पेंशन नामांकन में नाम न होने के बावजूद पत्नी को पारिवारिक पेंशन का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अस्वीकृति आदेश रद्द किया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई महिला विधिसम्मत रूप से मृत सरकारी कर्मचारी की पत्नी है, तो केवल इस आधार पर उसे पारिवारिक पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता कि उसका नाम पेंशन नामांकन पत्रों में नहीं था। न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने वित्त एवं लेखाधिकारी, बेसिक शिक्षा, मिर्जापुर द्वारा पारिवारिक पेंशन अस्वीकृत करने वाले दिनांक 21.09.2020 के आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता श्रीमती उर्मिला सिंह के पक्ष में निर्णय सुनाया।

प्रकरण की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता श्रीमती उर्मिला सिंह ने रिट याचिका संख्या – 5545 / 2021 दाखिल कर अपने पारिवारिक पेंशन के दावे को खारिज किए जाने को चुनौती दी थी। उनके पति स्वर्गीय प्रभु नारायण सिंह, बेसिक शिक्षा परिषद के तहत संचालित प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक थे। वह 31 मार्च 2016 को सेवानिवृत्त हुए थे और तब से नियमित पेंशन प्राप्त कर रहे थे। उनका निधन 29 नवम्बर 2019 को हुआ।

पति की मृत्यु के बाद, याचिकाकर्ता ने पारिवारिक पेंशन की मांग की, लेकिन उसका दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि पेंशन प्रपत्रों में उनके पति ने पत्नी का नाम शामिल नहीं किया था, और न ही उनका फोटो उसमें संलग्न था। इसके बजाय, उनके बड़े पुत्र अतुल कुमार सिंह का नाम नामांकित था।

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याचिकाकर्ता की दलीलें

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता जितेन्द्र प्रसाद, नीरज कुमार सिंह एवं राजेश कुमार सिंह ने तर्क दिया कि:

  • वह विधिवत रूप से स्वर्गीय प्रभु नारायण सिंह की पत्नी हैं, जिसे ग्राम प्रधान के प्रमाणपत्र और पारिवारिक न्यायालय, मिर्जापुर द्वारा पारित दिनांक 20.08.2015 के आदेश से भी पुष्ट किया गया है (मामला: उर्मिला सिंह बनाम प्रभु नारायण सिंह, वाद संख्या 404/2014)।
  • उन्हें पति से धारा 125 सीआरपीसी के तहत ₹8000 प्रतिमाह भरण-पोषण भी मिला था, जिससे वैवाहिक संबंध प्रमाणित होता है।
  • नामांकित पुत्र अतुल कुमार सिंह की आयु मृत्यु के समय 34 वर्ष थी, अतः वह पारिवारिक पेंशन के लिए अयोग्य थे।
  • पति के पेंशन प्रपत्रों में नाम न होने के बावजूद, संबंधित अधिकारियों को याचिकाकर्ता की स्थिति की जांच कर उचित निर्णय लेना चाहिए था।
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प्रतिवादियों की ओर से उत्तर

राज्य सरकार एवं बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से अधिवक्ताओं ने उत्तर दिया कि:

  • मृतक सरकारी सेवक ने अपने पेंशन प्रपत्रों में पत्नी का नाम नहीं लिखा था।
  • अतुल कुमार सिंह को नामांकित किया गया था, अतः याचिकाकर्ता का दावा अमान्य है।

न्यायालय का विश्लेषण

न्यायालय ने उत्तर प्रदेश रिटायरमेंट लाभ नियमावली, 1961 का परीक्षण करते हुए कहा कि नियम 3(3) के अनुसार “परिवार” में पत्नी शामिल होती है। नियम 6 के अनुसार नामांकन केवल परिवार के सदस्य के पक्ष में किया जा सकता है।

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न्यायमूर्ति चौहान ने कहा:

“यह विवादित नहीं है कि याचिकाकर्ता मृत सरकारी सेवक की विधिक पत्नी हैं। यह ग्राम प्रधान के प्रमाणपत्र एवं परिवार न्यायालय के निर्णय से सिद्ध है, और इस तथ्य को विवादित नहीं किया गया है।”

न्यायालय ने केरल हाईकोर्ट के निर्णय Union of India v. Sathikumari Amma, 2025 SCC OnLine Ker 539, का उल्लेख करते हुए कहा:

“पारिवारिक पेंशन मृत कर्मचारी की संपत्ति का हिस्सा नहीं है और उसे किसी घोषणा या नामांकन से समाप्त नहीं किया जा सकता। कर्मचारी अपनी वैध पत्नी को पेंशन से वंचित नहीं कर सकता।”

न्यायालय ने यह भी कहा:

“पारिवारिक पेंशन विधिसम्मत पत्नी का वैधानिक अधिकार है और उसे मृत कर्मचारी के एकतरफा निर्णय से नकारा नहीं जा सकता। यह किसी दया पर आधारित नहीं बल्कि विधिसम्मत हक है।”

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निर्णय

अंततः न्यायालय ने कहा:

“याचिकाकर्ता स्वर्गीय प्रभु नारायण सिंह की विधिक पत्नी हैं और उनके पास जीविकोपार्जन का अन्य कोई साधन नहीं है। अतः वे पारिवारिक पेंशन की हकदार हैं। दिनांक 21.09.2020 का आदेश रद्द किया जाता है और प्रतिवादी संख्या 3 को निर्देशित किया जाता है कि याचिकाकर्ता को पारिवारिक पेंशन तत्काल प्रदान की जाए।”

याचिका स्वीकार कर ली गई, एवं पक्षकारों को व्यय वहन करने का कोई आदेश नहीं दिया गया।

केस विवरण:

  • मामला: उर्मिला सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 4 अन्य
  • याचिका संख्या: रिट – A संख्या 5545 / 2021
  • पीठ: न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान
  • याचिकाकर्ता के अधिवक्ता: जितेन्द्र प्रसाद, नीरज कुमार सिंह, राजेश कुमार सिंह
  • प्रतिवादी अधिवक्ता: सीएससी, जय राम पांडेय, सुनील कुमार दुबे

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