सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की संवैधानिक वैधता को लेकर दायर एक नई याचिका पर जुलाई में सुनवाई के लिए सहमति दी है, जबकि बॉम्बे हाईकोर्ट इस मुद्दे पर 18 जुलाई से पुनः सुनवाई शुरू करने जा रहा है।
यह मामला न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष शीघ्र सूचीबद्धता के लिए उल्लेखित किया गया था। याचिकाकर्ता के वकील ने हाईकोर्ट के 11 जून के आदेश का हवाला दिया, जिसमें महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC) आरक्षण अधिनियम, 2024 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फिर से सुनवाई करने का निर्णय लिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इन घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए मामले को 14 जुलाई से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध किया। वकील ने यह भी उल्लेख किया कि शीर्ष अदालत पहले ही हाईकोर्ट को अंतरिम राहत पर विचार के लिए विशेष पीठ गठित करने का निर्देश दे चुकी है, लेकिन हाईकोर्ट ने ऐसी कोई राहत देने से इनकार कर दिया और मामले की मेरिट पर सुनवाई जारी रखने का निर्णय लिया।

यह अधिनियम, जिसे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने 20 फरवरी 2024 को पारित किया था, मराठा समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण प्रदान करता है। मराठा समुदाय महाराष्ट्र की जनसंख्या का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है। यह कानून महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (MSBCC) की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसे सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति सुनील शुक्रे की अध्यक्षता में गठित किया गया था। आयोग ने “अपवादस्वरूप परिस्थितियों” का हवाला देते हुए 50% आरक्षण सीमा को पार करने को उचित ठहराया था।
हालांकि, यह कानून फिर से राजनीतिक और कानूनी विवादों का कारण बना है, विशेषकर सुप्रीम कोर्ट के 2021 के उस फैसले के मद्देनजर जिसमें SEBC अधिनियम, 2018 को रद्द कर दिया गया था। उस फैसले में अदालत ने कहा था कि मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जा सकता और 50% की सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
2024 के कानून को पहले बॉम्बे हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ, जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय कर रहे थे, ने सुना था। लेकिन जनवरी 2024 में उनके दिल्ली हाईकोर्ट स्थानांतरण के बाद सुनवाई रुक गई।
इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने 14 मई को हाईकोर्ट में विशेष पीठ गठित कर शीघ्र सुनवाई का निर्देश दिया। इसके बाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि 2024 अधिनियम के तहत हुई सभी शैक्षिक प्रवेश और नियुक्तियां न्यायिक कार्यवाही के अंतिम परिणाम के अधीन रहेंगी।