बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति और उसके परिवार के खिलाफ दायर दहेज उत्पीड़न का मामला रद्द करते हुए चिंता जताई कि आजकल मामूली विवादों के चलते हिंदू समाज में विवाह जैसे पवित्र बंधन खतरे में पड़ रहे हैं।
न्यायमूर्ति नितिन साम्ब्रे और न्यायमूर्ति एम. एम. नेरलीकर की नागपुर पीठ ने 8 जुलाई के आदेश में कहा कि विवाह केवल सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि दो आत्माओं का आध्यात्मिक मिलन है, और छोटे विवादों के कारण जीवन बर्बाद नहीं होना चाहिए।
यह मामला दिसंबर 2023 में पत्नी द्वारा पति और ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज कराए गए दहेज उत्पीड़न के मामले से जुड़ा था। हालांकि, सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने अदालत को बताया कि उन्होंने आपसी सहमति से मामला सुलझा लिया है और तलाक ले लिया है। पत्नी ने अदालत से कहा कि वह आगे बढ़ना चाहती हैं और मामले को रद्द करने में कोई आपत्ति नहीं है।

अदालत ने इस समझौते को मानते हुए मामला रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि भले ही भारतीय दंड संहिता और दहेज निषेध अधिनियम के तहत दहेज उत्पीड़न व अप्राकृतिक यौन संबंध जैसे अपराध गैर-समझौतावादी होते हैं, फिर भी न्याय के हित में अदालत उन्हें रद्द कर सकती है।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, “यदि पक्षकार आपसी सहमति से विवाद निपटाना चाहते हैं और शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं, तो अदालत का कर्तव्य है कि वह इस प्रयास को प्रोत्साहित करे।”
अदालत ने टिप्पणी की, “विवाहिक कलह आजकल समाज में एक संकट बन गई है। छोटे-छोटे मुद्दे पूरे जीवन को खराब कर देते हैं, और हिंदुओं में विवाह, जो कि एक पवित्र बंधन है, खतरे में पड़ जाता है।”
अदालत ने यह भी कहा कि विवाह को मजबूत बनाने के लिए कई कानून बनाए गए हैं, लेकिन उनके दुरुपयोग से मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न, अनंत संघर्ष, आर्थिक नुकसान और परिवारजनों व बच्चों को अपूरणीय क्षति हो रही है।