केवल एक राहत विधिक रूप से अमान्य होने के आधार पर सम्पूर्ण वादपत्र खारिज नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि यदि वादपत्र में प्रस्तुत की गई राहतों में से कोई एक विधिक रूप से अमान्य हो भी, तो भी सम्पूर्ण वादपत्र को खारिज नहीं किया जा सकता, जब तक कि उसमें स्वतंत्र और वैध कारण कार्रवाई के रूप में प्रस्तुत किए गए हों। यह निर्णय विनोद इन्फ्रा डिवेलपर्स लिमिटेड बनाम महावीर लुनिया एवं अन्य [सिविल अपील संख्या 7109/2025] में सुनाया गया, जिसमें अदालत ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें वादपत्र को आदेश VII नियम 11 सीपीसी के अंतर्गत खारिज कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने स्वतंत्र विवादों की उपेक्षा कर सम्पूर्ण वादपत्र को “सैद्धांतिक” कहकर खारिज कर दिया, जो विधिक रूप से असंगत है।

मामला पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता कंपनी विनोद इन्फ्रा डिवेलपर्स लिमिटेड ने 2013 में जोधपुर के पाल गांव में स्थित 18 बीघा 15 बिस्वा कृषि भूमि खरीदी थी। 2014 में कंपनी ने प्रतिवादी महावीर लुनिया से ₹7.5 करोड़ का ऋण प्राप्त किया और इसके एवज में एक बोर्ड प्रस्ताव, अपंजीकृत पावर ऑफ अटॉर्नी और बिक्री अनुबंध जारी किया गया।

बाद में 24 और 27 मई 2022 को उक्त प्राधिकरण को औपचारिक रूप से रद्द कर दिया गया। इसके बावजूद, प्रतिवादी ने 13 और 14 जुलाई 2022 को स्वयं और अन्य प्रतिवादियों के नाम पर बिक्री विलेख निष्पादित कर उन्हें 19 जुलाई को पंजीकृत कराया। इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर राजस्व अभिलेखों में नामांतर भी करवा लिया गया।

इसके विरुद्ध अपीलकर्ता ने सिविल अदालत जोधपुर में वाद दायर किया, जिसमें बिक्री विलेखों को शून्य घोषित करने, पुनः कब्जा दिलाने और स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई। प्रतिवादियों द्वारा वादपत्र खारिज करने हेतु दायर प्रार्थना पत्र को निचली अदालत ने खारिज कर दिया था, जिसे हाईकोर्ट ने पलटते हुए वाद को अस्वीकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट में पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि पावर ऑफ अटॉर्नी रद्द किए जाने के बाद निष्पादित बिक्री विलेखों से उत्पन्न विवाद एक स्वतंत्र और न्यायिक परीक्षण योग्य कारण कार्रवाई है। उन्होंने Central Bank of India बनाम प्रभा जैन [2025 INSC 95] का हवाला देते हुए कहा कि यदि एक भी कारण कार्रवाई जीवित रहता है, तो सम्पूर्ण वादपत्र को खारिज नहीं किया जा सकता।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने असम के मटिया ट्रांजिट कैंप में औचक निरीक्षण का आदेश दिया

प्रतिवादियों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि दस्तावेज़ एक वास्तविक बिक्री को दर्शाते हैं और ऋण या बंधक की कोई चर्चा इनमें नहीं है। उनके अनुसार, वादपत्र अधिकार क्षेत्र से बाहर है और उसमें उचित कोर्ट फीस भी नहीं दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

न्यायालय ने कहा कि आदेश VII नियम 11 सीपीसी के अंतर्गत वादपत्र को केवल तभी खारिज किया जा सकता है जब वह स्पष्ट रूप से किसी कानून द्वारा वर्जित हो, कोई कारण कार्रवाई प्रस्तुत न करता हो, या गंभीर प्रक्रिया संबंधी दोषों से ग्रसित हो। न्यायालय ने कहा:

“हाईकोर्ट द्वारा सम्पूर्ण वादपत्र को खारिज कर देना, जबकि उसमें अनेक स्वतंत्र और वैध कारण कार्रवाई प्रस्तुत की गई थी, आदेश VII नियम 11 सीपीसी के गलत प्रयोग के समान है।”

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अपंजीकृत बिक्री अनुबंध और पावर ऑफ अटॉर्नी, विशेष रूप से जब वे 2014 में निष्पादित हुए हों और पंजीकृत नहीं कराए गए हों, कानूनन किसी भी प्रकार का स्वामित्व या अधिकार नहीं दे सकते। अदालत ने सुरज लैम्प एंड इंडस्ट्रीज बनाम हरियाणा राज्य [(2012) 1 SCC 656] सहित अन्य निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि इस प्रकार के दस्तावेज़ केवल विशिष्ट निष्पादन (specific performance) के मुकदमे में सीमित प्रयोजन के लिए मान्य हो सकते हैं।

READ ALSO  वकील द्वारा मुवक्किल के निर्देशों का पालन करते हुए महिला के चरित्र पर आक्षेप लगाना कर्तव्य का पालन करना है, न कि शील का अपमान करना: बॉम्बे हाईकोर्ट

अदालत ने यह भी कहा कि खाता नामांतरण केवल प्रशासनिक प्रक्रिया है और इससे संपत्ति का स्वामित्व सिद्ध नहीं होता, जो सिविल अदालतों के क्षेत्राधिकार में आता है।

निर्णय

न्यायालय ने अपील को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और जिला अदालत के आदेश को पुनः लागू कर दिया। न्यायालय ने कहा:

“अपील स्वीकार की जाती है। हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया जाता है, और अतिरिक्त जिला न्यायाधीश का आदेश पुनः स्थापित किया जाता है। मुकदमे को कानून के अनुसार यथावत सुना जाएगा।”

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles