ओडिशा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी लोक सेवक के खिलाफ जांच का आदेश देने से पहले मजिस्ट्रेट को उसकी सफाई सुननी होगी और उसके वरिष्ठ अधिकारी से रिपोर्ट प्राप्त करनी होगी। यह निर्णय भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 175(4) के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के महत्व को रेखांकित करता है। न्यायमूर्ति जी. सतपथी ने यह फैसला प्रज्ञा प्रकाश नायक बनाम ओडिशा राज्य एवं अन्य (CRLMP No. 107/2025) मामले में सुनाया, जिसमें नए आपराधिक कानून के तहत निर्धारित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के सख्त अनुपालन पर जोर दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक रिट याचिका से संबंधित था, जो प्रज्ञा प्रकाश नायक द्वारा संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत दायर की गई थी। इसमें उन्होंने अपराध शाखा द्वारा जांच और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी, जिन पर गलत तरीके से हिरासत में लेने, उत्पीड़न और यातना देने के आरोप लगाए गए थे।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उन्हें और उनकी पत्नी को 6.2 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का शिकार बनाया गया था, जिसके कारण 2021 में इंफोसिटी और एयरफील्ड पुलिस स्टेशनों में राजीव लोचन दास और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
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हालांकि, याचिकाकर्ता का आरोप था कि जांच के दौरान भुवनेश्वर के तत्कालीन पुलिस उपायुक्त (DCP) और अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने उन पर अपने केस वापस लेने का दबाव बनाया। जब उन्होंने इनकार कर दिया, तो अधिकारियों ने कथित तौर पर उन्हें बंदूक की नोक पर अगवा कर लिया, अवैध रूप से हिरासत में रखा और उनके परिवार को मानसिक और शारीरिक यातना दी।
याचिकाकर्ता ने इस संबंध में मंचेश्वर पुलिस स्टेशन में कई शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया गया। इसके बाद नायक ने भुवनेश्वर की प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (JMFC-II) के समक्ष अपील की, जिन्होंने BNSS की धारा 175(3) के तहत जांच का आदेश दिया।
कानूनी मुद्दे
हाईकोर्ट के समक्ष प्रमुख कानूनी प्रश्न यह था:
- क्या JMFC-II, भुवनेश्वर ने BNSS की धारा 175(3) के तहत पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने में अपनी शक्तियों का सही उपयोग किया?
- क्या BNSS की धारा 175(4) के तहत अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन किया गया, जिसमें लोक सेवक की सफाई सुनने और उसके वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट प्राप्त करने का प्रावधान है?
- क्या इन प्रक्रियाओं के उल्लंघन से मजिस्ट्रेट का आदेश अमान्य हो जाता है?
अदालत की टिप्पणियां और फैसला
न्यायमूर्ति जी. सतपथी ने BNSS के प्रावधानों की गहन जांच के बाद पाया कि मजिस्ट्रेट का आदेश प्रक्रियात्मक त्रुटियों से ग्रसित था, जिससे उसकी वैधता पर प्रश्न उठता है। अदालत ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:
1. अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन आवश्यक
BNSS की धारा 175(4) स्पष्ट रूप से कहती है कि मजिस्ट्रेट को जांच का आदेश देने से पहले संबंधित लोक सेवक के वरिष्ठ अधिकारी से रिपोर्ट प्राप्त करनी होगी और आरोपी की सफाई पर विचार करना होगा। JMFC-II, भुवनेश्वर ने इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया था, जिससे उनका आदेश अवैध हो गया।
2. BNSS और CrPC में अंतर
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि BNSS की धारा 175(3) और 175(4) CrPC की धारा 156(3) से अलग है। जबकि CrPC मजिस्ट्रेट को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता था, BNSS ने लोक सेवकों के खिलाफ गलत शिकायतों से बचाव के लिए सख्त प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय लागू किए हैं।
3. मजिस्ट्रेट को न्यायिक विवेक का प्रयोग करना चाहिए
अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट को केवल शिकायतें पुलिस को भेजने की “डाकघर” जैसी भूमिका नहीं निभानी चाहिए। उसे पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मामले की परिस्थितियों में राज्य मशीनरी द्वारा जांच की आवश्यकता है या नहीं।
न्यायमूर्ति सतपथी ने कहा:
“मजिस्ट्रेट को केवल शिकायत मिलने पर जांच का आदेश नहीं देना चाहिए। उसे पहले यह तय करना होगा कि क्या राज्य एजेंसियों की जांच वास्तव में आवश्यक है या नहीं।”
4. पुलिस अधिकारियों का कर्तव्य
अदालत ने यह भी देखा कि पुलिस अधिकारियों द्वारा एफआईआर दर्ज न करना कानून के उल्लंघन के समान है। हाईकोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि न्यायिक आदेशों की अवहेलना किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकती।
अदालत का फैसला
इन सभी निष्कर्षों के आधार पर ओडिशा हाईकोर्ट ने JMFC-II के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को पुनः विचार के लिए वापस भेज दिया।
अदालत ने मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वे जांच का आदेश देने से पहले निम्नलिखित शर्तों का पालन करें:
- शिकायतकर्ता को BNSS की धारा 173(4) के तहत आवश्यक हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश दें।
- आरोपी अधिकारियों के वरिष्ठ अधिकारी से घटना की विस्तृत रिपोर्ट प्राप्त करें।
- आरोपी लोक सेवकों को अपनी सफाई पेश करने का अवसर दें।
- यह तय करें कि क्या पुलिस जांच वास्तव में आवश्यक है, या पहले से उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर मामला आगे बढ़ाया जा सकता है।