छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में यह स्पष्ट किया कि नारकोटिक पदार्थ के साथ-साथ न्यूट्रल सब्स्टेंस (तटस्थ पदार्थ) को भी शामिल करते हुए, जब्त की गई मात्रा का निर्धारण किया जाएगा कि वह “छोटी,” “मध्यम,” या “व्यावसायिक” श्रेणी में आती है या नहीं। यह फैसला नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्स्टांसेज एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) के तहत किया गया।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने यह निर्णय क्रिमिनल अपील संख्या 260 और 349 (2021) पर सुनाया, जो अपीलकर्ता अंबिका विश्वकर्मा और नारायण दास द्वारा उनकी धारा 21(c) एनडीपीएस एक्ट के तहत सजा को चुनौती देने के लिए दाखिल की गई थी।
पृष्ठभूमि
20 सितंबर 2018 को, पुलिस ने अंबिकापुर के परसा मिडिल स्कूल के पास नारकोटिक्स के अवैध परिवहन की सूचना पर अपीलकर्ताओं को गिरफ्तार किया। तलाशी में अंबिका विश्वकर्मा के पास से कोडीन फॉस्फेट युक्त 143 बोतल आर.सी. कफ कफ सिरप और नारायण दास के पास से ऐसी ही 93 बोतलें बरामद हुईं। कुल मिलाकर 236 बोतलें जब्त की गईं, जो एनडीपीएस एक्ट के तहत नार्कोटिक पदार्थ हैं।
विशेष न्यायाधीश (एनडीपीएस एक्ट), सरगुजा ने 21 जनवरी 2021 को अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराते हुए 12 साल के कठोर कारावास और ₹1,10,000 के जुर्माने की सजा सुनाई। अपीलकर्ताओं ने इस सजा को चुनौती दी, यह दावा करते हुए कि इसमें प्रक्रिया संबंधी चूकें और गलत मात्रा वर्गीकरण किया गया।
प्रमुख कानूनी मुद्दे
- ड्रग की मात्रा की गणना:
अपीलकर्ताओं ने यह तर्क दिया कि केवल कोडीन फॉस्फेट (मादक पदार्थ) की शुद्ध मात्रा को ही वर्गीकरण के लिए मान्य माना जाना चाहिए, सिरप जैसे न्यूट्रल सब्स्टेंस को नहीं। उन्होंने E. Michael Raj बनाम नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (2008) जैसे फैसलों का हवाला दिया। - प्रक्रियात्मक सुरक्षा का पालन:
बचाव पक्ष ने धारा 50 एनडीपीएस एक्ट के तहत यह दावा किया कि अपीलकर्ताओं को मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में तलाशी का अधिकार नहीं बताया गया। - सजा का न्यूनतम सीमा से अधिक होना:
अपीलकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि धारा 21(c) के तहत न्यूनतम 10 वर्षों की सजा से अधिक 12 वर्षों की सजा बिना विशेष कारण बताए दी गई।
अदालत का अवलोकन और निर्णय
हाईकोर्ट ने अपीलकर्ताओं का न्यूट्रल सब्स्टेंस को अलग मानने का तर्क खारिज कर दिया और हिरा सिंह बनाम भारत संघ (2020) के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। अदालत ने कहा:
“यदि केवल मादक पदार्थ की शुद्ध मात्रा को प्रासंगिक माना गया तो एनडीपीएस एक्ट का उद्देश्य विफल हो जाएगा। हानिकारक या हानिप्रद पदार्थ पूरे मिश्रण में होता है, जिसमें न्यूट्रल सब्स्टेंस भी शामिल है।”
प्रक्रियात्मक सुरक्षा पर अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी ने धारा 50 के तहत अपीलकर्ताओं को उनके अधिकारों की जानकारी दी थी। गवाहों के बयान विरोधाभासी थे, लेकिन पुलिस की गवाही को विश्वसनीय माना गया।
सजा के मुद्दे पर, अदालत ने सजा को 12 वर्ष से घटाकर 10 वर्ष कर दिया, यह कहते हुए कि न्यूनतम सजा से अधिक सजा के लिए विशेष कारणों का उल्लेख नहीं किया गया।
अदालत ने सजा को आंशिक रूप से कम करते हुए दोषसिद्धि को बरकरार रखा। इस निर्णय ने एनडीपीएस एक्ट की सख्त व्याख्या को पुनः स्थापित किया, यह कहते हुए कि ड्रग दुरुपयोग और तस्करी का समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।