हमारी सेनाओं का मनोबल मत गिराइए: पहलगाम हमले की जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले की न्यायिक जांच की मांग करने वाली जनहित याचिका (PIL) को खारिज करते हुए तीखी टिप्पणी की कि क्या इस तरह की याचिकाओं का उद्देश्य देश की सुरक्षा बलों का मनोबल गिराना है।

यह याचिका न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष उल्लेख की गई थी। अदालत ने इसके समय और उद्देश्य को लेकर गंभीर आपत्ति जताई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने तीखे शब्दों में पूछा, “क्या आप हमारी सेनाओं का मनोबल इस तरह गिराना चाहते हैं? जनहित याचिका दाखिल करने से पहले जिम्मेदारी दिखाइए, आपका देश के प्रति भी एक कर्तव्य है।”

पीठ ने यह स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी अभियानों जैसे मामलों की जांच न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने पूछा, “हम सुप्रीम कोर्ट के जज कब से इन मामलों के विशेषज्ञ हो गए?” अदालत ने याचिका को सुनवाई योग्य नहीं माना और उस पर आगे विचार करने से इनकार कर दिया।

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इस जनहित याचिका को एक अज्ञात याचिकाकर्ता ने 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद दाखिल किया था, जिसमें 26 लोगों की जान गई थी, जिनमें अधिकांश आम नागरिक थे। याचिका में इस घटना की स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग की गई थी, साथ ही देश के विभिन्न राज्यों में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा को लेकर चिंता भी जताई गई थी।

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हालांकि, अदालत ने यह इंगित किया कि याचिका के प्रारंभिक निवेदन में छात्रों की सुरक्षा से संबंधित कोई स्पष्ट प्रार्थना नहीं की गई थी। पीठ ने इस याचिका को “गलत समय पर दाखिल की गई और संवेदनशीलता को न समझने वाली” बताते हुए सख्त नाराजगी जाहिर की। “यह वह समय नहीं है। यह वह घड़ी है जब हर नागरिक एकजुट हो रहा है। यह हमें स्वीकार्य नहीं है। मामले की गंभीरता को देखिए,” अदालत ने कहा।

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पीठ में शामिल न्यायमूर्ति एन.के. सिंह ने यह सुझाव दिया कि कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा से संबंधित याचिका उचित हाईकोर्ट में दाखिल की जानी चाहिए। उन्होंने कहा, “छात्रों को लेकर जो प्रार्थना है, उसके लिए आप हाईकोर्ट का रुख करें।”

याचिकाकर्ता ने यह सफाई दी कि याचिका विभिन्न राज्यों में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों की ओर से चिंता के रूप में दाखिल की गई थी, जिन्हें हमले के बाद बदले की भावना से खतरा हो सकता है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने पहले ही अन्य राज्यों में रह रहे कश्मीरी निवासियों और छात्रों की सुरक्षा के लिए समन्वय हेतु अपने मंत्रियों को भेजा था।

इसके बावजूद, सुप्रीम कोर्ट अपने रुख पर अडिग रहा और अंततः याचिकाकर्ता को छात्र सुरक्षा से संबंधित मुद्दों के लिए संबंधित हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने की छूट देते हुए याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यहां तक कहा कि “यह मामला हाईकोर्ट भी न जाए,” और तर्क दिया कि यह विषय न्यायिक हस्तक्षेप का उपयुक्त क्षेत्र नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस PIL को खारिज किया जाना इस बात को रेखांकित करता है कि न्यायपालिका राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी कार्रवाई जैसे मामलों में हस्तक्षेप से परहेज करती है, खासकर तब जब सरकार और सुरक्षा एजेंसियां पूरी सतर्कता के साथ कार्य कर रही हों। पीठ की टिप्पणियां इस व्यापक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों से निपटने का कार्य कार्यपालिका और जांच एजेंसियों के अधीन आता है, न कि न्यायिक जांच के माध्यम से।

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