मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि पति अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है और उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता है, तो यह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत “क्रूरता” की परिभाषा में आता है। हालांकि, कोर्ट ने विवाह की वैधता के दौरान ऐसे कृत्य को धारा 377 के अंतर्गत अपराध नहीं माना और इस आरोप को रद्द कर दिया।
यह आदेश न्यायमूर्ति जी.एस. अहलूवालिया ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अंतर्गत दायर मिसल. आपराधिक मामला संख्या 32576/2024 में पारित किया, जिसमें थाना सीरोली, जिला ग्वालियर में दर्ज एफआईआर संख्या 11/2024 को चुनौती दी गई थी। एफआईआर में आईपीसी की धारा 377, 498ए और 323 के तहत आरोप लगाए गए थे।
मामला संक्षेप में
प्रार्थिनी (प्रतिकारिणी संख्या 2) द्वारा दर्ज प्राथमिकी में कहा गया कि उनकी शादी 2 मई 2023 को हिंदू रीति-रिवाज से हुई थी। विवाह में उसके माता-पिता ने ₹5 लाख नकद, घरेलू सामान और एक बुलेट मोटरसाइकिल दी थी। आरोप लगाया गया कि विवाह के समय से ही पति शराब पीने के बाद अप्राकृतिक यौन क्रिया करता था और मना करने पर मारपीट करता था। महिला परामर्श केंद्र और पुलिस को कई बार शिकायतें दी गईं, लेकिन पति के व्यवहार में कोई सुधार नहीं हुआ।
आवेदक की दलीलें
आवेदक के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि प्रतिकारिणी विधिवत विवाहिता है और ‘मनीष साहू बनाम मध्यप्रदेश राज्य एवं अन्य’ [MCRC No. 8388/2023, निर्णय दिनांक 1 मई 2024] के अनुसार, पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध धारा 375 की परिभाषा में बलात्कार नहीं है। अतः जब धारा 377 का आधार ही अपराध नहीं बनता, तो धारा 498ए का आरोप भी निरस्त किया जाना चाहिए।
न्यायालय का विश्लेषण
न्यायमूर्ति अहलूवालिया ने मनीष साहू के मामले में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि:
“यदि पति-पत्नी के बीच वैध विवाह विद्यमान है, और पत्नी की आयु 15 वर्ष से अधिक है, तो पति द्वारा किए गए यौन संबंध, भले ही पत्नी की सहमति न हो, धारा 375 के अपवाद 2 के अंतर्गत बलात्कार नहीं माने जाएंगे।”
सुप्रीम कोर्ट के नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ [(2018) 10 SCC 1] निर्णय का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने दोहराया कि वयस्कों के बीच सहमति से किया गया अप्राकृतिक यौन संबंध अब धारा 377 के तहत अपराध नहीं है। लेकिन जब सहमति ही नहीं हो, तो क्या यह अपराध होगा — इस पर कोर्ट ने कहा कि पत्नी के साथ असहमति से ऐसा कृत्य, विवाह के रहते हुए भी, कानूनन बलात्कार या धारा 377 का अपराध नहीं है।
धारा 498ए की वैधता पर निर्णय
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 498ए में “क्रूरता” का अर्थ सिर्फ दहेज की मांग नहीं है, बल्कि कोई भी ऐसा जानबूझकर किया गया व्यवहार, जिससे महिला को आत्महत्या के लिए उकसाया जाए या उसके जीवन, अंग, या मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुंचे — वह क्रूरता माना जाएगा।
कोर्ट ने कहा:
“पत्नी की इच्छा के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना और विरोध करने पर शारीरिक मारपीट करना निश्चित रूप से धारा 498ए के अंतर्गत क्रूरता की श्रेणी में आता है।”
अंतिम निर्णय
कोर्ट ने धारा 377 के आरोप को रद्द कर दिया, लेकिन धारा 498ए और 323 के आरोपों को कायम रखा। आदेश में कहा गया:
“यह आवेदन आंशिक रूप से स्वीकृत किया जाता है। धारा 377 के अंतर्गत दर्ज अपराध को निरस्त किया जाता है, जबकि धारा 498ए और 323 के संबंध में एफआईआर को बरकरार रखा जाता है।”