मुंबई में एक मौजूदा एडिशनल जज और एक कोर्ट क्लर्क पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने शिकंजा कसा है। उन पर एक वाणिज्यिक भूमि विवाद में “अनुकूल फैसला” देने के एवज में 15 लाख रुपये की घूस मांगने और स्वीकार करने का आरोप है।
यह मामला मझगांव सिविल एंड सेशंस कोर्ट के एडिशनल जज एजाजुद्दीन सलाउद्दीन काजी और कोर्ट क्लर्क चंद्रकांत हनुमंत वासुदेव के खिलाफ है। ACB की यह कार्रवाई एक ट्रैप ऑपरेशन के बाद हुई, जिसमें वासुदेव को घूस की रकम लेते हुए कथित तौर पर रंगे हाथों पकड़ा गया। आरोप है कि इसके तुरंत बाद क्लर्क ने जज को फोन पर घूस मिलने की पुष्टि भी की।
इस पूरे मामले का खुलासा 10 नवंबर को हुआ, जब एक शिकायतकर्ता ने ACB से संपर्क किया। शिकायतकर्ता की पत्नी का एक पुराना संपत्ति विवाद चल रहा है। शिकायत के मुताबिक, क्लर्क वासुदेव अनुकूल फैसले के लिए लगातार घूस का दबाव बना रहा था।
ACB ने शिकायत मिलने पर उसी दिन एक सत्यापन (verification) प्रक्रिया शुरू की। इस दौरान वासुदेव ने कथित तौर पर अपनी मांग दोहराई और 15 लाख रुपये की घूस लेने पर सहमत हो गया।
अगले दिन, 11 नवंबर को, ACB ने जाल बिछाया। जैसे ही वासुदेव ने शिकायतकर्ता से 15 लाख रुपये स्वीकार किए, उसे पकड़ लिया गया। FIR के अनुसार, पैसे लेने के फौरन बाद वासुदेव ने जज एजाजुद्दीन काजी को फोन किया और उन्हें “घूस मिलने” की जानकारी दी। आरोप है कि जज ने इस पर अपनी “सहमति व्यक्त की।”
इस घूसकांड की जड़ें 2015 के एक संपत्ति विवाद से जुड़ी हैं। शिकायतकर्ता की पत्नी ने अपनी जमीन पर जबरन कब्जे को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने अप्रैल 2016 में एक अंतरिम आदेश भी पारित किया था। लेकिन, मार्च 2024 में इस मामले को मझगांव सिविल कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया, जहां यह जज काजी की अदालत में विचाराधीन था।
ACB के प्रेस नोट के मुताबिक, घूस मांगने का यह सिलसिला 9 सितंबर को शुरू हुआ था, जब वासुदेव ने शिकायतकर्ता से संपर्क किया। 12 सितंबर को दोनों चेंबूर के एक स्टारबक्स कैफे में मिले। आरोप है कि यहीं पर वासुदेव ने कुल 25 लाख रुपये की घूस मांगी—जिसमें “10 लाख खुद के लिए और 15 लाख जज साहब के लिए” बताए गए। शिकायतकर्ता ने उस वक्त इनकार कर दिया, लेकिन वासुदेव अगले कई हफ्तों तक उस पर दबाव बनाता रहा, जिसके बाद शिकायतकर्ता ने ACB के पास जाने का फैसला किया।
फिलहाल, जज काजी और क्लर्क वासुदेव, दोनों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) की धारा 7 और 7A के तहत मामला दर्ज किया गया है, जो एक लोक सेवक द्वारा अवैध रूप से लाभ मांगने और स्वीकार करने से संबंधित हैं।




