पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि केवल वैवाहिक मतभेद आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं माने जा सकते। अपने पति गौरव शर्मा की आत्महत्या के लिए उकसाने की आरोपी XXX को अग्रिम जमानत देते हुए, अदालत ने जोर दिया कि किसी को भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 108 (पूर्व में IPC की धारा 306) के तहत दोषी ठहराने के लिए स्पष्ट उत्तेजना, दबाव या प्रत्यक्ष संलिप्तता होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति संजय वशिष्ठ ने अग्रिम जमानत याचिका को मंजूरी देते हुए कहा कि मृतक के आत्महत्या नोट में एक परेशानहाल वैवाहिक जीवन का उल्लेख किया गया था, लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि पत्नी ने उसे आत्महत्या के लिए उकसाया या विवश किया। अदालत ने कहा कि घरेलू जीवन में विवाद, भले ही लगातार बने रहें, स्वतः अपराध की श्रेणी में नहीं आते जब तक कि आत्महत्या के लिए प्रत्यक्ष उत्तेजना या गंभीर उत्पीड़न का प्रमाण न हो।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक प्राथमिकी (संख्या 0153, दिनांक 29 जुलाई 2024) से संबंधित है, जिसे मृतक के पिता योगेश शर्मा ने खन्ना सिटी-2 पुलिस स्टेशन, जिला खन्ना, पंजाब में दर्ज कराया था। उनके बेटे गौरव शर्मा, जो एक 36 वर्षीय आईटी पेशेवर थे, ने 28 जनवरी 2019 को आरोपी XXX से विवाह किया था। दंपति के दो बच्चे हैं, जो क्रमशः 2021 और 2023 में जन्मे।

2 जुलाई 2024 को, गौरव अपने घर से बिना बताए कार से निकल गए। अगले दिन, वह खन्ना के पास अपनी कार में बेहोश पाए गए। बताया गया कि उन्होंने जहर का सेवन किया था। उन्हें सिविल अस्पताल, खन्ना ले जाया गया, लेकिन वह बच नहीं सके।
उनकी मृत्यु से पहले भेजे गए एक व्हाट्सएप संदेश को आत्महत्या नोट के रूप में प्रस्तुत किया गया। यह संदेश उनके पिता को संबोधित था, जिसमें पत्नी XXX पर आरोप लगाया गया कि वह लगातार उन पर अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजने का दबाव बना रही थी, जबकि उनकी मां मानसिक रूप से अस्वस्थ थीं। आत्महत्या नोट के कुछ अंश इस प्रकार हैं:
“मैं यह पूरी मानसिक स्पष्टता के साथ लिख रहा हूँ। मैं XXX से पूरी तरह से परेशान हो चुका हूँ। पिछले पाँच वर्षों से उसका केवल एक ही मकसद रहा है कि मैं अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम भेज दूँ या कहीं दूर कर दूँ।”
“मैं उसकी लगातार झगड़ालू प्रवृत्ति से थक चुका हूँ। कोई भी त्योहार ऐसा नहीं गया जब उसने झगड़ा न किया हो। अगर हम किसी के घर जाते हैं तो झगड़ा तय होता है। अगर कोई हमारे घर आता है, तो भी यही हाल होता है। अब मैं और सहन नहीं कर सकता।”
“अगर पत्नी समझदार हो तो घर स्वर्ग बन जाता है, वरना नर्क। अगर औरतों को ऐसे पति चाहिए जो अकेले रहें और परिवार के प्रति समर्पित न हों, तो उन्हें अनाथ पुरुषों से शादी करनी चाहिए।”
शिकायतकर्ता योगेश शर्मा ने इस संदेश की हार्ड कॉपी और गौरव शर्मा का मोबाइल पुलिस को सौंप दिया, जिसके आधार पर पत्नी XXX के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 108 के तहत मामला दर्ज किया गया।
अदालत में दलीलें और कानूनी पक्ष
