मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए 2009 में हाईकोर्ट परिसर के भीतर हुई पुलिस और वकीलों की हिंसक झड़प के मामले में बड़ी राहत दी है। अदालत ने इस मामले में 28 वकीलों और 4 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दायर आरोप पत्रों (Charge Sheets) को रद्द कर दिया है।
मामला और फैसला न्यायमूर्ति एम. निर्मल कुमार की एकल पीठ ने अधिवक्ता रजनीकांत और 27 अन्य वकीलों द्वारा दायर याचिकाओं को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया। इसके साथ ही, अदालत ने 19 फरवरी 2009 की हिंसा के संबंध में इन वकीलों के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को समाप्त कर दिया है।
अदालत ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए इसी घटना के संबंध में आरोपी बनाए गए चार पुलिस अधिकारियों की याचिकाओं को भी स्वीकार कर लिया और उनके खिलाफ दायर आरोप पत्रों को भी रद्द कर दिया।
यह मामला 19 फरवरी 2009 की उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना से जुड़ा है, जिसे मद्रास हाईकोर्ट के इतिहास का एक काला दिन माना जाता है। विवाद की शुरुआत तब हुई जब जनता पार्टी के तत्कालीन नेता सुब्रमण्यम स्वामी अदालत के एक हॉल में मौजूद थे।
रिकॉर्ड के अनुसार, वकीलों के एक समूह ने सुब्रमण्यम स्वामी पर कथित तौर पर सड़े अंडे फेंके, जिसके बाद वहां तैनात पुलिस बल और वकीलों के बीच तीखी नोकझोंक हुई। यह विवाद जल्द ही एक बड़े संघर्ष में बदल गया।
अदालत परिसर में हुई इस हिंसक झड़प ने विकराल रूप ले लिया था, जिसके परिणामस्वरूप:
- कई वकील और पुलिसकर्मी घायल हो गए थे।
- एक हाईकोर्ट जज को भी चोटें आई थीं।
- अदालत परिसर में खड़े कई वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था।
इस घटना के बाद पुलिस और बार के सदस्यों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए गए थे। न्यायमूर्ति एम. निर्मल कुमार के समक्ष दायर याचिकाओं में इन कार्यवाहियों को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने गुरुवार को सभी संबंधित पक्षों को राहत प्रदान की।




