ज़ुडपी जंगल भूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेगा महाराष्ट्र सरकार

महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को चुनौती देते हुए एक पुनर्विचार याचिका दायर करने का निर्णय लिया है, जिसमें विदर्भ क्षेत्र की ज़ुडपी जंगल भूमि को वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत “वन भूमि” के रूप में वर्गीकृत करने का निर्देश दिया गया है। इस बात की घोषणा राज्य के वन मंत्री गणेश नाइक ने शुक्रवार को विधानसभा सत्र के दौरान की।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय 22 मई को सुनाया गया था, जिसमें वर्ष 1996 के उसके पूर्ववर्ती आदेश की पुनः पुष्टि की गई थी। उस आदेश में कहा गया था कि “वन” की परिभाषा केवल शब्दकोशीय अर्थ तक सीमित नहीं है, बल्कि वह सभी क्षेत्र इसमें शामिल हैं जिन्हें सरकारी अभिलेखों में “वन भूमि” के रूप में दर्ज किया गया है। यह विस्तृत परिभाषा पूर्वी महाराष्ट्र की बड़ी मात्रा में ज़ुडपी भूमि — जो मुख्यतः झाड़ीदार वन क्षेत्र है — पर प्रभाव डालेगी।

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विधानसभा में इस मुद्दे को उठाते हुए कांग्रेस विधायक नाना पटोले ने चेतावनी दी कि यह निर्णय क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास परियोजनाओं को रोक सकता है। उन्होंने कहा, “अब इस भूमि पर कोई पुनर्विकास कार्य नहीं किया जा सकेगा। राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात प्रभावी ढंग से नहीं रख सकी, जिसके कारण यह फैसला आया। अब हमें इसके परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं।” उन्होंने सरकार से पुनर्विचार याचिका दायर करने की अपील की।

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वन मंत्री गणेश नाइक ने इन चिंताओं को स्वीकारते हुए सदन को आश्वस्त किया कि सरकार कानूनी विकल्पों का सहारा लेगी। उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार की अलग राय होने के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय सुनाया है। स्थिति को सुधारने के लिए हम पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे।”

इस बीच, सरकार के भीतर इस फैसले को लेकर विरोधाभासी प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। फैसले के दिन ही उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसे विदर्भ के लिए “बड़ी राहत” बताया था। फडणवीस के अनुसार, यह निर्णय स्पष्ट करता है कि 1996 से पहले आवंटित ज़मीनें वन वर्गीकरण से मुक्त हैं, और 1996 के बाद की ज़मीनों को केंद्र सरकार से अधिग्रहण की प्रक्रिया के तहत लिया जा सकता है।

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अब राज्य सरकार के सामने पर्यावरण संरक्षण की कानूनी बाध्यताओं और विदर्भ क्षेत्र की लंबे समय से लंबित विकास आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाने की चुनौती है। पुनर्विचार याचिका में ज़मीन उपयोग अधिकारों और छूटों पर स्पष्टता मांगी जाएगी, जिससे बुनियादी ढांचे और आजीविका परियोजनाओं में रुकावटें न आएं।

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