याचिकाकर्ता की ओर से वकील जसदीप सिंह सलूजा ने दलील दी कि:
- प्राथमिकी दर्ज करने में 25 दिनों की देरी हुई, जिससे संदेह उत्पन्न होता है और साजिश की आशंका को बल मिलता है।
- व्हाट्सएप संदेश की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं हुई, और जब तक इसे डिजिटल फॉरेंसिक साक्ष्य से सत्यापित नहीं किया जाता, इसे प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में नहीं लिया जा सकता।
- पति-पत्नी के बीच सामान्य झगड़े, भले ही लंबे समय तक रहे हों, आत्महत्या के लिए उकसाने के दायरे में नहीं आते।
- याचिकाकर्ता अपने दो नाबालिग बच्चों की प्राथमिक देखभालकर्ता है और उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है।
राज्य की ओर से सरकारी वकील अमनदीप सिंह (DAG, पंजाब) ने विरोध करते हुए कहा कि:
- आत्महत्या नोट स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता के व्यवहार से मृतक की मानसिक प्रताड़ना को दर्शाता है।
- मृतक द्वारा आत्महत्या नोट में अपनी पत्नी के दबाव को कई बार व्यक्त किया गया है, जिससे वैवाहिक तनाव और आत्महत्या के बीच प्रत्यक्ष संबंध स्थापित होता है।
अदालत का अवलोकन और निर्णय
न्यायमूर्ति संजय वशिष्ठ ने सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण निर्णयों का हवाला दिया और कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए प्रत्यक्ष कारण और प्रभाव संबंध आवश्यक होता है। अदालत ने निम्नलिखित फैसलों का उल्लेख किया:
1. S.S. चीना बनाम विजय कुमार महाजन (2010) 12 SCC 190
“आत्महत्या के लिए उकसाने में प्रत्यक्ष उत्तेजना या सहायता आवश्यक होती है। मात्र उत्पीड़न या विवाहिक विवाद इस अपराध के लिए पर्याप्त नहीं हैं।”
2. रमेश कुमार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2001) 9 SCC 618
“उत्तेजना के लिए प्रत्यक्ष उकसावे या दबाव की आवश्यकता होती है, न कि केवल सामान्य मानसिक पीड़ा से।”
3. महेंद्र आवसे बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2025 INSC 76)
“उकसावे के लिए उच्च मानक आवश्यक होते हैं। भावनात्मक विस्फोट, असहमति या दबाव को सीधे उकसाने से नहीं जोड़ा जा सकता।”
अदालत ने कहा कि:
- आत्महत्या नोट में कोई प्रत्यक्ष धमकी, दबाव, या उकसावे का उल्लेख नहीं था।
- वैवाहिक कलह को बिना किसी सशक्त प्रमाण के आत्महत्या के लिए उकसाने का आधार नहीं बनाया जा सकता।
- आरोपी दो नाबालिग बच्चों की मां है, और उसकी हिरासत में पूछताछ का कोई वास्तविक औचित्य नहीं है।
अदालत का निष्कर्ष
“भावनात्मक या मानसिक कमजोरी, कार्यस्थल का तनाव, या पारिवारिक विवाद किसी व्यक्ति की आत्महत्या के लिए किसी और को स्वतः दोषी नहीं बना सकते।”
इसके आधार पर, अदालत ने XXX को अग्रिम जमानत दी और निम्नलिखित शर्तें रखीं:
- उसे 21 मार्च 2025 तक जांच में शामिल होना होगा और पुलिस के साथ सहयोग करना होगा।
- उसे अपना पासपोर्ट जमा करना होगा और बिना न्यायालय की अनुमति के देश नहीं छोड़ना होगा।
- उसे अपना पूर्ण पता और संपर्क विवरण जांच अधिकारी को देना होगा।
अदालत ने स्पष्ट किया कि यह आदेश मामले के मेरिट पर अंतिम निर्णय नहीं है और ट्रायल में सभी तथ्यों की स्वतंत्र जांच की जाएगी।