इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि–शाही ईदगाह भूमि विवाद से जुड़े एक मुकदमे में श्री राधा रानी को पक्षकार बनाने की याचिका खारिज कर दी है। अदालत ने कहा कि पुराणों में उल्लिखित कथाएं प्रमाणिक साक्ष्य नहीं मानी जा सकतीं।
न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र ने अपने आदेश में कहा, “पौराणिक वर्णन सामान्यतः कथा-आधारित होते हैं और प्रत्यक्ष गवाही या अवलोकन पर आधारित नहीं होते, अतः इन्हें सुन-सुनाई बातों का साक्ष्य माना जाता है।”
यह याचिका अधिवक्ता रीना एन सिंह द्वारा “श्रिजी राधा रानी” के पक्ष से दाखिल की गई थी। याचिका में दावा किया गया था कि श्री राधा रानी, वादी भगवान श्रीकृष्ण लाला विराजमान की पत्नी और स्त्री स्वरूप हैं, और दोनों को अनादिकाल से एक साथ पूजा जाता है। इसलिए वे विवादित 13.37 एकड़ भूमि की सह-मालकिन हैं।
वादिनी ने दावा किया कि राधा रानी इस मुकदमे में आवश्यक और उचित पक्षकार हैं और पूर्ण न्याय के लिए उन्हें शामिल किया जाना चाहिए, जैसा कि दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 10 में प्रावधान है।
हालांकि, हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि वादिनी ने इस बात का कोई प्रमाण नहीं दिया कि विवादित भूमि पर राधा रानी का कोई मंदिर था। आदेश में कहा गया, “वादिनी न तो आवश्यक पक्षकार हैं और न ही उचित।”
अदालत ने यह भी कहा कि यदि भविष्य में वादिनी कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं जिससे संयुक्त स्वामित्व का दावा सिद्ध हो सके, तो उस स्थिति में उनका पक्षकार बनाया जाना विचारणीय हो सकता है।
यह मुकदमा मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर बने शाही ईदगाह मस्जिद से संबंधित है, जिसके बारे में वादियों का दावा है कि इसे मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल (1669-70) में मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। वादियों ने इस कथित अवैध अतिक्रमण को हटाने की मांग की है।
हाईकोर्ट के इस आदेश से स्पष्ट हुआ है कि धार्मिक आस्था के आधार पर भी जब तक विधिसम्मत और प्रमाणिक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जाता, तब तक किसी पक्ष को मुकदमे में शामिल नहीं किया जा सकता।