मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में, वैवाहिक विवाद को आधार बनाते हुए एक महिला के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति दी। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर करना उसके और अजन्मे बच्चे के जीवन को गंभीर रूप से खतरे में डाल देगा। न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने मामले की सुनवाई की और फैसला सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने कहा कि उसकी गर्भावस्था, उसके विवाह के अपूरणीय टूटने के साथ-साथ उसके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। याचिकाकर्ता ने अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता, 2023 की विभिन्न धाराओं के तहत एक प्राथमिकी (अपराध संख्या 875/2024) दर्ज कराई, जिसमें क्रूरता और घरेलू हिंसा के आरोप शामिल हैं।
न्यायालय ने अपनी पिछली सुनवाई में दंपति के बीच संभावित समझौते का पता लगाने के लिए मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा था। हालांकि, मध्यस्थ की 7 दिसंबर, 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, सुलह के प्रयास विफल रहे। याचिकाकर्ता ने गर्भपात के लिए अपने अनुरोध की पुष्टि की, यह व्यक्त करते हुए कि वर्तमान परिस्थितियों में गर्भावस्था जारी रखने से उसके जीवन और भविष्य पर अपरिवर्तनीय प्रभाव पड़ेगा।
कानूनी मुद्दे
1. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971: याचिका की जांच अधिनियम के प्रावधानों के तहत की गई, जो उन मामलों में गर्भपात की अनुमति देता है जहां गर्भावस्था को जारी रखने से महिला के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।
2. स्वायत्तता और सहमति: याचिकाकर्ता की अपने शरीर और अपने स्वास्थ्य के बारे में निर्णय लेने की स्वायत्तता एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। प्रतिवादी (पति) ने गर्भपात का विरोध किया, गर्भावस्था को जारी रखने की अपनी इच्छा व्यक्त की।
3. न्यायिक मिसालें: न्यायालय ने एक्स बनाम प्रमुख सचिव स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग सरकार में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले का हवाला दिया। दिल्ली के एनसीटी (2022 एससीसी ऑनलाइन एससी 1321) के मामले में भारतीय कानून के तहत प्रजनन अधिकारों के दायरे का विस्तार किया गया। इसने पलक खन्ना बनाम मध्य प्रदेश राज्य (डब्ल्यू.पी. संख्या 13893/2023) में अपने स्वयं के निर्णय पर भी भरोसा किया।
न्यायालय की कार्यवाही
याचिकाकर्ता और प्रतिवादी संख्या 4 को न्यायाधीश के कक्ष में व्यक्तिगत रूप से सुना गया। बातचीत के दौरान, याचिकाकर्ता ने अपनी शादी के अपूरणीय टूटने और चल रहे वैवाहिक विवाद के कारण गर्भपात की अपनी इच्छा दोहराई। उसने इस बात पर जोर दिया कि गर्भावस्था को जारी रखने की उसकी अनिच्छा प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण थी, न कि किसी अस्थायी मुद्दे के कारण।
दूसरी ओर, प्रतिवादी संख्या 4 ने तर्क दिया कि विवाद असाध्य नहीं थे और उन्होंने सुलह करने और गर्भावस्था को जारी रखने की इच्छा व्यक्त की। हालाँकि, अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता की गर्भावस्था को आगे बढ़ाने की अनिच्छा स्पष्ट थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्देश
न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने निर्णय सुनाते हुए टिप्पणी की, “यदि उसे वह गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर किया जाता है जो वह नहीं चाहती है, तो यह उचित नहीं होगा, क्योंकि इससे निश्चित रूप से उसके भविष्य के जीवन और उसके बच्चे के जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।” न्यायालय ने याचिकाकर्ता की स्वायत्तता और उसे गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर करने के अपूरणीय प्रभाव को स्वीकार किया।
न्यायालय ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जिला देवास को बिना देरी किए याचिकाकर्ता की गर्भावस्था को समाप्त करने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता को प्रक्रिया से गुजरने के लिए 11 दिसंबर, 2024 को सुबह 11:00 बजे अस्पताल में उपस्थित होने के लिए कहा गया।
मामले का निष्कर्ष
याचिका को स्वीकार कर लिया गया, और मामले का निपटारा चिकित्सा अधिकारियों द्वारा त्वरित कार्रवाई के स्पष्ट निर्देशों के साथ किया गया। न्यायालय का निर्णय जटिल वैवाहिक विवादों को सुलझाने के दौरान एक महिला की अपने शरीर और स्वास्थ्य पर स्वायत्तता के महत्व को रेखांकित करता है।
मामले का विवरण और कानूनी प्रतिनिधित्व
– मामला संख्या: डब्ल्यू.पी. संख्या 36944/2024
– याचिकाकर्ता: एक विवाहित महिला
– प्रतिवादी:
– मध्य प्रदेश राज्य
– याचिकाकर्ता के पति (प्रतिवादी संख्या 4)
– अधिवक्ता:
– याचिकाकर्ता की ओर से श्री ऋषि आनंद चौकसे उपस्थित हुए।
– सुश्री भाग्यश्री गुप्ता ने सरकारी अधिवक्ता के रूप में राज्य का प्रतिनिधित्व किया।
– श्री एम.एस. सोलंकी ने प्रतिवादी संख्या 4 (पति) का प्रतिनिधित्व किया।
– सुश्री अर्चना माहेश्वरी ने न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थ के रूप में कार्य किया।