पति की गरीबी के कारण साथ छोड़ने वाली पत्नी भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई पत्नी केवल पति की गरीबी या आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उसे छोड़ देती है, तो वह भरण-पोषण (Maintenance) की हकदार नहीं है। न्यायालय ने धारा 125 सीआरपीसी (Cr.P.C.) के तहत भरण-पोषण की मांग करने वाली एक पत्नी की पुनरीक्षण याचिका (रिवीजन पिटीशन) को खारिज कर दिया। कोर्ट ने प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, चंदौली के उस आदेश को सही ठहराया है जिसमें पत्नी को गुजारा भत्ता देने से मना कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने माना कि पत्नी बिना किसी उचित कारण के अपने पति से अलग रह रही थी और उसने अपनी वैवाहिक स्थिति व पहचान दस्तावेजों के संबंध में अदालत को गुमराह करने का प्रयास किया।

मामले की पृष्ठभूमि

पत्नी (निगरानीकर्ता) ने परिवार न्यायालय, चंदौली द्वारा 31 अक्टूबर, 2023 को पारित आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में सीआरपीसी की धारा 397/401 के तहत याचिका दायर की थी। निचली अदालत (ट्रायल कोर्ट) ने धारा 125 के तहत दायर उसके भरण-पोषण के आवेदन को खारिज कर दिया था।

पक्षकारों की दलीलें

पत्नी की ओर से पेश वकील रचना व्यास ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने पति (विपक्षी संख्या 2) द्वारा की गई क्रूरता के आरोपों पर विचार नहीं किया। उन्होंने कहा कि पत्नी के पास अलग रहने का पर्याप्त कारण था। यह भी दलील दी गई कि कोर्ट के बाहर हुए जिस “समझौते” का जिक्र किया गया है, उसकी कानून की नजर में कोई मान्यता नहीं है। पत्नी ने विशेष रूप से दूसरी शादी करने से इनकार किया और कहा कि निचली अदालत ने विपक्षी द्वारा पेश किए गए सबूतों को गलत तरीके से स्वीकार किया है।

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दूसरी ओर, पति के वकील अशोक कुमार सिंह और राज्य सरकार के एजीए ने फैसले का समर्थन किया। उन्होंने दलील दी कि पंचायत में हुए तलाक के समझौते के बाद पति-पत्नी का रिश्ता खत्म हो चुका था। यह भी कहा गया कि समझौते के दो साल बाद पत्नी ने किसी अन्य व्यक्ति से शादी कर ली थी, इसलिए वह भरण-पोषण की हकदार नहीं है।

कोर्ट का विश्लेषण और महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह ने रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद पाया कि ट्रायल कोर्ट ने मुख्य रूप से इस आधार पर भरण-पोषण अस्वीकार किया था कि पत्नी बिना किसी पर्याप्त कारण के अलग रह रही थी और प्रथम दृष्टया (prima facie) वह जारकर्म (adultery) में रह रही थी।

हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय द्वारा दर्ज किए गए तथ्यात्मक निष्कर्षों की पुष्टि की, जो इस प्रकार हैं:

  1. आर्थिक असमानता और स्वेच्छा से घर छोड़ना: ट्रायल कोर्ट ने नोट किया कि अपनी जिरह (cross-examination) में पत्नी ने स्वीकार किया कि उसने “खुशी-खुशी अपना ससुराल छोड़ दिया और अपने मायके लौट आई।” उसने माना कि उसका परिवार अमीर था जबकि उसका पति एक गरीब परिवार से था, और यह एक “बेमेल रिश्ता” (incompatible relationship) था। उसने यह भी स्वीकार किया कि उसके पति के पास “पढ़ाई के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं थे।”
  2. आधार कार्ड में तथ्यों को छिपाना: कोर्ट ने पत्नी के पहचान दस्तावेजों में विसंगतियां पाईं। 2016 में बने उसके आधार कार्ड में पति का नाम दर्ज था, लेकिन 2017 में इसमें संशोधन कराकर पति के स्थान पर पिता का नाम दर्ज करा लिया गया। कोर्ट ने पाया कि 2019 में भरण-पोषण का केस दाखिल करते समय पत्नी ने संशोधित आधार कार्ड के बजाय पुराना आधार कार्ड (पति के नाम वाला) लगाया। ट्रायल कोर्ट ने इसे “स्पष्ट रूप से कोर्ट को गुमराह करने का प्रयास” माना।
  3. दूसरी शादी के सबूत: विपक्षी ने 21 जनवरी, 2019 की वोटर लिस्ट पेश की, जिसमें पत्नी के पति के रूप में किसी तीसरे व्यक्ति (कथित दूसरे पति) का नाम दर्ज था। हालांकि पत्नी ने इससे इनकार किया, लेकिन कोर्ट ने नोट किया कि उसने इस वोटर आईडी को रद्द कराने या जालसाजी के लिए धारा 340 सीआरपीसी के तहत कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई। इसके अतिरिक्त, ग्राम प्रधान का एक प्रमाण पत्र भी पेश किया गया जिसमें कहा गया था कि पत्नी ने 15 मई, 2018 को उक्त तीसरे व्यक्ति से शादी कर ली थी।
  4. अलग रहने का कोई उचित कारण नहीं: सबूतों के आधार पर, कोर्ट ने पाया कि पत्नी द्वारा लगाया गया यह आरोप विश्वसनीय नहीं है कि यूपी पुलिस में कांस्टेबल के पद पर ज्वाइन करने के ठीक बाद पति ने उसके साथ मारपीट शुरू कर दी थी।
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हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट का यह निष्कर्ष सही है कि पत्नी “अपनी मर्जी से” विपक्षी से अलग रह रही है।

निर्णय

याचिका को खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष “सबूतों के सच्चे और सही मूल्यांकन” पर आधारित हैं और उनमें कोई अवैधता नहीं है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया:

“चूंकि यह न्यायालय रिविजनल क्षेत्राधिकार (revisional jurisdiction) में बैठा है, इसलिए वह सबूतों का फिर से मूल्यांकन (re-appreciation) नहीं कर सकता, जैसा कि निगरानीकर्ता के वकील ने सुझाव दिया है। ट्रायल कोर्ट ने सबूतों पर विचार करके ही फैसला सुनाया है। इसलिए, यह न्यायालय धारा 397/401 सीआरपीसी के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए अपने स्वयं के निष्कर्ष को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता।”

तदनुसार, आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई।

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