छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दोहराया है कि बच्चों के विरुद्ध यौन अपराधों को अत्यंत गंभीरता से लिया जाना चाहिए और ऐसे मामलों में Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act, 2012 के तहत किसी भी प्रकार की रियायत नहीं दी जा सकती। यह टिप्पणी कोर्ट ने एक 13 वर्षीय बालिका के साथ सामूहिक दुष्कर्म के मामले में दोषी ठहराए गए तीन अभियुक्तों की सजा को बरकरार रखते हुए की।
मुख्य न्यायाधीश रामेश सिन्हा एवं न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने पंकु कश्यप, मनोज उर्फ कनवाल बघेल और पिंकु कश्यप द्वारा दाखिल की गई तीनों आपराधिक अपीलों को खारिज करते हुए, प्रत्येक को POCSO Act की धारा 6 के तहत दी गई 20 वर्षों की सश्रम कारावास की सजा को सही ठहराया।
“बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का यौन उत्पीड़न या यौन दुर्व्यवहार अत्यंत गंभीरता से देखा जाना चाहिए और ऐसे सभी अपराधों से सख्ती से निपटना होगा। पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत अपराध करने वाले किसी भी व्यक्ति के प्रति कोई रियायत नहीं बरती जानी चाहिए,” कोर्ट ने Nawabuddin बनाम उत्तराखंड राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा।
मामला
घटना 26 अप्रैल 2019 को घटित हुई जब 13 वर्षीय बालिका अपनी सहेली के साथ माकड़ी गांव में एक विवाह समारोह में गई थी। वहां चार युवकों ने उसे खेत में ले जाकर उसके साथ जबरदस्ती की। बालिका ने मोबाइल की रोशनी में तीन युवकों—पिंकु, पंकु और मनोज—की पहचान की।
घटना के अगले दिन प्राथमिकी दर्ज हुई। पुलिस ने पीड़िता एवं अभियुक्तों के कपड़े जब्त कर फॉरेंसिक परीक्षण के लिए भेजे। 25 अगस्त 2021 को फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट, कोण्डागांव ने तीनों आरोपियों को POCSO की धारा 6 के अंतर्गत दोषी मानते हुए सजा सुनाई।
अभियुक्तों की दलीलें
- पंकु कश्यप (CRA 984/2021) ने दावा किया कि वह उस समय नाबालिग था और झूठा फंसाया गया।
- मनोज @ कनवाल बघेल (CRA 1021/2021) ने प्राथमिकी में देरी और पीड़िता की गवाही पर सवाल उठाए।
- पिंकु कश्यप (CRA 1085/2021) ने तस्दीक परेड न होने और पीड़िता के शरीर पर चोट के निशान न पाए जाने का तर्क दिया।
हाईकोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि:
- स्कूल रिकॉर्ड से यह प्रमाणित हो गया कि पीड़िता की जन्मतिथि 6 जुलाई 2006 है, जिससे वह घटना के समय 13 वर्ष की थी और POCSO Act की धारा 2(d) के अनुसार “बालिका” की श्रेणी में आती है।
- पीड़िता की गवाही को कोर्ट ने “स्टर्लिंग विटनेस” माना—जो स्पष्ट, सुसंगत और विश्वसनीय थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा गया कि ऐसे मामलों में पीड़िता की गवाही ही पर्याप्त है।
- फॉरेंसिक रिपोर्ट में पीड़िता के वस्त्रों और अभियुक्तों के कपड़ों पर जैविक साक्ष्य पाए गए।
- दो अभियुक्तों के जननांगों पर चोटों की पुष्टि भी चिकित्सकीय रिपोर्ट में हुई, जो घटना के समय के अनुरूप थी।
अंतिम निर्णय
“ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियुक्तों को दी गई दोषसिद्धि एवं सजा को यथावत रखा जाता है। प्रस्तुत आपराधिक अपील में कोई मेरिट नहीं है और इसे खारिज किया जाता है,” कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने तीनों अभियुक्तों को सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार भी बताया और उन्हें निर्णय की प्रति उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।