भरण-पोषण याचिका में मानसिक स्थिति की जांच का कोई औचित्य नहीं: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने थलसेरी की फैमिली कोर्ट द्वारा पारित दो अंतरिम आदेशों को रद्द कर दिया है, जिनमें एक महिला और उसकी नाबालिग पुत्री को मानसिक स्वास्थ्य जांच के लिए भेजने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण से संबंधित कार्यवाही में इस प्रकार की मानसिक स्थिति की जांच का कोई औचित्य नहीं है।

यह निर्णय ओ.पी. (क्रि.) संख्या 101/2022 में सुनाया गया, जो संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर याचिका थी। याचिका में थलसेरी फैमिली कोर्ट द्वारा एम.सी. संख्या 236/2020 में 7 फरवरी 2022 को पारित आदेशों (एग्ज़िबिट P3 और P13) को चुनौती दी गई थी।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं — एक महिला और उसकी नाबालिग बेटी — ने पति के विरुद्ध धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत भरण-पोषण की याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों को परामर्श (काउंसलिंग) के लिए भेजा। परामर्शदाता ने अपनी रिपोर्ट में याचिकाकर्ताओं के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कुछ लक्षणों की जानकारी दी।

इसके आधार पर प्रतिवादी ने सी.एम.पी. संख्या 29/2022 दायर कर याचिकाकर्ताओं को जिला मेडिकल बोर्ड, कन्नूर में मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण के लिए भेजने का अनुरोध किया। फैमिली कोर्ट ने यह याचिका स्वीकार करते हुए उन्हें मेडिकल बोर्ड के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया और प्रतिवादी को उनके लिए टैक्सी की व्यवस्था करने को कहा।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ताओं ने इस आदेश को चुनौती दी और तर्क दिया कि भरण-पोषण याचिका में मानसिक स्थिति की जांच अप्रासंगिक है। उनके अधिवक्ता ने कहा कि इस प्रकार की कार्यवाही में विचारणीय प्रश्न केवल यह होता है कि क्या याचिकाकर्ताओं के पास अपनी जीविका चलाने के साधन हैं और क्या प्रतिवादी के पास उन्हें भरण-पोषण देने की क्षमता और वैधानिक उत्तरदायित्व है।

प्रतिवादी की ओर से यह तर्क दिया गया कि परामर्शदाता की रिपोर्ट के बाद ही उन्होंने यह अनुरोध किया और उनकी ओर से पत्नी और पुत्री को साथ रखने और भरण-पोषण देने की इच्छा भी व्यक्त की गई।

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कोर्ट का अवलोकन

न्यायमूर्ति ए. बधरुद्दीन ने फैमिली कोर्ट के आदेशों को अनावश्यक बताते हुए रद्द कर दिया। उन्होंने कहा:

“भरण-पोषण की कार्यवाही में विचारणीय बिंदु यह है कि क्या याचिकाकर्ताओं के पास अपनी जीविका चलाने के साधन हैं और क्या प्रतिवादी के पास उन्हें भरण-पोषण देने की वैधानिक जिम्मेदारी, क्षमता और आय है।”

कोर्ट ने आगे कहा:

“ऐसे मामले में, जब केवल परामर्शदाता की रिपोर्ट के आधार पर प्रतिवादी ने याचिका दायर की, फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की मानसिक स्थिति जानने के लिए मेडिकल बोर्ड जांच का आदेश दे दिया। इस प्रकार की रिपोर्ट प्राप्त करने का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है।”

कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि प्रतिवादी, जो याचिकाकर्ताओं के साथ पहले रह चुका है, ने परामर्शदाता की रिपोर्ट से पूर्व कभी भी उनकी मानसिक स्थिति पर कोई संदेह नहीं जताया था। कोर्ट ने निष्कर्ष रूप में कहा:

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“भरण-पोषण की कार्यवाही में याचिकाकर्ताओं की मानसिक स्थिति का आकलन कराने का कोई औचित्य नहीं है।”

निर्णय

हाईकोर्ट ने मूल याचिका स्वीकार करते हुए फैमिली कोर्ट के दोनों अंतरिम आदेशों को रद्द कर दिया। साथ ही, थलसेरी फैमिली कोर्ट को यह निर्देश दिया कि एम.सी. संख्या 236/2020 का निपटारा तीन माह की अवधि के भीतर, इस निर्णय की प्रति प्रस्तुत किए जाने की तिथि से, यथाशीघ्र किया जाए।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि दोनों पक्ष सहमत हों, तो फैमिली कोर्ट प्रतिवादी द्वारा व्यक्त की गई पुनर्मिलन की इच्छा पर विचार कर सकती है।

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