माता-पिता दोनों का स्नेह पाना बच्चे का सर्वोपरि अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने आयरलैंड में रह रहे बेटे से पिता को वीडियो कॉल की अनुमति दी

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्थापित किया है कि किसी भी बच्चे के लिए अपने माता-पिता दोनों का स्नेह और मार्गदर्शन पाना उसका सर्वोच्च अधिकार है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने इस सिद्धांत पर जोर देते हुए एक पिता को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने पिता को यह अधिकार दिया है कि वह अपनी मां के साथ आयरलैंड में रह रहे अपने नाबालिग बेटे से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए नियमित रूप से बात कर सकें। इस निर्णय के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पिता की अपील को खारिज कर दिया गया था।

विवाद की पृष्ठभूमि

यह मामला एक दंपति के बीच लंबे समय से चल रहे वैवाहिक कलह और बच्चे की कस्टडी से जुड़े विवाद का परिणाम है। दंपति का विवाह 26 नवंबर, 2012 को हुआ था और 18 जनवरी, 2016 को उनके बेटे का जन्म हुआ।

अदालती दस्तावेजों के अनुसार, 2017 में मां ने वैवाहिक घर छोड़ दिया और तलाक के लिए याचिका दायर की। इसके बाद, 2018 में पिता ने बच्चे की कस्टडी के लिए फैमिली कोर्ट में गुहार लगाई। फैमिली कोर्ट ने 19 मार्च, 2019 को एक आदेश पारित कर पिता को महीने में दो बार स्कूल में अपने बेटे से मिलने की अनुमति दी।

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इसके बाद दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से तलाक के लिए एक संयुक्त प्रयास किया, लेकिन यह समझौता विफल हो गया। पिता ने फिर से बच्चे की कस्टडी के लिए गार्डियंस एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 की धारा 25 के तहत एक याचिका दायर की। फैमिली कोर्ट ने 3 फरवरी, 2022 को एक अंतरिम आदेश में पिता को हर शनिवार और रविवार को बच्चे से मिलने की अनुमति दी। हालांकि, 27 मार्च, 2023 को फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए पिता की याचिका खारिज कर दी कि उन्होंने अंतरिम आदेश की शर्तों का उल्लंघन किया है। जब पिता की अपील हाईकोर्ट में लंबित थी, उसी दौरान मां बच्चे को लेकर आयरलैंड चली गईं। हाईकोर्ट ने भी 4 अक्टूबर, 2024 को पिता की अपील खारिज कर दी, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

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सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, अपीलकर्ता-पिता के वकील ने अपनी मांग को सीमित रखते हुए बच्चे की भौतिक कस्टडी पर जोर न देकर केवल वीडियो-कॉलिंग के माध्यम से बेटे से जुड़ने का अधिकार मांगा।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले को “अत्यंत संवेदनशील” करार देते हुए कहा, “जब ऐसे विवाद सामने आते हैं, तो मुख्य प्रश्न यह नहीं होता कि माता-पिता में से कौन सही है और कौन गलत, बल्कि यह होता है कि बच्चे के सर्वोत्तम हित में क्या है। बच्चे की भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक भलाई को हमेशा प्राथमिकता मिलनी चाहिए।”

पीठ ने यह भी स्वीकार किया कि “दोनों ही माता-पिता का आचरण पूरी तरह से आदर्श नहीं रहा है।” लेकिन, अदालत ने कहा, “अदालत बच्चे को इस आपसी संघर्ष का शिकार नहीं बनने दे सकती। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि बच्चा एक ऐसे माहौल में बड़ा हो, जहां वह खुद को सुरक्षित महसूस करे और उसे भरपूर प्यार व देखभाल मिले।”

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अदालत ने यह माना कि बच्चा वर्तमान में अपनी मां के साथ आयरलैंड में व्यवस्थित हो चुका है और इस समय उसकी मौजूदा व्यवस्था में कोई भी बदलाव करना उसके हित में नहीं होगा।

पिता के वीडियो कॉल के अनुरोध को “उचित और आवश्यक” पाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “प्रत्येक बच्चे को अपने माता-पिता दोनों का स्नेह पाने का अधिकार है। भले ही माता-पिता अलग रहते हों या अलग-अलग देशों में, यह जरूरी है कि बच्चा दोनों के साथ अपना संबंध बनाए रखे। इस तरह के संपर्क से इनकार करना बच्चे को पिता के प्रेम, मार्गदर्शन और भावनात्मक सहारे से वंचित करना होगा।”

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अंतिम निर्देश

अपील का निपटारा करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:

  1. अपीलकर्ता-पिता को हर दूसरे रविवार को सुबह 10:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे (आयरलैंड के समयानुसार) तक दो घंटे के लिए वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपने बेटे से बात करने का अधिकार होगा।
  2. दोनों पक्ष यह सुनिश्चित करने के लिए सहयोग करेंगे कि यह व्यवस्था बिना किसी बाधा या शत्रुता के, सद्भावनापूर्वक और सुचारू रूप से चले।
  3. वीडियो कॉल की व्यवस्था में आने वाली किसी भी तकनीकी या अन्य कठिनाई को बच्चे के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए, आपसी सहमति से हल किया जाएगा।

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