महिलाओं के कार्यस्थल पर अधिकारों को सशक्त करते हुए ओडिशा हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि ठेका आधार पर कार्यरत महिला कर्मचारी को मातृत्व अवकाश और उससे संबंधित लाभों का अधिकार है। अदालत ने कहा कि केवल रोजगार की प्रकृति के आधार पर इन अधिकारों से इनकार करना गरिमा और कल्याण के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
यह फैसला अनिंदिता मिश्रा के मामले में आया, जिन्हें मई 2014 में राज्य सरकार ने संविदा (ठेका) के आधार पर नियुक्त किया था। अगस्त 2016 में बच्ची के जन्म के बाद उन्होंने छह माह के मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया था, जिसे चिकित्सा प्रमाणपत्रों के साथ समर्थित किया गया था। लेकिन राज्य सरकार ने यह कहते हुए उनका आवेदन ठुकरा दिया कि ठेका कर्मचारियों को मातृत्व लाभ नहीं दिए जाते।
एकल पीठ ने 2022 में उनके पक्ष में निर्णय दिया था और सरकार को मातृत्व अवकाश प्रदान करने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार ने इस आदेश के खिलाफ अपील की।

मुख्य न्यायाधीश दीक्षित कृष्ण श्रीपद और न्यायमूर्ति मृगंक शेखर साहू की खंडपीठ ने अपील पर सुनवाई करते हुए एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखा और राज्य सरकार के रुख की आलोचना की। कोर्ट ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि कोई महिला ठेका कर्मचारी है, उसे मातृत्व लाभ से वंचित करना मानवता और नारीत्व की अवधारणाओं के लिए अपमानजनक है।”
पीठ ने स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश का उद्देश्य मां और बच्चे — दोनों के संवैधानिक और मानवीय अधिकारों की रक्षा करना है। न्यायालय ने कहा, “मातृत्व अवकाश की अवधारणा ‘शून्य विछोह’ के सिद्धांत पर आधारित है, जिससे स्तनपान कराने वाली मां और नवजात शिशु के बीच कोई दूरी न रहे… एक स्तनपान कराती मां को अपने बच्चे को स्तनपान कराने का मौलिक अधिकार है… इसी तरह एक शिशु को भी अच्छे स्वास्थ्य में पालन-पोषण का अधिकार है।”
प्राचीन शास्त्रों का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा: “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” — अर्थात जहां महिलाओं का सम्मान होता है, वहां देवता निवास करते हैं। अदालत ने राज्य से आग्रह किया कि वह महिलाओं की सुरक्षा और कल्याण से जुड़े आदर्शों के अनुरूप अपनी नीतियों को संवेदनशील बनाए, विशेषकर असंगठित और संविदा क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के लिए।
अंतरराष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की संधि (ICESCR) के अनुच्छेद 10(2) का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने दोहराया कि गर्भावस्था के पहले और बाद में माताओं को विशेष सुरक्षा देना एक कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी है, और रोजगार की प्रकृति के आधार पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
यह फैसला पूरे देश में ठेका महिला कर्मचारियों के अधिकारों के लिए एक मील का पत्थर माना जा रहा है, जो स्पष्ट करता है कि मातृत्व लाभ कोई सुविधा नहीं, बल्कि संविधान और मानव मूल्यों पर आधारित एक मौलिक अधिकार है।