पीएम मोदी की डिग्री विवाद: दिल्ली हाईकोर्ट ने DU से मांगा जवाब, अपील में देरी पर 3 हफ्ते में आपत्ति दाखिल करने का निर्देश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैचलर डिग्री के विवरण से जुड़े मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। हाईकोर्ट की एक खंडपीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें एक सिंगल जज के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने में हुई देरी को माफ करने की मांग की गई है।

हाईकोर्ट के सिंगल जज ने अपने फैसले में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें पीएम मोदी की डिग्री के विवरण का खुलासा करने का निर्देश दिया गया था।

चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने यूनिवर्सिटी को इन याचिकाओं पर अपनी आपत्तियां दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। बेंच को सूचित किया गया कि सिंगल जज के 25 अगस्त के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने में देरी हुई है।

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सुनवाई के दौरान दिल्ली यूनिवर्सिटी की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। बेंच ने अपने आदेश में कहा, “देरी को माफ करने की मांग वाली याचिकाओं पर आपत्तियां तीन सप्ताह के भीतर दायर की जा सकती हैं। इसके बाद, अपीलकर्ता दो सप्ताह के भीतर उन आपत्तियों पर अपना जवाब (यदि कोई हो) दाखिल कर सकते हैं।”

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कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 16 जनवरी, 2026 की तारीख तय की है।

सिंगल जज के फैसले के खिलाफ ये चार अलग-अलग अपीलें दायर की गई हैं। अपीलकर्ताओं में आरटीआई कार्यकर्ता नीरज, आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह और एडवोकेट मोहम्मद इरशाद शामिल हैं।

क्या था सिंगल जज का फैसला?

25 अगस्त को हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने CIC के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि सिर्फ इसलिए कि पीएम मोदी एक सार्वजनिक पद पर हैं, उनकी सभी “निजी जानकारी” को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने माना था कि इस जानकारी में कोई “निहित सार्वजनिक हित” नहीं है।

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अदालत ने यह भी टिप्पणी की थी कि आरटीआई अधिनियम सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए है, न कि “सनसनी फैलाने के लिए चारा प्रदान करने के लिए।”

CIC ने दिया था जांच का आदेश

यह पूरा मामला 21 दिसंबर 2016 के CIC के एक आदेश से शुरू हुआ था। CIC ने आरटीआई कार्यकर्ता नीरज की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी को 1978 में बीए परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दी थी। 1978 वही वर्ष है जब प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह परीक्षा पास की थी।

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सिंगल जज ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि सार्वजनिक पद पर रहने के लिए शैक्षणिक योग्यता कोई वैधानिक आवश्यकता नहीं है। जज ने CIC के दृष्टिकोण को “पूरी तरह से गलत” करार दिया था।

गौरतलब है कि अपने इसी फैसले में हाईकोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के 10वीं और 12वीं कक्षा के रिकॉर्ड से जुड़े CIC के एक अलग आदेश को भी रद्द कर दिया था।

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