मातृत्व और बच्चे की गरिमा के अधिकार को संविदात्मक स्थिति से सीमित नहीं किया जा सकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्राधिकारियों को मातृत्व अवकाश वेतन दावे पर निर्णय लेने का आदेश दिया


छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल संविदा कर्मचारी होने के आधार पर मातृत्व अवकाश वेतन से इनकार किया जाना उचित नहीं है। न्यायमूर्ति अमितेन्द्र किशोर प्रसाद की एकल पीठ ने राज्य प्राधिकरणों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता द्वारा दायर मातृत्व अवकाश के वेतन संबंधी दावा पर तीन माह के भीतर नियमानुसार निर्णय लें।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता श्रीमती संगीता ध्रुवे, जिला अस्पताल कबीरधाम में स्टाफ नर्स के पद पर संविदा नियुक्त थीं। उन्होंने 5 मई 2024 से 31 अक्टूबर 2024 तक मातृत्व अवकाश हेतु आवेदन किया, जिसे स्वीकृत कर लिया गया। 9 मई 2024 को उन्होंने शिशु को जन्म दिया और 5 नवम्बर 2024 को ड्यूटी पर पुनः उपस्थित हुईं।
कई बार निवेदन देने के बावजूद उन्हें मातृत्व अवकाश अवधि का वेतन नहीं मिला, जिससे आर्थिक कठिनाई उत्पन्न हुई और नवजात की देखभाल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इसके पश्चात उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता की दलीलें

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री श्रीकांत कौशिक ने छत्तीसगढ़ सिविल सेवा अवकाश नियम, 2010 के नियम 38 का हवाला दिया, जिसके अनुसार 135 दिन तक मातृत्व अवकाश वेतन सहित अनुमन्य है।
उन्होंने WPS No. 5696 of 2025 में दिए गए न्यायालय के आदेश का भी उल्लेख किया, जिसमें संविदा कर्मियों को मातृत्व लाभ देने की पुष्टि की गई थी।

इसके अतिरिक्त, उन्होंने निम्नलिखित सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया:

  • डॉ. कविता यादव बनाम स्वास्थ्य मंत्रालय [(2024) 1 SCC 421], जिसमें संविदा समाप्त होने के बाद भी मातृत्व लाभ देने की बात कही गई है।
  • Municipal Corporation of Delhi बनाम Female Workers (Muster Roll) [(2000) 3 SCC 224], जिसमें दैनंदिन वेतनभोगी व आकस्मिक कर्मचारियों को भी मातृत्व लाभ देने की पुष्टि की गई थी।

प्रतिवादियों की दलीलें

राज्य की ओर से तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता केवल संविदा कर्मी हैं, अतः वेतन सहित मातृत्व अवकाश की हकदार नहीं हैं।

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न्यायालय का विश्लेषण

न्यायमूर्ति अमितेन्द्र किशोर प्रसाद ने अपने आदेश में निम्न बिंदुओं को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया:

  • नियम 38 के अनुसार मातृत्व अवकाश के दौरान वेतन देना आवश्यक है।
  • सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय इस बात को मान्यता देते हैं कि मातृत्व लाभ अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का हिस्सा है।
  • कविता यादव मामले में यह कहा गया कि संविदा की समाप्ति के बाद भी मातृत्व लाभ से इनकार अनुचित है और मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 12(2)(a) के विरुद्ध है।

कोर्ट ने जोर देते हुए कहा:

“एक नवजात शिशु और उसकी मां का अधिकार किसी अधिकारी की मनमानी और स्वेच्छाचारिता से सीमित नहीं किया जा सकता। महिला की गरिमा और नवजात के जीवन का अधिकार अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”

अंतिम निर्णय

कोर्ट ने निर्देश दिया कि प्रतिवादी प्राधिकरण याचिकाकर्ता के वेतन भुगतान हेतु 2010 के नियम 38 और अन्य लागू दिशा-निर्देशों के अनुसार तीन माह के भीतर निर्णय लें।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल मौजूदा मामले के संदर्भ में है और इससे याचिकाकर्ता की नियमित या अस्थायी सेवा स्थिति पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जाएगा।

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मामला: संगीता ध्रुवे बनाम राज्य शासन व अन्य
मामला संख्या: WPS No. 1704 of 2025
पीठ: न्यायमूर्ति अमितेन्द्र किशोर प्रसाद
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता: श्री श्रीकांत कौशिक
प्रतिवादीगण के अधिवक्ता: श्री प्रफुल्ल भारत (महाधिवक्ता), श्री विवेक शर्मा (अपर महाधिवक्ता), श्रीमती शैलजा शुक्ला (उप शासकीय अधिवक्ता)

स्थिति: याचिका आंशिक रूप से स्वीकृत (मातृत्व वेतन दावा पर निर्णय हेतु निर्देश)

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