मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को 2011 के ट्रिपल ब्लास्ट मामले में आरोपी 65 वर्षीय कफील अहमद अयूब को जमानत दे दी। अयूब, जो एक दशक से अधिक समय से मुकदमे की सुनवाई का इंतजार कर रहा था, को राहत देते हुए कोर्ट ने ‘स्पीडी ट्रायल’ (Speedy Trial) यानी त्वरित सुनवाई के अधिकार को प्राथमिकता दी। अयूब पर कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) के तहत मुकदमा चल रहा है।
जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस आरआर भोंसले की खंडपीठ ने यह देखते हुए जमानत दी कि अयूब का मुकदमा शुरू होने से पहले ही वह 10 साल से अधिक समय जेल में बिता चुका था और “निकट भविष्य में मुकदमे के पूरा होने की कोई संभावना नहीं” थी।
बेंच ने अयूब को जमानत देते हुए, 2021 के सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले (केए नजीब मामला) का भी जिक्र किया, जिसने UAPA के एक अंडरट्रायल को जमानत दी थी। उस फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने त्वरित सुनवाई के अधिकार को संविधान के जीवन के अधिकार के तहत एक मौलिक अधिकार माना था। कोर्ट ने कहा था कि विशेष कानूनों के तहत जमानत के कड़े प्रावधानों के बावजूद, इस अधिकार को अनिश्चित काल तक नकारा नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी अंडरट्रायल को अनिश्चित काल तक हिरासत में रखना उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
क्या था पूरा मामला?
यह मामला 13 जुलाई, 2011 को शाम के व्यस्त समय में झवेरी बाजार, ओपेरा हाउस और दादर कबूतरखाना में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों से जुड़ा है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, इन धमाकों में 21 लोगों की जान चली गई थी और 113 अन्य घायल हो गए थे। तत्कालीन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इसे “आतंकवादियों द्वारा किया गया एक समन्वित हमला” कहा था।
शुरुआत में दर्ज की गई तीन एफआईआर को 18 जुलाई, 2011 को मुंबई की एंटी-टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) को सौंप दिया गया था।
आरोपी की गिरफ्तारी और कानूनी लड़ाई
बिहार के रहने वाले कफील अहमद अयूब को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 22 फरवरी, 2012 को गिरफ्तार किया था। उसे 19 मई, 2012 को इस ब्लास्ट केस में पांचवें आरोपी के रूप में दिखाया गया और ट्रांसफर वारंट पर हिरासत में लिया गया। तब से वह आर्थर रोड जेल में बंद था।
फरवरी 2022 में, एक विशेष MCOCA ट्रायल कोर्ट ने अयूब की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके खिलाफ अयूब ने मई 2022 में हाईकोर्ट में अपील की।
अदालत के समक्ष दलीलें
अयूब के वकील, मुबीन सोलकर ने केए नजीब मामले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि अयूब को इतने लंबे समय तक हिरासत में रखना उनके त्वरित सुनवाई के मौलिक अधिकार का हनन है। बचाव पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि अयूब के खिलाफ आरोप “अस्पष्ट” थे। यह दलील दी गई कि MCOCA के तहत दर्ज किए गए इकबालिया बयान में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि अयूब को “बम धमाके की जानकारी या ज्ञान था” – जो साजिश को साबित करने के लिए एक “आवश्यक घटक” है।
बचाव पक्ष ने कहा कि बिना मुकदमे के इतने लंबे समय तक जेल में रखना “लोकतंत्र और कानून के शासन के लिए अभिशाप” है।
वहीं, अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिका का पुरजोर विरोध किया। अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि अयूब, अन्य सह-आरोपियों के साथ मिलकर, कथित तौर पर समुदाय के युवाओं को ‘जिहाद’ करने के लिए प्रेरित कर रहा था। यह भी आरोप लगाया गया कि उसने मामले के कथित मास्टरमाइंड, सह-आरोपी यासीन का “सक्रिय रूप से साथ दिया” और “योजना को अंजाम देने के लिए” सह-आरोपियों को “बार-बार” पनाह दी और बाद में उनके छिपने का इंतजाम भी किया।
हाईकोर्ट का फैसला
दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद, हाईकोर्ट की बेंच ने कफील अहमद अयूब को एक दशक से अधिक समय की कैद और सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित ‘स्पीडी ट्रायल’ के अधिकार के आधार पर जमानत दे दी।

                                    
 
        


