सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ताओं की पदवी प्रदान करने की प्रक्रिया में स्थायी समिति की सीमित भूमिका स्पष्ट की। न्यायालय ने कहा कि समिति केवल अंक प्रदान कर सकती है, लेकिन सिफारिश नहीं कर सकती। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने उस याचिका की सुनवाई के दौरान की, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 70 अधिवक्ताओं को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किए जाने को चुनौती दी गई थी।
न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “किस कानून के तहत समिति सिफारिश कर सकती है? इंदिरा जयसिंह मामले के फैसले में समिति को सिफारिश करने का कोई अधिकार नहीं दिया गया है। इसका कार्य केवल अंक देना है।” उन्होंने हाल ही में आए एक फैसले का हवाला देते हुए बताया कि स्थायी समिति की जिम्मेदारी केवल पूर्व निर्धारित मानदंडों के आधार पर अंक देने तक सीमित है।
यह विवाद तब गहरा गया जब वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर नंदराजोग ने दावा किया कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं की अंतिम सूची उनकी सहमति के बिना तैयार की गई। नंदराजोग, जो स्थायी समिति से पहले ही इस्तीफा दे चुके थे, ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उठाया, जिसके बाद अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी किया।
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सुनवाई के दौरान यह सामने आया कि समिति ने सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा जयसिंह मामले में दिए गए निर्देशों का उल्लंघन करते हुए सिफारिशें की थीं। 2017 में “इंदिरा जयसिंह बनाम भारत का सर्वोच्च न्यायालय” और हाल ही में “जीतेन्द्र काला” मामले में आए फैसलों में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि समिति का कार्य मात्र अंक देना है और उसे कोई गुणात्मक मूल्यांकन या सिफारिश करने का अधिकार नहीं है।
न्यायमूर्ति ओका ने दिल्ली उच्च न्यायालय की स्थायी समिति की संरचना पर भी सवाल उठाए और इसकी शक्तियों की संभावित अतिरेक की ओर इशारा किया। अदालत को सूचित किया गया कि इस समिति में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और दिल्ली सरकार के एक नामित सदस्य को भी शामिल किया गया था, जिसे समस्याग्रस्त माना गया।
वरिष्ठ अधिवक्ता नंदराजोग ने प्रक्रिया में हुई गड़बड़ियों का विवरण देते हुए कहा, “साक्षात्कार प्रक्रिया 19 नवंबर को समाप्त हो गई थी और उसके बाद 25 नवंबर को एक बैठक हुई। लेकिन 25 नवंबर के बाद कोई बैठक नहीं हुई।”
सुप्रीम कोर्ट ने नंदराजोग को अपनी शिकायतों का विस्तृत हलफनामा दाखिल करने और दिल्ली उच्च न्यायालय को उसका जवाब देने के लिए एक माह का समय दिया। अदालत ने संकेत दिया कि वह इस मुद्दे का समाधान न्यायिक मुकदमेबाजी के बजाय बातचीत के माध्यम से चाहती है। यह मामला वरिष्ठ अधिवक्ताओं की पदवी प्रदान करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर व्यापक चर्चा को जन्म दे रहा है।