मेघालय हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में आय-व्यय का खुलासा किए बिना दिए गए गुजारा भत्ता आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश का पालन करते हुए दिया, जिसमें गुजारा भत्ता के मामलों में दोनों पक्षों द्वारा अपनी संपत्तियों और देनदारियों का खुलासा अनिवार्य किया गया है। न्यायमूर्ति बी. भट्टाचार्य ने क्रिमिनल रिविजन पिटीशन नं. 1/2024 में यह निर्णय सुनाते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत किसी भी प्रकार का भरण-पोषण आदेश जारी करने से पहले ऐसे शपथपत्र अनिवार्य हैं।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता ने गुरु हिल्स स्वायत्त जिला परिषद, तुरा की सहायक जिला न्यायाधीश द्वारा 16 फरवरी 2024 को पारित आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इस आदेश में याचिकाकर्ता को रु. 18,000 प्रति माह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था।
याचिकाकर्ता की ओर से ए. जी. मोमिन ने अदालत में तर्क दिया कि निचली अदालत का आदेश अवैध है क्योंकि दोनों पक्षों ने अपनी संपत्ति और देनदारियों का कोई हलफनामा प्रस्तुत नहीं किया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के राजनेश बनाम नेहा, (2021) 2 SCC 324 और अदिति उर्फ मिथि बनाम जीतेश शर्मा, (2023) SCC OnLine SC 1451 मामलों का हवाला देते हुए कहा कि बिना वित्तीय खुलासे के कोई भी न्यायालय गुजारा भत्ता का आदेश नहीं दे सकता।
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कानूनी मुद्दे
इस मामले में हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या गुजारा भत्ता आदेश वैध माना जा सकता है, जब दोनों पक्षों ने अपनी वित्तीय स्थिति का खुलासा नहीं किया हो।
सुप्रीम कोर्ट ने राजनेश बनाम नेहा मामले में यह व्यवस्था दी थी कि गुजारा भत्ता के मामलों में निष्पक्ष निर्णय सुनिश्चित करने के लिए आय-व्यय का खुलासा आवश्यक है। इसे अदिति उर्फ मिथि मामले में दोहराया गया, जिसमें कहा गया कि जब तक दोनों पक्ष अपने वित्तीय दस्तावेज प्रस्तुत नहीं करते, तब तक अदालतें अंतरिम या अंतिम गुजारा भत्ता आदेश पारित नहीं कर सकतीं।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति बी. भट्टाचार्य ने कहा कि बगैर संपत्तियों और देनदारियों के हलफनामे के आदेश पारित करना सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है।
उन्होंने कहा:
“अदिति उर्फ मिथि मामले में स्पष्ट किया गया है कि जब तक दोनों पक्षों के हलफनामे रिकॉर्ड पर नहीं होते, तब तक कोई भी न्यायालय गुजारा भत्ता का आदेश नहीं दे सकता, चाहे वह अंतरिम हो या अंतिम।”
अदालत ने यह भी माना कि प्रतिवादी के वकील ने हलफनामे की अनुपस्थिति को स्वीकार किया, लेकिन यह तर्क दिया कि प्रतिवादी आर्थिक रूप से कमजोर है और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहा है। हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि निचली अदालत ने वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने की अनिवार्यता से छूट देने का कोई स्पष्ट आदेश नहीं दिया था।
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि गुजारा भत्ता तय करने में वित्तीय खुलासा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि यह प्रक्रिया अपनाई नहीं जाती, तो अदालतें मनमाने आदेश पारित कर सकती हैं, जिससे किसी एक पक्ष पर अनुचित बोझ पड़ सकता है या दूसरे पक्ष को पर्याप्त सहायता नहीं मिल सकती।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि गलत दावों, धोखाधड़ी और अनावश्यक मुकदमों को रोकने के लिए पारदर्शिता आवश्यक है ताकि गुजारा भत्ता का निर्णय न्यायोचित और निष्पक्ष हो।
कोर्ट का फैसला
अदालत ने कहा:
“यह निर्विवाद है कि 16-02-2024 को पारित आदेश बिना संपत्ति और देनदारी के हलफनामे के जारी किया गया था, इसलिए इसे रद्द किया जाता है।”
हाईकोर्ट ने मामले को पुनः ट्रायल कोर्ट भेज दिया और निर्देश दिया कि वित्तीय खुलासे के कानूनी प्रावधानों का पालन करने के बाद ही दोबारा सुनवाई हो।
इसके साथ ही, न्यायमूर्ति भट्टाचार्य ने ट्रायल कोर्ट को मामले की त्वरित सुनवाई करने का निर्देश दिया, क्योंकि यह गुजारा भत्ता से संबंधित मामला है।