मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने स्पष्ट किया है कि सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी से बिना कारण बताओ नोटिस दिए और सेवानिवृत्ति के 15 साल बाद पेंशन की अधिक राशि की वसूली करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है और कानूनन टिकाऊ नहीं है।
न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने 24 जुलाई 2025 को यह फैसला सुनाया। यह आदेश सेवानिवृत्त कृषि अधिकारी कलियामूर्ति की याचिका पर आया, जिन्होंने 21 सितंबर 2021 को जारी उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनसे ₹3,78,907 की वसूली करने को कहा गया था।
मामला क्या है?
याचिकाकर्ता कलियामूर्ति ने 17 अक्टूबर 1968 को अतिरिक्त कृषि विस्तार अधिकारी के रूप में सेवा शुरू की थी और 30 जनवरी 2004 को संयुक्त उप निदेशक (बीज निरीक्षण) के पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्हें 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार ₹66,619 मासिक पेंशन दी जा रही थी।

2021 में तंजावुर के कोषाधिकारी ने यह कहते हुए आदेश पारित किया कि 7वें वेतन आयोग के तहत जो पेंशन दी जा रही थी, वह याचिकाकर्ता के लिए अनुमत नहीं थी और ₹3,78,907 की अधिक राशि की वसूली की जाएगी। यह रकम 24 मासिक किस्तों में वसूलने का आदेश दिया गया।
याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्रीमती शुनमलार ने तर्क दिया कि यह आदेश बिना कोई अवसर दिए पारित किया गया, जो प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि न तो कोई धोखा दिया गया और न ही किसी तरह की गलत जानकारी दी गई थी। साथ ही यह भी तर्क दिया गया कि रिटायरमेंट के इतने वर्षों बाद वसूली करना न केवल अनुचित है, बल्कि इससे वृद्ध कर्मचारी के जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा, जो पूरी तरह पेंशन पर निर्भर है।
याचिकाकर्ता ने इन फैसलों का हवाला दिया:
- State of Punjab v. Rafiq Masih (2015) 4 SCC 334
- Syed Abdul Qadir v. State of Bihar (2009) 3 SCC 475
- C. Rajeswari v. Accountant General (A&E), Chennai
- L. Annamalai v. Accountant General (A&E), Chennai
प्रतिवादियों का पक्ष
सरकार की ओर से यह कहा गया कि 7वें वेतन आयोग के अनुसार पेंशन की गणना ई-पेंशन पोर्टल पर गलती से की गई थी और याचिकाकर्ता उस संशोधित पेंशन के पात्र नहीं थे। इसलिए, जो अतिरिक्त भुगतान किया गया, उसकी वसूली की जानी उचित है।
न्यायालय का विश्लेषण
न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी यह साबित नहीं कर सके कि याचिकाकर्ता को कोई पूर्व सूचना या कारण बताओ नोटिस दिया गया था। न्यायालय ने कहा:
“स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता को कोई पर्याप्त अवसर या शो-कॉज नोटिस नहीं दिया गया। अतः यह आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और इसी आधार पर अमान्य है।”
इसके अतिरिक्त, न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने यह भी कहा कि पेंशन की वसूली सेवानिवृत्ति के 15 साल बाद की जा रही है, जो Rafiq Masih के फैसले में वर्णित निषिद्ध स्थितियों के अंतर्गत आती है। अदालत ने कहा कि इस तरह की विलंबित वसूली से “अन्यायपूर्ण, कठोर और अनुचित परिणाम” उत्पन्न होंगे।
अंतिम निर्णय
अदालत ने वसूली आदेश को रद्द कर दिया और प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता को वर्तमान दर पर नियमित रूप से पेंशन देते रहें और यदि कोई बकाया है, तो वह भी छह सप्ताह के भीतर चुका दें।
“इस विलंबित चरण में पेंशन की अधिक राशि की वसूली का सरकार का दावा किसी भी रूप से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता,” अदालत ने कहा।
मामला: कलियामूर्ति बनाम लेखा महानियंत्रक (A&E) एवं अन्य
रिट याचिका संख्या: WP(MD) No. 19681 of 2021