अभियोजन कहानी की सत्यता पर संदेह- इलाहाबाद हाईकोर्ट  ने हत्या के दोषी को बरी किया

हाल ही में, इलाहाबाद हाईकोर्ट  ने एक हत्या के दोषी को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष की कहानी की सत्यता पर संदेह है।

जस्टिस कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजीत सिंह की पीठ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित फैसले और आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अपने आदेश से अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 302/34 के तहत दोषी ठहराया। आजीवन कारावास के लिए।

इस मामले में आरोपी और नौशाबा के बीच घटना के तीन साल पहले निकाह हुआ था.

आरोपी के गांव की ही एक लड़की से नाजायज संबंध थे और इसी बात को लेकर पति-पत्नी में विवाद हो गया और इसी वजह से आरोपी का देवर पहले मुखबिर की बेटी से शारीरिक संबंध बनाना चाहता था. .

घटना के दो महीने पहले आरोपी अपने साले हाजी सैयद, सल्मू और इस्लाम के साथ मुखबिर के घर पहुंचा था और मुखबिर से अपनी बेटी को उसके ससुराल वापस भेजने का अनुरोध किया था।

उक्त वादे पर मुखबिर ने अपनी बेटी को उनके साथ वापस भेज दिया। आरोपी, उसका साला हाजी सैयद, सल्मू और इस्लाम मुखबिर के घर आए और उसकी बेटी को इस बहाने ले गए कि उन्होंने उसके लिए एक ‘ताबीज’ तैयार की है।

देर रात तक जब मुखबिर की बेटी नहीं लौटी तो उसकी तलाश की गई लेकिन उसका पता नहीं चला।

तस्लीम और दिलशाद ने उसे बताया कि उन्होंने ओमपाल जाट के बेटे आदेश के खेत से चीख-पुकार सुनी थी। तस्लीम और दिलशाद दोनों घटना स्थल के पास पहुंचे और आरोपी सरताज, उसके साले हाजी सैयद, सल्मू और इस्लाम को दुप्पटे से गला घोंट कर नौशाबा की हत्या करते देखा।

आईपीसी की धारा 302 और 342 के तहत मामला आरोपी-अपीलार्थी सरताज, हाजी सैयद, सामलू और इस्लाम के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

पीठ के समक्ष विचार के लिए मुद्दा था:

क्या अभियुक्त ने मृतक, नौशाबा की हत्या की है जैसा कि अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया है?

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खंडपीठ ने पाया कि अभियोजन पक्ष की कहानी संदिग्ध प्रतीत होती है क्योंकि कथित गवाह पीडब्लू-2, दिलशाद और एफ.आई.आर. तसलीम ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता से कहा कि उन्होंने घटना को सभी आरोपियों द्वारा होते हुए देखा है, उन्हें पुलिस से जांच के दौरान समर्थन नहीं मिला क्योंकि पुलिस ने केवल आरोपी/अपीलार्थी-सरताज और अन्य आरोपी व्यक्तियों को चार्जशीट किया था, जिन्हें बरी कर दिया गया था पुलिस।

हाईकोर्ट  ने पूरे मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य का आकलन करने के बाद कहा कि “………..अभियोजन पक्ष द्वारा अपने मामले को साबित करने के लिए जो कहानी पेश की गई है वह असंभव है और अविश्वसनीय प्रतीत होती है।” और अविश्वसनीय है और अभियोजन पक्ष द्वारा दिए गए साक्ष्य पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता है और अभियोजन पक्ष अपने मामले को एक उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है।

खंडपीठ ने कहा कि यह बहुत अस्वाभाविक लगता है कि जब दो गवाह मौके पर मौजूद थे और उन्होंने अभियुक्त को मृतक की हत्या करते हुए देखा है, नौशाबा और मृतक भी एक ही गांव के निवासी थे और दोनों गवाह पीडब्लू-2 दिलशाद और एफ.आई.आर. गवाह तस्लीम ने हस्तक्षेप करने का कोई प्रयास नहीं किया था और न ही मृतक को बचाने की कोशिश की थी जहाँ प्राथमिकी में किसी भी आग्नेयास्त्र या हथियार का उल्लेख नहीं है। या अभि0 सा0-2 दिलशाद के कथन में तथा एफ.आई.आर. गवाह तस्लीम इस तथ्य के बारे में है कि उन पर बन्दूक दिखाकर उन पर काबू पा लिया गया था।

हाईकोर्ट  ने कहा कि तथ्य यह है कि पुलिस ने जांच के बाद आरोपी/अपीलकर्ता-सरताज के खिलाफ चार्जशीट पेश की थी और पुलिस ने अन्य नामजद आरोपियों को क्लीन चिट दे दी थी। यह तथ्य अभियोजन पक्ष की कहानी की सत्यता पर भी संदेह करता है। अभि0 सा0-2 दिलशाद का कथन विश्वसनीय, विश्वसनीय नहीं है तथा इस कथन के आधार पर अभियुक्त/अपीलार्थी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

उपरोक्त के मद्देनजर, खंडपीठ ने अपील की अनुमति दी।

केस का शीर्षक: सरताज बनाम यूपी राज्य

बेंच: जस्टिस कौशल जयेंद्र ठाकर और अजीत सिंह

केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर – 6511 ऑफ 2006

अपीलकर्ता के वकील : रघुराज किशोर

प्रतिवादी के वकील: पी.एस. पुंडीर

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