सुप्रीम कोर्ट ने Md. Firoz Ahmad Khalid बनाम मणिपुर राज्य व अन्य मामले में स्पष्ट किया है कि वक़्फ़ अधिनियम, 1995 की धारा 14(1)(b)(iii) के तहत वक़्फ़ बोर्ड में नियुक्त राज्य बार काउंसिल का कोई मुस्लिम सदस्य, बार काउंसिल की सदस्यता समाप्त होते ही वक़्फ़ बोर्ड की सदस्यता से भी वंचित हो जाएगा। कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट की खंडपीठ के निर्णय को रद्द करते हुए एकल न्यायाधीश द्वारा याचिका खारिज करने के आदेश को पुनः बहाल किया।
पृष्ठभूमि:
Md. Firoz Ahmad Khalid को 26 दिसंबर 2022 को मणिपुर बार काउंसिल का सदस्य चुना गया था। इसके बाद उन्हें राज्य सरकार द्वारा 8 फरवरी 2023 को वक़्फ़ अधिनियम, 1995 की धारा 14(1)(b)(iii) व 14(3) के तहत सातवें वक़्फ़ बोर्ड में सदस्य नियुक्त किया गया। यह नियुक्ति उत्तरदाता संख्या 3 के स्थान पर की गई थी, जो पहले ही बार काउंसिल की सदस्यता समाप्त कर चुके थे।
उत्तरदाता संख्या 3 ने इस नियुक्ति को Writ Petition (Civil) No. 304 of 2023 के माध्यम से मणिपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क था कि वक़्फ़ अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो यह कहे कि बार काउंसिल की सदस्यता समाप्त होने पर वक़्फ़ बोर्ड की सदस्यता भी समाप्त हो जाएगी। एकल न्यायाधीश ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि धारा 14(1)(b) के स्पष्टीकरण II (Explanation II) से यह स्पष्ट होता है। परंतु 23 नवंबर 2023 को खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के फैसले को पलटते हुए उत्तरदाता संख्या 3 को पुनः बोर्ड सदस्य बना दिया, यह कहते हुए कि यह स्पष्टीकरण केवल संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों पर लागू होता है, बार काउंसिल सदस्यों पर नहीं।
पक्षों की दलीलें:
अपीलकर्ता और मणिपुर राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने दलील दी कि धारा 14(1)(b) में मुस्लिम बार काउंसिल सदस्यों को वक़्फ़ बोर्ड की संरचना का हिस्सा स्पष्ट रूप से बनाया गया है। उनका कहना था कि खंडपीठ की व्याख्या विधायी उद्देश्य के विपरीत है और जब कोई व्यक्ति बार काउंसिल का सदस्य नहीं रहता, तो वह पात्र नहीं रह जाता।
इसके विपरीत, उत्तरदाता संख्या 3 की ओर से वकीलों ने State of Maharashtra vs. Shaikh Mahemud (2022) और Shri Asif S/o. Shaukat Qureshi vs. State of Maharashtra (2016) जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि Explanation II में बार काउंसिल सदस्यों का उल्लेख न करना जानबूझकर किया गया है, और इसका अर्थ यह है कि यह उनके लिए लागू नहीं होता (expressio unius est exclusio alterius सिद्धांत का प्रयोग करते हुए)।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण व निर्णय:
न्यायमूर्ति एम.एम. सुंद्रेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि स्पष्टीकरण II एक व्याख्यात्मक प्रावधान है, न कि पूर्ण या सीमित। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि धारा 14(1)(b)(i) से (iii) के तहत पात्रता संसद, राज्य विधानमंडल या बार काउंसिल की सक्रिय सदस्यता पर निर्भर करती है।
न्यायालय ने कहा:
“ऐसी सदस्यता के बिना… बोर्ड में उनकी सदस्यता का आधार ही समाप्त हो जाता है।”
कोर्ट ने माना कि यदि किसी पूर्व बार काउंसिल सदस्य को वक़्फ़ बोर्ड में बनाए रखा जाए, तो यह विधायी मंशा के विरुद्ध होगा और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत अनुचित वर्गीकरण उत्पन्न करेगा।
अदालत ने यह भी कहा कि “for the removal of doubts” शब्दावली यह दर्शाती है कि Explanation II केवल स्पष्टीकरण देने के लिए है और इसका प्रभाव धारा 14(1)(b) की सभी उपधाराओं पर पड़ता है, जिसमें बार काउंसिल सदस्य भी शामिल हैं।
अदालत ने expressio unius est exclusio alterius सिद्धांत को इस मामले में अस्वीकार करते हुए कहा:
“इस सिद्धांत को लागू करने से प्रावधान की मंशा के विरुद्ध व्याख्या होगी, जिससे अनुचित और अन्यायपूर्ण वर्गीकरण उत्पन्न होगा।”
अंततः, कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि कोई पूर्व बार काउंसिल सदस्य केवल उसी स्थिति में निर्वाचन मंडल का हिस्सा हो सकता है जब कोई पात्र मुस्लिम सदस्य मौजूद न हो।:
सुप्रीम कोर्ट ने खंडपीठ के निर्णय को रद्द करते हुए एकल न्यायाधीश के निर्णय को बहाल कर दिया और Md. Firoz Ahmad Khalid की वक़्फ़ बोर्ड में नियुक्ति को सही ठहराया।