नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की नेता मेधा पाटकर ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से अपनी वह याचिका वापस ले ली, जिसमें उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसने उन्हें मानहानि मामले में और गवाह पेश करने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था।
न्यायमूर्ति एम. एम. सुन्दरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने शुरू में ही कहा कि इस मामले को अब समाप्त होना चाहिए और संकेत दिया कि अदालत किसी भी पक्ष को आगे कार्यवाही करने की अनुमति देने के पक्ष में नहीं है। अदालत ने साफ किया कि हाईकोर्ट का आदेश सही है और अतिरिक्त गवाहों को बुलाने का उद्देश्य केवल कार्यवाही को लंबा करना है।
अदालत के रुख को देखते हुए पाटकर के वकील ने याचिका वापस ले ली। इससे पहले ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट दोनों ने ही कहा था कि अब तक पेश किए गए गवाह पाटकर के आरोपों को साबित नहीं कर पाए हैं, इसलिए और गवाह बुलाने की जरूरत नहीं है।

विवाद की शुरुआत नवंबर 2000 में हुई थी जब पाटकर ने वी. के. सक्सेना के खिलाफ एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी। उस समय सक्सेना गुजरात स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज़ के अध्यक्ष थे। इसे लेकर सक्सेना ने उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि का केस दायर किया, जबकि पाटकर ने भी पलटकर मानहानि की शिकायत दर्ज कराई।
लंबी सुनवाई के बाद मजिस्ट्रेट अदालत ने 1 जुलाई 2024 को पाटकर को भारतीय दंड संहिता की धारा 500 (मानहानि) के तहत दोषी ठहराया और उन्हें पाँच महीने की साधारण कैद और 10 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। 2 अप्रैल को सत्र न्यायालय ने दोषसिद्धि बरकरार रखी लेकिन उन्हें 25,000 रुपये के बॉन्ड और 1 लाख रुपये जुर्माना जमा करने की शर्त पर प्रोबेशन ऑफ गुड कंडक्ट (अच्छे आचरण पर रिहाई) का लाभ दिया।
29 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दोषसिद्धि और सजा बरकरार रखी। इसके बाद 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दोषसिद्धि की पुष्टि की, लेकिन दंड और निगरानी शर्तें हटा दीं और साफ किया कि 70 वर्षीय पाटकर को केवल अच्छे आचरण पर रिहाई का लाभ मिलेगा।
सक्सेना के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मनींदर सिंह तथा अधिवक्ता गजिंदर कुमार और किरण जय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ट्रायल कोर्ट में लंबित क्रॉस-मानहानि मामलों की सुनवाई सामान्य रूप से जारी रहेगी।