सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली जिला उपयुक्त प्राधिकारी की अपील खारिज कर दी है, जिसमें पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम, 1994 के तहत जब्त की गई एक सोनोग्राफी मशीन को अनसील करने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि जब आरोपी को ट्रायल और अपीलीय अदालतों द्वारा बरी कर दिया गया हो, तब लगभग 16 वर्षों तक बिना किसी औचित्य के मशीन को सील अवस्था में रखना अनुचित है।
पृष्ठभूमि:
यह मामला 26 मई 2009 को अहमदाबाद की जिला उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन से उत्पन्न हुआ था, जिसमें प्रतिवादी डॉ. कौशिक बाबुलाल शाह पर भ्रूण लिंग की जानकारी देने का आरोप लगा था। अगले दिन उनके विरुद्ध शिकायत दर्ज की गई और एक सोनोग्राफी मशीन जब्त कर सील कर दी गई। जांच के दौरान अधिनियम के अंतर्गत आवश्यक फॉर्म ‘एफ’ अपूर्ण पाया गया।
डॉ. शाह ने मशीन की सील हटाने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का रुख किया। एकल न्यायाधीश ने सील हटाने की अनुमति दी, लेकिन डिवीजन बेंच ने आदेश पलटते हुए ट्रायल को शीघ्र पूरा करने का निर्देश दिया। 4 दिसंबर 2012 को महानगरीय मजिस्ट्रेट ने डॉ. शाह को सभी आरोपों से बरी कर दिया, जिसे 23 अगस्त 2012 को सत्र न्यायालय ने भी बरकरार रखा।
इसके बाद, हाईकोर्ट ने 1 अक्टूबर 2012 को मशीन को अनसील करने का आदेश दिया। पुनर्विचार याचिका 22 अक्टूबर 2012 को खारिज कर दी गई। इसके विरुद्ध जिला उपयुक्त प्राधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
पक्षकारों की दलीलें:
अपीलकर्ता का कहना था कि पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम की धारा 29 के तहत रिकॉर्ड और सामग्री को तब तक संरक्षित रखना होता है जब तक आपराधिक कार्यवाही पूरी तरह समाप्त न हो जाए। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने इस तथ्य को नजरअंदाज किया कि अभियुक्त की बरी होने के विरुद्ध अपील लंबित है।
दूसरी ओर, प्रतिवादी ने तर्क दिया कि जब ट्रायल और अपीलीय अदालतों द्वारा अभियुक्त को बरी कर दिया गया है, तब कार्यवाही समाप्त मानी जाएगी। हाईकोर्ट द्वारा मशीन अनसील करने का निर्देश औचित्यपूर्ण था और इसमें डेटा पुनर्प्राप्ति के लिए उचित प्रावधान शामिल थे।
न्यायालय का विश्लेषण:
न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने कहा कि मशीन वर्ष 2009 से सील है और उसे अनिश्चितकाल तक सील रखे रहना “निष्प्रयोज्य या व्यर्थ” बना देगा।
अदालत ने पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम, 1994 की धारा 29 और 30 का उल्लेख करते हुए कहा:
“धारा 29(1) में रिकॉर्ड को संरक्षित रखने की कोई निर्धारित अवधि नहीं दी गई है। इसमें प्रयुक्त शब्द हैं ‘दो वर्ष’ या ‘जैसा विनियमित किया जाए’, जबकि धारा 29(2) में प्रयुक्त शब्द हैं ‘उचित समयों पर’।”
अदालत ने पाया कि ऐसी कोई सरकारी अधिसूचना नहीं है जो संरक्षित अवधि को विनियमित करती हो। न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों में पहले से ही यह सुनिश्चित किया गया था कि डेटा की पुनर्प्राप्ति प्राधिकरण की उपस्थिति में की जाए।
Ashok Kumar बनाम बिहार राज्य, (2001) 9 SCC 718 मामले का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि संपत्ति को अदालत की अभिरक्षा में अनिश्चितकाल तक रखने का कोई औचित्य नहीं होता और धारा 451 सीआरपीसी के अंतर्गत न्यायालय उपयुक्त आदेश पारित कर सकता है।
निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“अपीलकर्ता प्राधिकारी की ओर से सोनोग्राफी मशीन को अनिश्चितकाल तक सील स्थिति में रखने के लिए कोई ऐसा औचित्य नहीं प्रस्तुत किया गया है, जो विचारणीय हो।”
इस आधार पर, न्यायालय ने अपील को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया और गुजरात हाईकोर्ट के आदेशों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। विधिक प्रश्नों को खुला रखा गया।