इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि पुलिस द्वारा दायर चार्जशीट में केवल कुछ व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया है और एफआईआर में नामित अन्य व्यक्तियों को क्लीन चिट दे दी गई है, तो मजिस्ट्रेट को संज्ञान लेते समय सूचक (Informant) को नोटिस देना आवश्यक नहीं है। यह निर्णय स्म्टि. सुमन प्रजापति बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य [धारा 482 सीआरपीसी आवेदन संख्या 25836/2024] में दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि:
आवेदिका सुमन प्रजापति ने 23 अगस्त 2023 को थाना धूमनगंज, प्रयागराज में एक एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने अपने पति त्रिपुरारी प्रजापति सहित छह लोगों पर दहेज को लेकर शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था। मामला आईपीसी की धारा 498-A, 323, 504, 506 एवं दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दर्ज किया गया।
जांच के बाद पुलिस ने 19 नवंबर 2023 को केवल त्रिपुरारी प्रजापति के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की और शेष पांच आरोपियों के पक्ष में अंतिम रिपोर्ट सौंपी। इसके बाद अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (कोर्ट संख्या 16, इलाहाबाद) ने 30 जनवरी 2024 को केवल त्रिपुरारी के खिलाफ संज्ञान लिया, बिना सूचक को कोई नोटिस दिए।

इससे आहत होकर सुमन प्रजापति ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत याचिका दायर की और मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी।
आवेदिका के तर्क:
आवेदिका की ओर से अधिवक्तागण श्री यशपाल यादव एवं श्री लालजी यादव ने दलील दी कि:
- धारा 173(2)(ii) सीआरपीसी के अनुसार, जांच अधिकारी को सूचक को यह जानकारी देना आवश्यक है कि क्या चार्जशीट दाखिल की गई है या अंतिम रिपोर्ट।
- भगवत सिंह बनाम पुलिस आयुक्त (AIR 1985 SC 1285) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि एफआईआर में नामित व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही न करने का निर्णय हो, तो मजिस्ट्रेट को सूचक को नोटिस देना चाहिए।
- बिना नोटिस दिए यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है और सूचक को विरोध दर्ज कराने का अवसर नहीं मिला।
राज्य सरकार और विपक्ष का पक्ष:
राज्य की ओर से अपर सरकारी अधिवक्ता श्री अमित सिंह चौहान और विपक्षी पक्ष संख्या 2 की ओर से श्री संजय कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि:
- चार्जशीट उसी व्यक्ति के खिलाफ दाखिल की गई जिसे जांच में दोषी पाया गया।
- सूचक के पास विरोध याचिका दायर करने और धारा 319 सीआरपीसी के तहत अन्य आरोपियों को तलब करने का विकल्प मौजूद है।
- इस चरण पर अनिवार्य नोटिस देना प्रक्रिया में अनावश्यक देरी करेगा।
न्यायालय का निर्णय:
न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने विस्तृत सुनवाई के बाद कहा:
“जब मजिस्ट्रेट केवल चार्जशीटेड आरोपी के खिलाफ संज्ञान लेते हैं, तो सूचक को नोटिस न देना किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाता… यदि मजिस्ट्रेट एफआईआर में नामित लेकिन चार्जशीट में अनुपस्थित व्यक्तियों के खिलाफ कोई निर्णय नहीं ले रहे, तो नोटिस देना अनिवार्य नहीं है।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि ट्रायल के दौरान पर्याप्त साक्ष्य सामने आते हैं, तो अदालत उन आरोपियों को भी तलब कर सकती है जिनके खिलाफ चार्जशीट नहीं दाखिल हुई, धारा 319 सीआरपीसी के अंतर्गत।
फैसले की मुख्य टिप्पणी:
“सूचक को नोटिस जारी करने से केवल अनावश्यक देरी होगी, जबकि उसके पास ट्रायल के दौरान साक्ष्य प्रस्तुत करने का पूरा अवसर मौजूद है।”
कोर्ट ने भगवत सिंह मामले को इस मामले से भिन्न बताया और कहा कि जब तक ट्रायल में सूचक को अपनी बात रखने का अवसर मिल रहा है, तब तक प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन हो रहा है।
निष्कर्ष और अंतिम आदेश:
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए मजिस्ट्रेट के निर्णय में हस्तक्षेप से इनकार किया:
“वर्तमान मामले में किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। यह आवेदन धारा 482 सीआरपीसी के अंतर्गत खारिज किया जाता है।”
कोर्ट ने शोध सहयोगी श्रीमती श्रेया शुक्ला के योगदान की भी सराहना की।
मामले का विवरण:
- मामले का नाम: श्रीमती सुमन प्रजापति बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य
- मामला संख्या: धारा 482 सीआरपीसी आवेदन संख्या 25836/2024
- पीठ: न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान
- आवेदिका के अधिवक्ता: श्री यशपाल यादव, श्री लालजी यादव
- राज्य के अधिवक्ता: श्री अमित सिंह चौहान (ए.जी.ए.)
- विपक्षी अधिवक्ता: श्री संजय कुमार श्रीवास्तव