मेघालय हाईकोर्ट ने सोमवार को एक अंतरिम आदेश में स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए एकमात्र पहचान पत्र नहीं बनाया जा सकता। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि जो व्यक्ति आधार संख्या देने में असमर्थ हैं या देना नहीं चाहते, उनसे वैकल्पिक पहचान पत्र स्वीकार किए जाएं।
मुख्य न्यायाधीश आई.पी. मुखर्जी और न्यायमूर्ति डब्ल्यू. डिएंगदोह की खंडपीठ ने कहा कि विभागों को पैन कार्ड, वोटर आईडी या पासपोर्ट जैसे अन्य वैध दस्तावेजों को भी स्वीकार करना चाहिए, खासकर अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों के लिए पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति शुल्क प्रतिपूर्ति योजना और उन छात्रों के लिए वित्तीय सहायता योजना में, जो अन्यविधानिक छात्रवृत्तियों के पात्र नहीं हैं।
यह आदेश सामाजिक कार्यकर्ता ग्रेनेथ एम. संगमा द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया गया, जिसमें 31 अक्टूबर 2023 की राज्य सरकार की उस अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, जिसमें आधार को सरकारी लाभों के लिए अनिवार्य बना दिया गया था।

खंडपीठ ने आधार (लक्षित वितरण वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाएं) अधिनियम, 2016 का हवाला देते हुए कहा कि इसकी धारा 7 स्पष्ट रूप से कहती है कि यदि किसी व्यक्ति के पास आधार नंबर नहीं है, तो उसे “वैकल्पिक और व्यवहार्य पहचान के साधन” उपलब्ध कराए जाने चाहिए ताकि वह सरकारी लाभों तक पहुंच बना सके।
अदालत ने कहा, “कानून यह नहीं कहता कि केवल आधार ही मान्य पहचान पत्र है। आधार त्वरित पहचान के लिए मांगा जा सकता है, लेकिन इसके अभाव में किसी व्यक्ति को योजनाओं से वंचित नहीं किया जा सकता।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार अधिनियम “नागरिक” नहीं बल्कि “निवासी” शब्द का प्रयोग करता है, और एक निवासी वह व्यक्ति होता है जो पिछले 12 महीनों में कम से कम 182 दिन भारत में रहा हो।
मामले की अगली सुनवाई 12 अगस्त 2025 को निर्धारित की गई है, जब अदालत आधार अधिनियम, उसके नियमों, विनियमों और सुप्रीम कोर्ट के संबंधित फैसलों की विस्तृत समीक्षा करेगी।