को CBI के आवेदन को स्वीकार कर CDs को रिकॉर्ड पर लेने की अनुमति दी, जिसे हाईकोर्ट ने 26 अप्रैल 2017 को सही ठहराया। इसके विरुद्ध समीर संधीर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
पक्षकारों के तर्क
अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि CDs पहले ही CBI के पास थीं, इसलिए उन्हें बाद में “further investigation” के नाम पर दाखिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने मैरियम फसीहुद्दीन बनाम स्टेट [2024 SCC OnLine SC 58], अर्जुन पंडित्राव खोतकर बनाम कैलाश कुशनराव गोरंट्याल [(2020) 7 SCC 1], सिद्धार्थ वशिष्ठ बनाम राज्य (NCT दिल्ली) [(2010) 6 SCC 1], और वी.के. शशिकला बनाम राज्य [(2012) 9 SCC 771] जैसे मामलों पर भरोसा किया।
CBI के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने जवाब में कहा कि CDs को भूलवश दाखिल नहीं किया गया था, हालांकि वे CFSL रिपोर्ट में संदर्भित थीं। उन्होंने कहा कि CDs के बिना अभियुक्त को कोई वास्तविक नुकसान नहीं हुआ है और R.S. पाई का निर्णय इस मुद्दे पर स्पष्ट है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
पीठ ने स्पष्ट किया कि R.S. पाई में स्थापित सिद्धांत लागू होता है, जिसमें कहा गया है कि चार्जशीट के समय जो दस्तावेज छूट गए हों, उन्हें कोर्ट की अनुमति से बाद में दाखिल किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा:
“चार्जशीट दाखिल हो जाने के बाद भी यदि कोई दस्तावेज अभियोजन द्वारा भूलवश पेश नहीं किया गया हो, तो वह बाद में न्यायालय की अनुमति से पेश किया जा सकता है, चाहे वह दस्तावेज पहले ही एकत्र किया गया हो।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दिल्ली हाईकोर्ट को CDs की प्रामाणिकता के बारे में टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी। न्यायालय ने कहा:
“क्या CDs वही हैं जो 4 और 10 मई 2013 को जब्त की गई थीं, यह अभियोजन को साबित करना होगा। सेक्शन 65B के सर्टिफिकेट की वैधता और CDs की प्रामाणिकता का निर्णय ट्रायल के दौरान किया जाएगा।”
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट और विशेष अदालत के निर्णयों को सही ठहराया और अपील खारिज कर दी। साथ ही, अपीलकर्ता को यह स्वतंत्रता दी कि वह CDs से संबंधित सीमित मुद्दों पर अभियोजन पक्ष के गवाहों को पुनः जिरह के लिए बुला सकता है।