राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने एल्गार परिषद माओवादी लिंक मामले में गिरफ्तार कार्यकर्ता महेश राउत की जमानत याचिका का विरोध करते हुए आरोप लगाया है कि उन्होंने राज्य और समाज के हितों के खिलाफ काम किया है।
जांच एजेंसी ने राउत की जमानत याचिका के जवाब में दायर एक हलफनामे में कहा कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज एक आरोपी के लिए संवैधानिक आधार पर जमानत मांगना उचित नहीं है।
राउत ने अपनी याचिका में कहा था कि उनकी हिरासत अनुचित थी और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के खिलाफ थी।
हलफनामे में कहा गया है, “ऐसे अपराध के आरोपी के लिए संवैधानिक आधार पर राहत मांगना उचित नहीं है, जब उसके कृत्य स्वयं राज्य और समाज के हित के खिलाफ हों।”
एजेंसी ने दावा किया कि राउत द्वारा किए गए कथित कृत्यों का भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता पर सीधा प्रभाव पड़ा।
इसमें आगे कहा गया है कि नक्सली-माओवादी विद्रोह, जिसने “इस देश को त्रस्त” कर दिया है, ने लोगों, पुलिस आदि के जीवन को नष्ट कर दिया है।
एनआईए ने कहा कि इस विद्रोह का नेतृत्व सीपीआई (माओवादी) ने किया था, जिसका राउत सदस्य था।
कार्यकर्ता को जून 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वर्तमान में वह न्यायिक हिरासत में है।
न्यायमूर्ति ए एस गडकरी और न्यायमूर्ति एस जी डिगे की खंडपीठ ने मंगलवार को राउत की याचिका पर सुनवाई की तारीख 12 जुलाई तय की।