इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 29 मई 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में पत्नी और पुत्र की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सज़ा पाए व्यक्ति को बरी कर दिया। न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की खंडपीठ ने पाया कि आरोपी राजेश उर्फ साजेश तिवारी अपराध के समय मानसिक अस्वस्थता से पीड़ित था और उसका मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 84 के तहत “सामान्य अपवाद” की श्रेणी में आता है।
मामला पृष्ठभूमि
यह अपील, बहरेच की फास्ट ट्रैक कोर्ट संख्या-1 द्वारा 24 दिसंबर 2005 को पारित निर्णय के विरुद्ध दायर की गई थी, जिसमें राजेश उर्फ साजेश तिवारी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के अंतर्गत पत्नी श्रीमती कमलेश और पुत्र दुर्गेश की हत्या के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास और ₹20,000 जुर्माने की सज़ा दी गई थी।
प्रथम सूचना रिपोर्ट, आरोपी के पिता प्रहलाद कुमार तिवारी द्वारा दर्ज कराई गई थी, जिसमें यह भी स्पष्ट किया गया था कि उसका पुत्र एक वर्ष से अधिक समय से मानसिक रूप से बीमार था और उसका इलाज एक मानसिक चिकित्सक से चल रहा था। घटना 31 अगस्त और 1 सितंबर 2002 की रात करीब 2 बजे की थी।
अभियोजन पक्ष के साक्ष्य
अभियोजन पक्ष ने नौ गवाह प्रस्तुत किए। इनमें पी.डब्ल्यू.-1 (सूचक प्रहलाद तिवारी), पी.डब्ल्यू.-2 (आरोपी का भाई), पी.डब्ल्यू.-3 (आरोपी का बड़ा पुत्र), पी.डब्ल्यू.-4 (पड़ोसी), तथा पी.डब्ल्यू.-7 (पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक) मुख्य थे।
पी.डब्ल्यू.-1 और पी.डब्ल्यू.-3 ने गवाही में कहा कि आरोपी मानसिक रूप से विक्षिप्त था और इलाजरत था। पी.डब्ल्यू.-4 ने भी इस बात की पुष्टि की कि घटना से कुछ दिन पहले आरोपी बिना कपड़ों के गांव में घूम रहा था और उसे भूत-प्रेत जैसी बातें करते सुना गया था।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतकों के शरीर पर धारदार हथियार से गहरे घाव पाए गए। अभियोजन ने दावा किया कि हत्या में प्रयुक्त बैंका (चाकू जैसा हथियार) आरोपी की निशानदेही पर बरामद हुआ।
बचाव पक्ष की दलीलें
अपीलकर्ता के अधिवक्ता देश रतन मिश्रा ने तर्क दिया कि आरोपी मानसिक रोगी था और घटना से पहले ही उसका इलाज जमुना न्यूरो साइकियाट्रिक सेंटर में चल रहा था। उन्होंने इलाज के कागज़ात और मेडिकल पर्चियां न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कीं जो फरवरी 2002 से थीं।
उन्होंने कहा कि अभियुक्त की मानसिक स्थिति को ट्रायल कोर्ट ने नजरअंदाज किया और धारा 84 आईपीसी के अंतर्गत सुरक्षा की अनदेखी की गई। इसके अलावा, ट्रायल कोर्ट ने धारा 313 सीआरपीसी के तहत आरोपी के बयान की सही जांच नहीं की।
राज्य की दलीलें
राज्य की ओर से पेश एजीए विजय प्रकाश द्विवेदी ने कहा कि अभियोजन ने परिस्थिति जन्य साक्ष्य की एक मजबूत श्रृंखला प्रस्तुत की थी। उन्होंने कहा कि आरोपी घटना के समय घर में मौजूद था, हथियार उसी की निशानदेही पर मिला और कोई वैध स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।
न्यायालय का परीक्षण
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं लेकिन ट्रायल कोर्ट ने आरोपी की मानसिक स्थिति से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेजों और गवाहों को गलत तरीके से खारिज किया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन के कई गवाहों ने मानसिक बीमारी की पुष्टि की और आरोपी के चिकित्सा रिकॉर्ड पहले से मौजूद थे।
कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी का धारा 313 सीआरपीसी के तहत दिया गया बयान, जिसमें उसने कहा कि वह मानसिक रूप से विक्षिप्त था और “कोई और” उससे हत्या करवा रहा था, को ट्रायल कोर्ट ने केवल “नकारात्मक उत्तर” मानकर खारिज कर दिया, जो कि गलत है।
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के Chunni Bai बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, Trimukh Maroti Kirkan बनाम महाराष्ट्र राज्य, और James Martin बनाम केरल राज्य जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि अपराध के समय आरोपी पूर्ण मानसिक संतुलन में था।
निर्णय
अंततः कोर्ट ने कहा:
“साक्ष्यों की समग्र समीक्षा यह स्पष्ट करती है कि अपीलकर्ता मानसिक रूप से अस्वस्थ था और उसका मामला सामान्य अपवाद की श्रेणी में आता है।”
इसके साथ ही, कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का निर्णय रद्द करते हुए अपील स्वीकार कर ली और आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
मामला: राजेश उर्फ साजेश तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
मामला संख्या: आपराधिक अपील संख्या 1598 / 2007