छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि मादक द्रव्य और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम (NDPS Act) के तहत की गई मामूली प्रक्रियागत चूक उन मामलों में अभियोजन को निरस्त नहीं करती, जहां मादक पदार्थ की बरामदगी विश्वसनीय साक्ष्यों से सिद्ध हो जाती है। कोर्ट ने यह टिप्पणी CRA नंबर 98/2024 की सुनवाई के दौरान की, जो कि जय सिंह द्वारा दायर एक अपील थी। जय सिंह को 117.100 किलोग्राम गांजा रखने के आरोप में दोषी ठहराया गया था।
यह अपील मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत हुई। अपीलकर्ता जय सिंह, उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के हसनपुर कसार का 32 वर्षीय निवासी है, जिसे विशेष न्यायाधीश (NDPS अधिनियम), कवर्धा द्वारा 13 दिसंबर 2023 को विशेष आपराधिक प्रकरण क्रमांक 492/2022 में दोषी ठहराते हुए एनडीपीएस एक्ट की धारा 20(b)(ii)(C) के तहत 11 साल की कठोर सजा और ₹1 लाख का जुर्माना लगाया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि

17 सितंबर 2022 को उप निरीक्षक नरेंद्र सिंह (PW-11) को सूचना मिली कि एक व्यक्ति पांच बैग गांजा के साथ जैन धर्मशाला, कवर्धा के पास बैठा है। ये बैग एक सफेद कार से उतारे गए थे, जो बिलासपुर की ओर भाग गई थी। सूचना दर्ज कर उच्चाधिकारियों को दी गई और दो स्वतंत्र गवाहों — बीरेंद्र झारिया और जाहूर उर्फ गब्बर — के साथ पुलिस टीम मौके पर पहुंची।
जय सिंह मौके पर पांच बैग के साथ मिला, जिनमें 25 प्लास्टिक से पैक पैकेट थे। आरोपी को धारा 50 के तहत उसके अधिकारों की जानकारी दी गई, जिसके बाद उसने तलाशी के लिए सहमति दी। तलाशी में गांजा बरामद हुआ, जिसका कुल वजन 117.100 किलोग्राम निकला। इसकी पुष्टि तौल गवाह और कार्यपालक मजिस्ट्रेट मोरध्वज साहू (PW-3) द्वारा समरूपीकरण और सैंपलिंग के माध्यम से हुई। बाद में राज्य फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (FSL), रायपुर ने सैंपल में गांजा की पुष्टि की।
कानूनी मुद्दे और तर्क
अभियुक्त के वकील श्री विकास प्रधान ने NDPS एक्ट की धारा 42, 50, 52, 52A, 55 और 57 के तहत प्रक्रियागत उल्लंघनों और सैंपलिंग व दस्तावेजीकरण से संबंधित स्टैंडिंग ऑर्डर नंबर 1/89 का पालन न किए जाने का हवाला देते हुए सजा को अवैध बताया। उन्होंने मालखाना रजिस्टर में विरोधाभास और FSL परीक्षण के लिए सैंपल भेजे जाने के सबूत न होने की बात कही।
वहीं शासन की ओर से अधिवक्ता श्री संघर्ष पांडे ने तर्क दिया कि बरामदगी सार्वजनिक स्थान से हुई थी, और धारा 43 के तहत पूर्व अनुमति या लिखित रिकॉर्ड की आवश्यकता नहीं होती।
कोर्ट की टिप्पणियाँ और निर्णय
कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की बात से सहमति जताते हुए कहा:
“चूंकि मादक पदार्थ सार्वजनिक स्थान से बरामद किए गए थे… इसलिए एनडीपीएस अधिनियम की धारा 43 लागू होती है और तलाशी से पूर्व सूचना का रिकॉर्डिंग या कारण लेखबद्ध करना आवश्यक नहीं है।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 50 केवल आरोपी की व्यक्तिगत तलाशी पर लागू होती है, न कि बैग या बर्तनों की तलाशी पर।
कोर्ट ने वर्ष 2025 के भारत आंबाले बनाम छत्तीसगढ़ राज्य के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए दोहराया:
“यदि धारा 52A की प्रक्रिया का पालन नहीं भी हुआ हो, परंतु अन्य साक्ष्य यदि अदालत को बरामदगी और मादक पदार्थ के कब्जे के संबंध में विश्वास दिलाते हैं, तो दोषसिद्धि को कायम रखा जा सकता है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रक्रियागत नियम निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने हेतु होते हैं, पर वे निरपेक्ष नहीं हैं। मूल बात यह है कि क्या समग्र साक्ष्य आरोपी के दोष को संदेह से परे सिद्ध करते हैं।
अंततः, कोर्ट ने पाया कि बचाव पक्ष किसी साक्ष्य से छेड़छाड़ या पूर्वाग्रह साबित नहीं कर सका। स्वतंत्र गवाहों, दस्तावेजों और फॉरेंसिक विश्लेषण ने अभियोजन के पक्ष को पुष्ट किया।
इस आधार पर अपील को खारिज करते हुए जय सिंह की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा गया। कोर्ट ने जेल अधीक्षक को निर्देश दिया कि वे आरोपी को सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार बताएँ।