मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हुकुमचंद मिल की 42 एकड़ भूमि को ‘सिटी फॉरेस्ट’ घोषित करने संबंधी जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया है।
न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति जय कुमार पिल्लै की खंडपीठ ने कहा कि भारतीय वन अधिनियम (Indian Forest Act) में ‘सिटी फॉरेस्ट’ की कोई अवधारणा नहीं है। पर्यावरण कार्यकर्ता ओमप्रकाश जोशी और अन्य ने यह याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 1992 में मिल बंद होने के बाद से खाली पड़ी इस भूमि पर प्राकृतिक रूप से वन विकसित हो गया है, इसलिए इसे ‘सिटी फॉरेस्ट’ घोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने पेड़ों की कटाई के लिए जारी निविदा (टेंडर) को रद्द करने की मांग भी की थी।

अदालत ने कहा कि मध्यप्रदेश हाउसिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बोर्ड (MPHIDB) ने भूमि खरीदने के लिए आधिकारिक परिसमापक के पास ₹421 करोड़ जमा किए थे, जिसमें से अधिकांश राशि लेनदारों और पूर्व कर्मचारियों को वितरित की जा चुकी है। बोर्ड ने इस भूमि का 60% हिस्सा वाणिज्यिक और 40% हिस्सा आवासीय उपयोग के लिए तय किया है।
पीठ ने कहा कि निविदा केवल झाड़-झंखाड़ और उखड़े हुए पेड़ों को हटाने के लिए जारी की गई है, जो 1992 से खाली पड़े भूखंड पर उग आए थे। अदालत ने कहा, “याचिकाकर्ताओं की यह दलील कि हुकुमचंद मिल में सैकड़ों विकसित पेड़ों वाला सिटी फॉरेस्ट है, किसी आधार पर टिकती नहीं है।”
हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप से इनकार करते हुए कहा कि MPHIDB ने भूमि में भारी निवेश किया है, इसे केवल हरियाली के लिए खाली नहीं छोड़ा जा सकता। आदेश में कहा गया, “एक बार जब MPHIDB ने राशि निवेश कर भूमि खरीदी है, तो निर्माण कार्य प्रारंभ करने के लिए झाड़-झंखाड़ हटाना आवश्यक है।”
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय वन अधिनियम में ‘सिटी फॉरेस्ट’ की कोई परिभाषा नहीं है और यह भूमि सरकारी घोषित वन भी नहीं है।