महिला बलात्कार नहीं कर सकती, लेकिन बलात्कार के लिए उकसाने की दोषी हो सकती है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने परिवर्तित किए आरोप

बलात्कार के मामले में भारतीय क़ानून के तहत उकसावे की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति प्रमोद कुमार अग्रवाल ने प्रशांत गुप्ता व अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य व अन्य में दिए अपने निर्णय में कहा कि भले ही कोई महिला स्वयं बलात्कार के लिए आरोपित नहीं हो सकती, लेकिन वह आईपीसी की धारा 109 के तहत बलात्कार के लिए उकसाने की दोषी हो सकती है।

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला भोपाल ज़िले के छोलामंदिर थाने में दर्ज एफआईआर (दिनांक 21.08.2022) से जुड़ा है, जिसमें अभियोगी महिला ने आरोप लगाया कि अभियुक्त अभिषेक गुप्ता, जो कि याचिकाकर्ता संख्या 2 का पुत्र और याचिकाकर्ता संख्या 1 का भाई है, उसके साथ प्रेम संबंध में था। 12.04.2021 को उसने विवाह का प्रस्ताव दिया और इसके बाद अभियुक्त ने कई बार जबरन शारीरिक संबंध बनाए। यह घटनाएं उसके घर और एक होटल में हुईं, जिसमें अभियुक्त की मां और भाई की संलिप्तता या जानकारी भी बताई गई।

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एफआईआर आईपीसी की धाराओं 376, 376(2)(n), 190, 506-II और 34 के तहत दर्ज की गई थी। आरोप था कि याचिकाकर्ताओं ने अभियोगी को एक कमरे में बंद कर दिया था जहाँ बलात्कार हुआ, और इसके बाद भी इन घटनाओं को सामान्य बताकर दोहराया गया।

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मूल आरोप और चुनौती:

सेशंस ट्रायल संख्या 791/2022 में ट्रायल कोर्ट ने 22.08.2023 को याचिकाकर्ताओं पर धारा 376 सहपठित 34, 506-II और 190 के तहत आरोप तय किए थे। इसके खिलाफ आरोपीगण ने Cr.P.C. की धारा 397 और 401 के तहत हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की।

विधिक मुद्दे:

  1. क्या महिलाओं पर धारा 376/34 IPC के तहत आरोप तय किए जा सकते हैं?
  2. क्या धारा 161 व 164 Cr.P.C. के अंतर्गत दिए गए बयानों के आधार पर उकसावे का प्रथम दृष्टया मामला बनता है?

याचिकाकर्ता की दलीलें:

याचिकाकर्ताओं के वकील श्री प्रदीप कुमार नावेरिया ने कहा कि:

  • अभियोगी शिक्षित है और सहमति से संबंध में थी।
  • एफआईआर में याचिकाकर्ताओं के नाम नहीं थे।
  • उन पर लगाए गए आरोप बाद में जोड़े गए और तथ्यहीन हैं।
  • उन्होंने महेश दामू खरे बनाम महाराष्ट्र राज्य (SLP (Crl.) No.4326/2018) पर भरोसा जताया।
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राज्य की दलील:

राज्य की ओर से सरकारी वकील श्री सी.एम. तिवारी ने कहा कि:

  • आरोप तय करने के स्तर पर सिर्फ प्रथम दृष्टया मामला देखना होता है।
  • अभियोगी के बयानों में याचिकाकर्ताओं पर विशेष आरोप लगाए गए हैं।
  • ट्रायल कोर्ट ने सही तरीके से क़ानून लागू किया।

हाईकोर्ट की टिप्पणियाँ:

अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 376 “एक पुरुष” से शुरू होती है, जो स्पष्ट करता है कि बलात्कार का अपराध केवल पुरुष द्वारा किया जा सकता है। लेकिन धारा 109 के तहत महिला उकसावे के लिए दोषी ठहराई जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के ओम प्रकाश बनाम हरियाणा राज्य [(2015) 2 SCC 84] फैसले का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा:

“जानबूझकर अपराध में सहायता करना धारा 107 IPC की तीसरी परिभाषा में आता है। अतः महिला और पुरुष दोनों बलात्कार के लिए उकसावे के दोषी हो सकते हैं।”

एफआईआर में नाम न होने के मुद्दे पर कोर्ट ने कहा:

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“निस्संदेह, एफआईआर में याचिकाकर्ताओं के नाम नहीं हैं, लेकिन अभियोगी द्वारा धारा 161 और 164 Cr.P.C. के तहत दिए गए बयानों में स्पष्ट आरोप लगाए गए हैं…”

अंतिम निर्णय:

  • हाईकोर्ट ने धारा 376/34 के तहत लगाए गए आरोपों को हटाया।
  • इसके स्थान पर ट्रायल कोर्ट को धारा 376 सहपठित 109 के तहत आरोप तय करने का निर्देश दिया।
  • धारा 506-II और 190 के तहत लगे आरोप यथावत रखे गए।

“मेरे विचार में, लगाए गए आरोपों को देखते हुए प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ताओं ने धारा 376/109, 506 और 190 के तहत अपराध किया है।”
— न्यायमूर्ति प्रमोद कुमार अग्रवाल

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