टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे और अधिवक्ता जय अनंत देहाद्रई के खिलाफ मानहानिकारक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया

तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने बृहस्पतिवार को दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे और अधिवक्ता जय अनंत देहाद्रई के खिलाफ सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ की गई कथित मानहानिकारक पोस्टों को हटवाने की मांग की है।

यह याचिका एक लंबित मानहानि वाद के तहत अंतरिम आवेदन के रूप में दायर की गई है, जिसमें मोइत्रा ने अदालत से अनुरोध किया है कि वह दुबे और देहाद्रई को उन पोस्टों को हटाने का निर्देश दे, जिन्हें उन्होंने आधारहीन और अपमानजनक बताया है। इनमें दुबे की फेसबुक पोस्ट और देहाद्रई की एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर की गई एक पोस्ट शामिल हैं, जो मोइत्रा से संबंधित एक सीबीआई मामले और लोकपाल शिकायत पर आधारित हैं।

न्यायमूर्ति मनीत पीएस अरोड़ा ने सुनवाई के दौरान दुबे के वकील से पूछा कि क्या सांसद अस्थायी रूप से उक्त पोस्ट को हटाने के लिए तैयार हैं। अदालत ने टिप्पणी की, “प्रथम दृष्टया, यह दस्तावेज़ आपके आरोपों का समर्थन नहीं करता। तब तक आप कृपया यह पोस्ट निष्क्रिय कर दें।”

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दुबे के वकील ने जवाब में कहा कि यह पोस्ट लोकपाल की उस रिपोर्ट पर आधारित है जो दुबे की शिकायत के बाद आई थी। उन्होंने यह भी कहा कि मोइत्रा ने स्वयं कई बार सोशल मीडिया पर दुबे के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया है। इस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर कोई किसी सामग्री से आहत है, तो वह संबंधित सोशल मीडिया मंच या अदालत से उचित राहत की मांग कर सकता है।

चूंकि दुबे की ओर से तत्काल निर्देश नहीं मिल सके, अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 9 मई तय की है।

उल्लेखनीय है कि मूल मानहानि वाद मोइत्रा ने 2023 में दायर किया था, जब दुबे ने उन पर हिरानंदानी समूह के सीईओ दर्शन हिरानंदानी से प्रश्न पूछने के एवज में कथित रिश्वत लेने का आरोप लगाया था। दुबे के अनुसार, ये आरोप देहाद्रई द्वारा लिखे एक पत्र पर आधारित थे, जिसे उन्होंने “अखंडनीय सबूत” बताया था। इस विवाद के चलते 8 दिसंबर 2023 को लोकसभा की आचार समिति की सिफारिश पर मोइत्रा को सदन से निष्कासित कर दिया गया था।

अब मोइत्रा ने अदालत से मांग की है कि वह दुबे और देहाद्रई को भविष्य में किसी भी प्रकार की मानहानिपूर्ण सामग्री पोस्ट करने से रोके और उनसे सार्वजनिक माफी की भी मांग की है। यह मामला संसद की कार्यप्रणाली और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े गंभीर सवालों को लेकर सार्वजनिक और राजनीतिक क्षेत्र में काफी ध्यान आकर्षित कर रहा है।

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