पुलिस ने जज को ही आरोपी बताया: फिरोजाबाद कोर्ट ने पुलिस की भारी लापरवाही पर फटकार लगाई, जांच के आदेश दिए

फिरोजाबाद के अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) नौमा खान ने एक अभूतपूर्व घटना में एक पुलिस अधिकारी की तीखी आलोचना की है, जिसने एक उद्घोषणा रिपोर्ट में गलती से स्वयं जज का नाम ही आरोपी के रूप में दर्ज कर दिया। यह मामला राज्य बनाम राजकुमार एवं अन्य (मुकदमा संख्या 2672/2012, सीएनआर संख्या UPFD040019132012) से संबंधित है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 380 और 411 के अंतर्गत दर्ज किया गया है।

कोर्ट ने पहले आरोपी राजकुमार उर्फ पप्पू के विरुद्ध दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 के तहत उद्घोषणा जारी की थी। परंतु थाना उत्तर के उप-निरीक्षक बंवरलाल ने अपनी अनुपालन रिपोर्ट में इस उद्घोषणा को न केवल गैर-जमानती वारंट (NBW) बता दिया, बल्कि और भी गंभीर भूल करते हुए उद्घोषणा जारी करने वाली जज का ही नाम आरोपी के रूप में दर्ज कर दिया।

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इस गंभीर त्रुटि पर नाराज़गी जाहिर करते हुए अदालत ने टिप्पणी की:

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“यह अत्यंत विचित्र है कि संबंधित थाना के ड्यूटी पर मौजूद अधिकारी को इस बात की न जानकारी है कि कोर्ट से क्या भेजा गया, किसने भेजा और किसके विरुद्ध भेजा गया। हद तो यह है कि उद्घोषणा जारी करने वाली जज को ही आरोपी बना दिया गया है, कम से कम प्रक्रिया में तो।”

कोर्ट ने कहा कि यह आचरण न केवल न्यायिक आदेश की समझ के अभाव को दर्शाता है, बल्कि पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारियों के प्रति घोर लापरवाही को भी उजागर करता है।

न्यायालय ने आगे कहा:

“इस प्रकार की गंभीर और स्पष्ट त्रुटि उसके एक पुलिस अधिकारी के रूप में कार्य के स्तर को दर्शाती है, जिसे उसकी ड्यूटी की समझ तक नहीं है। बिना एक इंच ध्यान दिए, उसने उद्घोषणा को एनबीडब्ल्यू बताया और फिर पूरी तरह से आँख मूंदकर पीठासीन अधिकारी का नाम लिख दिया।”

जज खान ने पुलिस प्रक्रिया में इस तरह की लापरवाही के परिणामों पर जोर देते हुए कहा:

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“कोर्ट की प्रक्रिया की तामील करने वाले पुलिस अधिकारी से अत्यंत सावधानी अपेक्षित है, क्योंकि इन प्रक्रियाओं के गंभीर परिणाम होते हैं। यदि इस प्रकार के लापरवाह अधिकारी बिना किसी जवाबदेही के ऐसे ही प्रक्रियाएं तामील करते रहेंगे, तो वे कानून और नागरिकों की स्वतंत्रता के अधिकारों को अपने मनमाने ढंग से कुचल देंगे।”

कोर्ट ने इस घटना को “दंडमुक्त लापरवाही” करार देते हुए कहा कि अधिकारी ने न्यायालय की प्रक्रिया की ओर “शून्य ध्यान” दिया और यह “कर्तव्यों की घोर उपेक्षा” का मामला है।

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अंत में अदालत ने इस गंभीर चूक को संज्ञान में लेते हुए आदेश दिया कि इस निर्णय की प्रति आगरा रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (IG) को विस्तृत जांच हेतु भेजी जाए। साथ ही इस निर्णय की प्रतियां पुलिस महानिदेशक (DGP), उत्तर प्रदेश एवं पुलिस अधीक्षक (SP), फिरोजाबाद को भी आवश्यक कार्रवाई हेतु भेजने के निर्देश दिए गए।

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