सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि संपत्ति पर बेनामी का विवाद है, और वह विवाद तथ्यात्मक है, तो ऐसे मामले में केवल याचिका की बातों के आधार पर वाद (plaint) को सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 7 के आदेश 11 के अंतर्गत प्रारंभिक चरण में खारिज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों का निपटारा साक्ष्य के आधार पर होना चाहिए, न कि केवल कथनों पर।
यह निर्णय न्यायमूर्ति पंकज मित्थल और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने विशेष अनुमति याचिका (सिविल) सं. 4673 और 4674 / 2023 में सुनाया, जो एक परिवारिक संपत्ति विवाद से संबंधित है। याचिकाएं स्म्ट. शैफाली गुप्ता (मूल वाद में प्रतिवादी सं. 2) और दीपक लालचंदानी (प्रतिवादी सं. 5), जो कुछ विवादित संपत्तियों के उपरांत क्रेता हैं, द्वारा दायर की गई थीं।
मामले की पृष्ठभूमि
श्रीमती विद्या देवी गुप्ता और उनके पुत्र सुदीप गुप्ता ने नियमित वाद सं. 630A/2018 दायर किया जिसमें पारिवारिक संपत्तियों के बंटवारे, कब्जे, घोषणा, अनिवार्य व स्थायी निषेधाज्ञा और हिसाब-किताब की मांग की गई थी। वाद में परिवार के कई सदस्य और दो उपरांत क्रेता (subsequent purchasers) पक्षकार बनाए गए।
वादियों ने दावा किया कि 1982 में ‘हिमालय टेलर्स’ नाम से एक पारिवारिक व्यवसाय शुरू हुआ, जिसे परिवार के सदस्यों द्वारा मिलकर चलाया गया। इस व्यवसाय से हुई आय से संपत्तियाँ विभिन्न पारिवारिक सदस्यों के नाम खरीदी गईं। वादीगण ने इन संपत्तियों को संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति बताया और शैफाली गुप्ता द्वारा बेची गई कुछ संपत्तियों को अवैध बताया।
Order VII Rule 11 CPC के तहत वाद खारिज करने की याचिका
यह याचिका उपरांत क्रेताओं द्वारा दायर की गई, जिसमें कहा गया कि वाद बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988 की धारा 4 के अंतर्गत निषिद्ध है क्योंकि संपत्तियाँ बेनामी हैं।
वादियों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि सभी संपत्तियाँ 2016 के संशोधन से पूर्व खरीदी गई थीं और ये विवाद संयुक्त परिवार की संपत्ति से संबंधित है, न कि बेनामी लेनदेन से। वादीगण ने यह भी कहा कि यह अधिनियम संयुक्त परिवार की संपत्तियों के बंटवारे पर रोक नहीं लगाता।
निचली अदालतों का निर्णय
प्रथम दृष्टि की अदालत ने यह याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह तथ्य तय करना कि संपत्तियाँ व्यक्तिगत हैं या संयुक्त परिवार की, एक साक्ष्य आधारित मुद्दा है। यह निर्णय उच्च न्यायालय द्वारा भी बरकरार रखा गया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शैफाली गुप्ता ने स्वयं Order VII Rule 11 के तहत याचिका नहीं लगाई थी और ना ही निचली अदालतों के निर्णय के विरुद्ध पुनरीक्षण याचिका दायर की थी, अतः वह इस मुद्दे पर ‘पीड़ित पक्षकार’ नहीं मानी जा सकतीं।
कोर्ट ने यह भी कहा कि उपरांत क्रेताओं के पास संपत्ति के वास्तविक स्वभाव की कोई व्यक्तिगत जानकारी नहीं हो सकती और वे यह नहीं कह सकते कि संपत्तियाँ बेनामी हैं।
कोर्ट ने कहा:
“जहाँ यह तर्क दिया गया हो कि वाद बेनामी लेनदेन की अपवाद श्रेणी में आता है, वहां यह एक विवादित तथ्यात्मक प्रश्न बन जाता है जिसे साक्ष्य के आधार पर तय किया जाना चाहिए। अतः वाद को केवल प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज नहीं किया जा सकता।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 14 के तहत महिला के स्वामित्व को पूर्ण माना गया है, लेकिन यह धारा वाद दाखिल करने पर कोई रोक नहीं लगाती।
निर्णय
दोनों विशेष अनुमति याचिकाएं खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा:
“प्रतिवादी पक्ष को कोई विधिक क्षति नहीं हुई है और ना ही कोई अन्याय हुआ है जिससे कि अनुच्छेद 136 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट का विवेकाधिकार प्रयोग किया जाए।”
इस प्रकार, याचिकाएं खारिज कर दी गईं और निचली अदालतों द्वारा वाद को सुनवाई के लिए जारी रखने का आदेश बरकरार रखा गया।