समानता के संवैधानिक सिद्धांत को कायम रखते हुए, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) को आदेश दिया है कि वह 4 मई को इंदौर और उज्जैन के परीक्षा केंद्रों पर बिजली बाधित होने से प्रभावित 75 अभ्यर्थियों के लिए NEET-UG परीक्षा की पुन: परीक्षा आयोजित करे।
यह आदेश 23 जून को हाईकोर्ट की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति सुभोध अभ्यंकर ने पारित किया। न्यायालय ने कहा कि अभ्यर्थी “बिना किसी गलती के” असमान परिस्थितियों का सामना करने के लिए बाध्य हुए। अदालत ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 — कानून के समक्ष समानता के अधिकार — का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं को राहत प्रदान की।
प्रभावित परीक्षार्थियों ने अदालत में यह कहते हुए याचिका दायर की थी कि परीक्षा के दौरान बिजली बाधित होने और खराब मौसम की स्थिति ने उनकी प्रदर्शन क्षमता को प्रभावित किया और इस प्रतिस्पर्धी परीक्षा में उनके चयन की संभावनाएं कम कर दीं।

याचिकाकर्ताओं के वकील मृदुल भटनागर ने कहा, “अदालत ने माना कि परीक्षा केंद्रों पर बिजली संकट का असर सभी परीक्षार्थियों पर समान रूप से नहीं पड़ा—कुछ छात्र रोशनी में बैठे थे, जबकि अन्य अंधेरे में संघर्ष कर रहे थे। यह फैसला सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है।”
अदालत ने NTA को निर्देश दिया कि वह “यथासंभव शीघ्रता से” पुनः परीक्षा आयोजित करे और यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं की रैंकिंग केवल पुन: परीक्षा के प्राप्त अंकों के आधार पर तय की जाए। हालांकि, अदालत ने यह राहत केवल उन्हीं परीक्षार्थियों को दी जिन्होंने अनंतिम उत्तर कुंजी जारी होने से पहले याचिका दायर की थी।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने NTA की ओर से प्रस्तुत होकर तर्क दिया कि अधिकांश केंद्रों पर वैकल्पिक विद्युत व्यवस्थाएं—जैसे मोमबत्तियां, इमरजेंसी लाइट और इन्वर्टर—उपलब्ध थीं और शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई की गई थी। मेहता द्वारा प्रस्तुत समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि शिकायत मिलते ही बिजली आपूर्ति बहाल कर दी गई थी।
फिर भी, न्यायालय ने यह माना कि परिस्थितियां सभी के लिए समान नहीं थीं और कुछ परीक्षार्थियों के प्रदर्शन पर इसका वास्तविक प्रभाव पड़ा।