छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वैवाहिक जीवन में ससुराल पक्ष द्वारा सामान्य झगड़े या अपमानजनक टिप्पणियाँ, जब तक वे घटना से ठीक पहले की कोई असाधारण परिस्थिति नहीं दर्शातीं, भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण (abetment) का अपराध सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं मानी जा सकतीं।
न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु ने यह टिप्पणी CRA संख्या 441/2016 में पारित निर्णय में की, जिसमें मृतका के पति और ससुर को रायपुर की वी. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा दोषी ठहराए जाने के विरुद्ध अपील दायर की गई थी। निचली अदालत ने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 306/34 के अंतर्गत सात वर्ष के सश्रम कारावास और ₹1,000 के जुर्माने की सजा सुनाई थी।
मामला संक्षेप में
प्रकरण 31 दिसंबर 2013 को घटित हुआ, जब मृतका को रायपुर स्थित अस्पताल में जलने की गंभीर अवस्था में भर्ती कराया गया था। 5 जनवरी 2014 को उसकी मृत्यु हो गई। अभियोजन पक्ष का आरोप था कि मृतका ने अपने ऊपर केरोसिन डालकर आत्महत्या इसलिए की क्योंकि उसके पति (अपीलकर्ता क्रमांक 1) और ससुर (अपीलकर्ता क्रमांक 2) उसे लगातार “चरकट” कहकर अपमानित करते थे और चरित्र पर शंका करते थे।

मृतका द्वारा दिये गए मृत्युपूर्व कथन (डाइंग डिक्लेरेशन), जिसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया था, में उसने स्वयं पर केरोसिन डालकर आग लगाने की बात स्वीकार की और तिरस्कारपूर्ण भाषा का उल्लेख किया। मृतका के माता-पिता और भाई ने अपने बयानों में इन बातों की पुष्टि की कि अक्सर उसके साथ झगड़े होते थे और उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता था।
अपीलकर्ताओं की ओर से प्रस्तुतियाँ
अपीलकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सुश्री अनुजा शर्मा ने तर्क दिया कि घटना से ठीक पहले किसी भी प्रकार की तत्काल उकसाने वाली या उत्प्रेरक घटना नहीं हुई थी, जो आत्महत्या के लिए कानूनी रूप से आवश्यक मानी जाती है। उन्होंने Ramesh Kumar v. State of Chhattisgarh [(2001) 9 SCC 618] और Sanju v. State of Madhya Pradesh [(2002) 5 SCC 371] जैसे निर्णयों पर भरोसा करते हुए तर्क रखा कि अभियोजन पक्ष आत्महत्या के लिए आवश्यक दुष्प्रेरण सिद्ध नहीं कर पाया।
राज्य की दलीलें
राज्य की ओर से पैनल अधिवक्ता श्री आर.सी.एस. देव ने अपील का विरोध किया और कहा कि रिकॉर्ड पर पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं जिससे यह साबित होता है कि आरोपितों ने मृतका को प्रताड़ित किया और उसे आत्महत्या के लिए विवश किया।
न्यायालय की विवेचना
न्यायालय ने धारा 306 आईपीसी की व्याख्या करते हुए कहा कि आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण सिद्ध करने हेतु अभियोजन को यह प्रमाणित करना होता है कि आरोपी ने या तो उकसाया, षड्यंत्र किया, या जानबूझकर सहायता की। इस संबंध में धारा 107 आईपीसी और साक्ष्य अधिनियम की धारा 113A का भी उल्लेख किया गया।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चूंकि विवाह को 12 वर्ष हो चुके थे, धारा 113A के तहत सात वर्षों के भीतर आत्महत्या होने पर लागू होने वाला विधिक अनुमान इस मामले में नहीं लगाया जा सकता।
न्यायालय ने Kumar @ Shiva Kumar v. State of Karnataka [2024 INSC 156] के निर्णय का हवाला देते हुए कहा:
“क्रोध या भावावेश में कहे गए शब्द, यदि उनके परिणाम की मंशा नहीं हो, तो उन्हें आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरणा नहीं माना जा सकता।”
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि तिरस्कारपूर्ण टिप्पणियाँ, यदि मानी भी जाएँ, तो वे इतनी गंभीर नहीं थीं कि मृतका के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प न रह जाए।
निर्णय
न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु ने कहा कि,
“अभियोजन पक्ष आवश्यक कानूनी तत्वों को प्रमाणित करने में विफल रहा है और सत्र न्यायालय ने साक्ष्यों का समुचित मूल्यांकन नहीं किया। इसलिए दोषसिद्धि और दंडादेश को निरस्त किया जाता है।”
अपील स्वीकार करते हुए दोनों आरोपितों को दोषमुक्त किया गया। साथ ही, उनके जमानती मुचलकों को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437-A के अंतर्गत आगामी छह माह तक प्रभावी बनाए रखने का निर्देश भी दिया गया।
मामला शीर्षक: Kamal Kumar Sahu एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य
अपील संख्या: CRA No. 441 of 2016