दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बलात्कार से गर्भवती हुई नाबालिग लड़की को जबरन गर्भधारण के लिए मजबूर करना उसकी “सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अधिकार” का उल्लंघन है। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की एकल पीठ ने 15 वर्षीय बलात्कार पीड़िता के 27 हफ्ते के गर्भ के चिकित्सकीय समापन (MTP) की अनुमति दी और LNJP अस्पताल द्वारा मेडिकल बोर्ड की जांच में हुई देरी की कड़ी आलोचना की।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता एक 15 वर्षीय लड़की थी, जिसने अपने पिता और कानूनी सहायता वकील के माध्यम से दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया। उसका गर्भ अपने चचेरे भाई द्वारा किए गए बलात्कार के कारण ठहरा था। गर्भधारण की अवधि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971 (2021 में संशोधित) के तहत निर्धारित 24 सप्ताह की सीमा को पार कर चुकी थी।
इस संबंध में 9 अप्रैल 2025 को थाना मयूर विहार में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64 और यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 6 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। घटना 1 नवंबर 2024 को तब हुई जब पीड़िता अपने घर में छोटी बहन के साथ अकेली थी।
गर्भावस्था की जानकारी मिलने के बाद पीड़िता और उसके माता-पिता लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल गए और वहां से उन्हें LNJP अस्पताल रेफर किया गया। लेकिन अस्पताल ने गर्भपात की अनुमति के लिए अदालत के आदेश की मांग की।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायालय ने LNJP अस्पताल की देरी और अनदेखी की निंदा की। अदालत ने याद दिलाया कि उसने Minor R Thr. Mother H v. State (NCT of Delhi) और Minor L Thr. Guardian J v. State & Anr. मामलों में पहले ही यह निर्देश दिए थे कि बलात्कार पीड़िताओं की समय पर मेडिकल जांच की जाए और अस्पतालों में स्थायी मेडिकल बोर्ड गठित किए जाएं।
न्यायालय ने कहा:
“बलात्कारी के बच्चे को पीड़िता से जन्म देने के लिए मजबूर करना असहनीय पीड़ा का कारण बनेगा।”
“एक महिला को गर्भपात का अधिकार न देना और मातृत्व का बोझ जबरन डाल देना, उसके गरिमा के साथ जीवन जीने के मानवाधिकार का हनन है।”
“सोचना भी भयावह है कि वह पीड़िता, जो हर दिन अपने गर्भ में उस अपराध की याद ढो रही है, किस मानसिक स्थिति से गुजर रही होगी।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि बाल कल्याण समिति (CWC) द्वारा 9 अप्रैल को रेफर किए जाने के बावजूद मेडिकल बोर्ड की जांच एक सप्ताह से अधिक देरी से हुई।
दिए गए निर्देश
- LNJP अस्पताल को 18 अप्रैल 2025 को गर्भपात की प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया गया, जो सभी चिकित्सकीय सावधानियों के साथ किया जाएगा।
- भ्रूण के ऊतकों को साक्ष्य के तौर पर संरक्षित करने का आदेश दिया गया।
- समस्त चिकित्सा एवं प्रक्रिया से संबंधित व्यय राज्य सरकार वहन करेगी।
- यदि गर्भपात के दौरान बच्चा जीवित पैदा होता है तो उसकी देखभाल की व्यवस्था CWC द्वारा कानून के अनुसार की जाएगी।
- LNJP अस्पताल के अधीक्षक से जांच में देरी पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
प्रणालीगत सुधारों के निर्देश
अदालत ने पहले दिए गए निर्देशों को दोहराया और आगे बढ़ाया:
- दिल्ली की सभी बाल कल्याण समितियां (CWCs) 24 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था वाली बलात्कार पीड़िताओं के मामलों में दिल्ली उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति (DHCLSC) को सूचित करें ताकि तत्काल कानूनी हस्तक्षेप सुनिश्चित किया जा सके।
- अस्पतालों के मेडिकल बोर्ड कोर्ट के आदेश का इंतज़ार किए बिना ऐसे मामलों में पीड़िताओं की तत्काल जांच करें।
निष्कर्ष
यह निर्णय यौन हिंसा की शिकार पीड़िताओं के लिए प्रजनन संबंधी स्वायत्तता और त्वरित चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता को रेखांकित करता है। न्यायालय ने कहा:
“यह मामला एक बार फिर यह उजागर करता है कि बलात्कार की पीड़िताएं आज भी यह नहीं जानतीं कि उन्हें उचित न्यायिक मंच कौन-सा और कैसे प्राप्त होगा…”
याचिका को निर्देशों के साथ मंजूर करते हुए निस्तारित कर दिया गया।