इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसके तहत मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान दर्ज किए बिना आरोपी को नोटिस जारी कर दिया था। अदालत ने कहा कि यह प्रक्रिया भारतिय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 223 में निर्धारित वैधानिक प्रक्रिया के विरुद्ध है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह याचिका राकेश कुमार चतुर्वेदी द्वारा BNSS की धारा 528 के तहत दायर की गई थी, जिसमें 10 फरवरी 2025 को पारित उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसके अंतर्गत अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट-द्वितीय, लखनऊ ने शिकायत संख्या 807/2025 में बिना शिकायतकर्ता या गवाहों का बयान दर्ज किए, याची को नोटिस जारी कर दिया था।

याची की ओर से प्रस्तुत तर्क
याची की ओर से अधिवक्ता श्री शांतनु शर्मा ने तर्क दिया कि BNSS की धारा 223 स्पष्ट रूप से यह अनिवार्य बनाती है कि मजिस्ट्रेट को आरोपी को सुनवाई का अवसर देने से पहले शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान शपथ पर दर्ज करने होते हैं।
याची ने अपने पक्ष में निम्नलिखित निर्णयों का हवाला दिया:
- प्रतीक अग्रवाल बनाम राज्य व अन्य (धारा 482 सीआरपीसी, याचिका संख्या 10390/2024),
- बसनगौड़ा आर. पाटिल बनाम शिवानंद एस. पाटिल (कर्नाटक उच्च न्यायालय, 2024 SCC Online Kar 96), और
- सुब्य एंटनी बनाम न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट (केरल उच्च न्यायालय, क्रि.मु. 508/2025, दिनांक 22.01.2025)।
राज्य की ओर से प्रस्तुत पक्ष
राज्य की ओर से अपर सरकारी अधिवक्ता श्री अनुराग वर्मा ने याचिका का विरोध तो किया, लेकिन वैधानिक स्थिति का खंडन नहीं कर सके। उन्होंने सुझाव दिया कि चूंकि शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान अभी तक दर्ज नहीं हुए हैं, इसलिए आदेश को निरस्त कर मामला मजिस्ट्रेट को वैधानिक प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ाने हेतु भेजा जा सकता है।
अदालत की महत्वपूर्ण टिप्पणियां
न्यायमूर्ति रजनीश कुमार ने कहा कि रिकॉर्ड के अनुसार, बिना कोई बयान दर्ज किए आरोपी को नोटिस जारी किया गया, जो कि BNSS की धारा 223 का उल्लंघन है।
अदालत ने स्पष्ट किया:
“शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान दर्ज करने के बाद ही मजिस्ट्रेट को आरोपी को सुनवाई का अवसर देना चाहिए, जिससे कि यदि अदालत को शिकायत में कोई ठोस आधार न लगे, तो वह उसे धारा 226 BNSS के तहत खारिज कर सके।”
कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख करते हुए हाईकोर्ट ने दोहराया:
“मजिस्ट्रेट को संज्ञान लेने से पहले शिकायतकर्ता का शपथ पर बयान और उपस्थित गवाहों का बयान लेना आवश्यक है। उसके बाद ही आरोपी को नोटिस जारी कर सुनवाई का अवसर दिया जा सकता है।”
अदालत ने यह भी ध्यान में लिया कि याची को जो नोटिस जारी हुआ, वह अपूर्ण था – उसमें केवल याची का नाम भरा गया था, बाकी सभी स्थान रिक्त थे। कोर्ट ने निर्देश दिया कि भविष्य में ऐसे अपूर्ण नोटिस जारी न किए जाएं।
अंतिम आदेश
उक्त प्रक्रिया को गैरकानूनी मानते हुए अदालत ने कहा:
“याचिका स्वीकृत की जाती है। अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट-द्वितीय, लखनऊ द्वारा पारित दिनांक 10.02.2025 का आदेश रद्द किया जाता है।”
अदालत ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह पहले शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान दर्ज करे और फिर विधि अनुसार कार्यवाही करे।