मद्रास हाईकोर्ट ने अदालत के आदेशों की जानबूझकर अवहेलना करने पर वरिष्ठ अधिवक्ता ए. मोहनदास को सिविल अवमानना का दोषी ठहराते हुए चार महीने के साधारण कारावास और ₹2,000 के जुर्माने की सजा सुनाई है। न्यायमूर्ति एन. सतीश कुमार ने 8 जुलाई 2025 को पारित 54 पृष्ठों के विस्तृत आदेश में कहा कि मोहनदास द्वारा किराये के मकान खाली करने के अपने वचन का उल्लंघन न्याय प्रक्रिया की पवित्रता को ठेस पहुँचाता है। अदालत ने तमिलनाडु और पुडुचेरी बार काउंसिल को उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का भी निर्देश दिया।
मामले की पृष्ठभूमि: एक दशक से चला आ रहा किराये का विवाद
यह मामला Cont.P.Nos. 985 & 986 of 2025 के रूप में दर्ज था, जिसमें मकान मालिक पी. विकास कुमार ने Contempt of Courts Act, 1971 की धारा 11 के तहत अवमानना याचिकाएं दायर की थीं। विवाद चेन्नई के चूलाइमेडु स्थित घर और परिसर (संख्या 19-A, थिरुवेंकाटासामी स्ट्रीट) को लेकर था, जिसमें मोहनदास ग्राउंड फ्लोर, फर्स्ट फ्लोर और सेकंड फ्लोर के किरायेदार थे। मकान मालिक ने 2015 में XIII स्मॉल कॉज कोर्ट, चेन्नई में बेदखली की कार्यवाही (RCOP Nos. 1317 & 1318 of 2015) शुरू की थी।

मोहनदास ने अपनी किरायेदारी स्वीकारते हुए वर्षों तक याचिकाओं और मुकदमों के जरिए मामले को टालने की रणनीति अपनाई। 1 अगस्त 2018 के Rev.Appl.No.11 of 2017 में डिवीजन बेंच ने उनकी रिव्यू याचिकाओं को मामले लटकाने की कोशिश बताया। 20 अप्रैल 2021 के C.R.P.(PD) Nos.16 & 17 of 2021 में अदालत ने उनके “कोर्ट को डराने” और गवाह की जिरह में पाँच साल की देरी की आलोचना की। 2 अगस्त 2022 के Tr.O.P.No.25 of 2022 में उनकी स्थानांतरण याचिका को भी प्रक्रिया लंबी करने की चाल माना गया।
इसके अलावा, मोहनदास ने विकास कुमार के वकील के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत शिकायत दर्ज करवाई थी। 8 नवंबर 2024 को C.R.P.(NPD) Nos.1773 & 1775 of 2024 में हाईकोर्ट ने उन्हें 31 मई 2025 तक परिसर खाली करने का आदेश दिया और पुलिस आयुक्त को निष्कासन के लिए अधिकृत किया। मोहनदास की सुप्रीम कोर्ट में चुनौती (SLP(C) Nos.31055 & 31056 of 2024) भी 6 जनवरी 2025 को खारिज हो गई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने दो सप्ताह में ट्रायल कोर्ट में अंडरटेकिंग देने की शर्त पर समय बढ़ाया। मोहनदास ने इसे भी समय पर नहीं दिया।
अंडरटेकिंग का उल्लंघन और लगातार अवमानना
31 मई 2025 तक खाली करने का सुप्रीम कोर्ट निर्देश होने के बावजूद, मोहनदास ने कब्जा नहीं छोड़ा। 9 अप्रैल 2025 को उन्होंने देर से हलफनामा दिया, पर 4 जून 2025 की सुनवाई में उन्होंने 100 वर्गफुट ग्राउंड फ्लोर और 700 वर्गफुट सेकंड फ्लोर छोड़ने से मना कर दिया। 6 जून 2025 को इन्वेंटरी के आदेश पर भी उन्होंने बाधा डाली और 16 जून 2025 को जबरन परिसर तुड़वाने का आदेश देना पड़ा। उन्होंने XXI असिस्टेंट सिटी सिविल कोर्ट, चेन्नई में O.S.No.2898 of 2025 के तहत निष्कासन पर रोक की याचिका भी दायर की और हेड बेलिफ पर शिकायत दर्ज करवाई।
दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता कुशल कुमार संचेती ने कहा कि मोहनदास ने जानबूझकर अदालत की अवमानना की, झूठे मुकदमे दायर कर सुप्रीम कोर्ट के अंतिम आदेशों को लटकाया, और न्यायिक सम्मान की अवहेलना की। मोहनदास ने जवाबी हलफनामे में विवादित क्षेत्रों पर अधिकार जताते हुए “बिना शर्त माफी” माँगी और इसे भावनात्मक प्रतिक्रिया बताया, जबकि उनके वकील जी.एस. मणि ने अधिकांश परिसर छोड़ने और उसमें न घुसने की दलील दी।
कानूनी प्रश्न और अदालत के उत्तर
क्या मोहनदास ने सिविल अवमानना की?
अदालत ने कहा, हाँ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अंडरटेकिंग समय पर न देना, समयसीमा तक खाली न करना, इन्वेंटरी में रुकावट डालना और O.S.No.2898 of 2025 दायर करना जानबूझकर अवहेलना है। अदालत ने M.Y. Shareef और Suman Chadha जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि अंडरटेकिंग का उल्लंघन अवमानना है, जिसे क्रियान्वयन विकल्पों से मिटाया नहीं जा सकता।
क्या माफी पर्याप्त और सच्ची थी?
अदालत ने कहा, नहीं। एक पंक्ति की माफी बिना पछतावे के थी, जबकि उनका आचरण बार-बार अदालतों को डराने और कब्जा जमाए रखने वाला रहा। अदालत ने Peter Ramesh Kumar मामले का हवाला देकर कहा कि माफी बचाव का हथियार नहीं, बल्कि सच्चे प्रायश्चित की अभिव्यक्ति होनी चाहिए।
सजा क्या उचित है, खासकर एक वकील के लिए?
अदालत ने चार महीने की साधारण कैद और ₹2,000 जुर्माना लगाया। अदालत ने बार काउंसिल को अनुशासनात्मक कार्रवाई के निर्देश दिए और कहा कि वकीलों को संवैधानिक मर्यादा का पालन करना चाहिए, क्योंकि नरमी से जनता का न्यायपालिका पर विश्वास डगमगाएगा। साथ ही, अदालत ने O.S.No.2898 of 2025 को खारिज करने, कब्जा अगर नहीं लिया जाए तो इन्वेंटरी का निपटान करने और गिरफ्तारी वारंट जारी करने के निर्देश भी दिए।