छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में यदि किसी व्यक्ति की संपत्ति से संबंधित वैध और सत्यापन योग्य आय का स्रोत नहीं है, तो यह मानने का आधार बन सकता है कि वह संपत्ति अपराध की आय (proceeds of crime) से जुड़ी है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब उसने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा कोयला लेवी घोटाले में की गई संपत्ति कुर्की को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दीं।
पृष्ठभूमि
ये अपीलें मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) की धारा 42 के तहत दायर की गई थीं। अपीलकर्ताओं में सौरभ मोदी, शांति देवी चौरसिया, अनुराग चौरसिया, इंदरमणि मिनरल्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (IMIPL), KJSL कोल एंड पावर प्रा. लि., और आईएएस अधिकारी समीर विष्णोई शामिल थे। इन सभी ने 9 दिसंबर 2022 को ईडी द्वारा पारित प्रोविजनल अटैचमेंट ऑर्डर (PAO) और 1 जून 2023 को अडजुडीकेटिंग अथॉरिटी द्वारा इसकी पुष्टि को चुनौती दी थी, जिसे SAFEMA अपीलीय प्राधिकरण द्वारा 5 दिसंबर 2024 को बरकरार रखा गया था।

यह मामला कर्नाटक पुलिस द्वारा जुलाई 2022 में दर्ज एक FIR से शुरू हुआ, जिसमें बाद में जनवरी 2024 में छत्तीसगढ़ की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने पुनः FIR दर्ज की। ईडी के अनुसार, एक संगठित सिंडिकेट, जिसकी अगुवाई सूर्यकांत तिवारी कर रहे थे, कोयला परिवहन में 25 रुपये प्रति टन की अवैध उगाही कर रहा था। इस रकम को बाद में अलग-अलग लेनदेन के ज़रिए प्रॉपर्टियों, वॉशरीज़ और कंपनियों के जरिए वैध दिखाया गया।
कानूनी प्रश्न
न्यायालय के समक्ष मुख्य मुद्दे निम्नलिखित थे:
- क्या बिना किसी अनुसूचित अपराध (Scheduled Offence) के संज्ञान लिए गए ईडी की अटैचमेंट कार्रवाई वैध है?
- क्या अपीलकर्ताओं की संपत्तियां अपराध की आय मानी जा सकती हैं?
- क्या ईडी ने “विश्वास करने का कारण” (reason to believe) का उचित आधार दिखाया था?
- क्या अडजुडीकेटिंग अथॉरिटी द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया गया?
अपीलकर्ताओं ने दलील दी कि ईसीआईआर (ECIR) का आधार बनी एफआईआर में धारा 384 IPC को चार्जशीट में शामिल नहीं किया गया था, जिससे ईडी की पूरी कार्रवाई शून्य हो जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि कई संपत्तियां या तो कथित अपराध से पहले खरीदी गई थीं या बैंकिंग चैनलों के जरिए वैध रूप से अधिग्रहीत की गई थीं। साथ ही, अडजुडीकेटिंग अथॉरिटी और ट्रिब्यूनल ने उनके जवाबों को समुचित रूप से नहीं परखा।
न्यायालय की टिप्पणियां
खंडपीठ ने इन सभी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि:
“मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में, चूंकि कार्यप्रणाली अक्सर चक्राकार और अपारदर्शी वित्तीय लेनदेन पर आधारित होती है जिससे प्रत्यक्ष साक्ष्य प्राप्त करना स्वाभाविक रूप से कठिन हो जाता है, इसलिए जब संपत्ति से संबंधित कोई वैध और सत्यापन योग्य आय का स्रोत मौजूद नहीं होता, तो न्यायालय यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि उस संपत्ति और अपराध की आय के बीच संबंध मौजूद है।”
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल इस आधार पर कि कोई संपत्ति बैंकिंग चैनल से खरीदी गई है, उसे “अवैध नहीं” नहीं माना जा सकता। यदि संपत्ति के अधिग्रहण का स्रोत स्पष्ट नहीं है और वह संदिग्ध वित्तीय गतिविधियों के संदर्भ में आती है, तो उसे अपराध की आय माना जा सकता है।
न्यायालय ने यह भी माना कि ECIR उस समय वैध था जब FIR में धारा 384 IPC शामिल थी, और बाद में आरोपपत्र में इसका उल्लेख न होना ईडी की वैधता को प्रभावित नहीं करता।
निर्णय
अदालत ने सभी अपीलों को खारिज कर दिया और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा संपत्तियों की कुर्की को वैध ठहराया। कोर्ट ने कहा कि ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम के तहत कार्रवाई के लिए जरूरी प्रारंभिक तथ्यों को स्थापित कर दिया था और कानून के अनुरूप सभी प्रक्रिया अपनाई गई थी।
यह निर्णय इस सिद्धांत को मजबूत करता है कि जब किसी व्यक्ति की संपत्ति से संबंधित आय का कोई वैध स्रोत नहीं है, और वह संदिग्ध परिस्थितियों में अर्जित की गई है, तो न्यायालय उसे अपराध की आय से जुड़ी मान सकता है — भले ही प्रत्यक्ष साक्ष्य न हो।