मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों और सजायाफ्ता दोषियों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराने की व्यवस्था की समीक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति देवनारायण मिश्रा की खंडपीठ ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (State Legal Services Authority) को निर्देश दिया है कि वह प्रदेश की सभी जेलों के अधीक्षकों से रिपोर्ट लेकर दो सप्ताह के भीतर अदालत में पेश करे।
यह आदेश एक हत्या के दोषी मोहम्मद असलम की अपील पर सुनवाई करते हुए पारित किया गया। असलम को अक्टूबर 2022 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन उसकी अपील 850 दिनों की देरी के बाद दायर की गई। अदालत ने पाया कि असलम एक अत्यंत निर्धन व्यक्ति है और उसके पास समय पर अपील दायर करने के लिए कानूनी सहायता लेने का कोई साधन नहीं था। इस परिस्थिति को देखते हुए अदालत ने अपील की देरी को माफ कर दिया।
28 अप्रैल को पारित आदेश में हाईकोर्ट ने राज्य में कानूनी सहायता प्रणाली की कार्यप्रणाली पर गंभीर चिंता जताई। अदालत ने कहा, “यह देरी राज्य में कानूनी सहायता व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाती है।” न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि गरीब और असहाय कैदियों को समय पर न्याय दिलाने के लिए कानूनी सहायता की प्रभावी उपलब्धता अनिवार्य है।

कोर्ट ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को निर्देश दिया है कि वे प्रदेश की सभी जेलों के अधीक्षकों से यह जानकारी प्राप्त करें कि जेलों में कैदियों को किस प्रकार और किस हद तक कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। यह रिपोर्ट अदालत के समक्ष पेश की जानी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी कैदियों, विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, को समय पर और प्रभावी कानूनी सहायता मिल सके।